गंगा स्नान से पाप मुक्ति

By: ओशो Sep 26th, 2020 12:20 am

ओशो

एक बात जो तीर्थ के बाबत ख्याल ले लेना चाहिए, वह यह कि सिंबालिक एक्ट का प्रतीकात्मक कृत्य का भारी मूल्य है। जैसे जीजस के पास कोई आता है और कहता है। मैंने यह पाप किए। वह जीजस के सामने कन्फेस कर देता है, सब बता देता है मैंने यह पाप किए। जीजस उसके सिर पर हाथ रख कर कह देते है कि जा तुझे माफ  किया। अब इस आदमी ने पाप किए है। जीजस के कहने से माफ  कैसे हो जाएंगे? जीजस कौन है और हाथ रखने से माफ  हो जाएंगे, जिस आदमी ने खून किया, उसका क्या होगा या हमने कहा, आदमी पाप करे और गंगा में स्नान कर ले, मुक्त हो जाएगा। बिलकुल पागलपन मालूम हो रहा है। जिसने हत्या की है, चोरी की है, बेईमानी की है, गंगा में स्नान करके मुक्त कैसे हो जाएगा।

यह दो बातें समझ लेनी जरूरी है। एक तो यह कि पाप असली घटना नहीं है।  स्मृति असली घटना है मेमोरी। पाप नहीं, एक्ट नहीं, असली घटना जो आप में चिपकी रह जाती है। वह स्मृति है। आपने हत्या की है। यह उतना बड़ा सवाल नहीं है। आखिर में आपने हत्या की है, यह स्मृति कांटे की तरह पीछा करेगी,वे जो जानते है कि हत्या की है या नहीं। वह नाटक का हिस्सा है, उसका कोई मूल्य नहीं है। न कभी मरता है कोई, न कभी मार सकता है कोई। मगर यह स्मृति आपका पीछा करेगी कि मैंने हत्या की, मैंने चोरी की। यह पीछा करेगी और यह पत्थर की तरह आपकी छाती पर पड़ी रहेगी। वह कृत्य तो गया, अनंत में खो गया, वह कृत्य तो अनंत ने संभाल लिया। सच तो यह है सब कृत्य तो अनंत के है, आप नाहक उसके लिए परेशान है और चोरी भी हुई है आपसे, तो अनंत के ही द्वारा आपसे हुई है।

 हत्या भी हुई है तो भी अनंत के द्वारा आपसे हुई है, आप नाहक बीच में अपनी स्मृति लेकर खड़े है। मैंने किया। अब यह ‘मैंने किया’ यह स्मृति आपकी छाती पर बोझ है। क्राइस्ट कहते हैं, तुम कन्फेस कर दो, मैं तुम्हें माफ किए देता हूं और जो क्राइस्ट पर भरोसा करता है वह पवित्र होकर लोटेगा। असल में क्राइस्ट पाप से तो मुक्त नहीं कर सकते, लेकिन स्मृति से मुक्त कर सकते हे। गंगा पाप से मुक्त नहीं कर सकती, लेकिन स्मृति से मुक्त कर सकती है। अगर कोई भरोसा लेकर गया है कि गंगा में डुबकी लगाने से सारे पापों से बाहर हो जाऊंगा और ऐसा अगर उसके चित्त में है। इसके लिए हिंदुओं ने ज्यादा स्थायी व्यवस्था खोजी है। व्यक्ति से नहीं बांधा, यह नदी कन्फेशन लेती रहेगी। यह अनंत तक रहेगी और ये धाराएं स्थायी हो जाएंगी। क्राइस्ट कितने दिन रहेंगे। मुश्किल से क्राइस्ट तीन साल काम कर पाए, कुल तीन साल। तीस से लेकर तैतीस साल की उम्र तक, तीन साल में कितने पापी कन्फेस करेंगे। कितने पापी उनके पास आएंगे।

 कितने लोगों के सिर पर हाथ रखेंगे। यहां के मनीषीयों ने व्यक्ति से नहीं बांधा, धारा से बांध दिया। तीर्थ हैं, वहां जाएगा कोई, वह मुक्त होकर लौटेगा। तो स्मृति से मुक्त होगा। स्मृति ही तो बंधन है। वह स्वप्न जो आपने देखा, आपका पीछा कर रहा है। असली सवाल वही है और निश्चित ही उससे छुटकारा हो सकता है। लेकिन उस छुटकारे में दो बातें जरूरी है। बड़ी बात तो यह जरूरी है कि आपकी ऐसी निष्ठा हो कि मुक्ति हो जाएगी और आपकी निष्ठा कैसे होगी। आपकी निष्ठा तभी होगी जब आपको ऐसा ख्याल हो कि लाखों वर्ष से ऐसा वहां होता रहा है और कोई उपाय नहीं है।


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