सियासी मुद्दों की अवैध जमीन

By: Sep 15th, 2020 12:06 am

हिमाचल में सियासी मुद्दों की अवैध जमीन तैयार हो रही है, तो आगामी चुनाव तक अब यही पैमाइश होगी। कुल्लू के विधायक सुंदर सिंह ठाकुर रात भर पुलिस अधीक्षक कार्यालय के बाहर धरना देकर साबित करते रहे कि उनके होटल परिसर में अवैध तरीके से पूर्व विधायक महेश्वर सिंह ने अपने समर्थकों के साथ घुसपैठ करके अभद्र टिप्पणियां कीं। पुलिस व्यवस्था पर छींटाकशी या सियासी विद्वेष में फंसी इमारत का सच तो कानूनी प्रक्र्रिया से ही सामने आएगा, लेकिन विधायक का धरने पर बैठना सामान्य प्रतीत नहीं होता। दरअसल राजनीति का यह स्वरूप अब हिमाचल की नई व्याख्या कर रहा है और यह भी कि कुछ तो धक्केशाही की ओर यह प्रदेश बढ़ने लगा है। अगर अतिक्रमण के खिलाफ कोई कार्रवाई अपेक्षित है, तो इसका कानून आधार सुनिश्चित है।

विडंबना यह है कि सत्ता और विपक्ष के बीच आपसी छवि का मुकाबला अति निम्न स्तर पर पहुंच रहा है। ऐसे कितने ही मामले चर्चाओं में आते हैं, लेकिन कार्रवाई का अमल में न आना अकसर पहेली की तरह है। कंगना बनाम महाराष्ट्र सरकार के बीच कूदी भाजपा के लिए अगर एक विधायक की इमारत अपराधी बन गई, तो यह अनुचित व्यवहार की श्रेणी में आता है। कानून व्यवस्था की शक्तियों पर सियासत अगर इसी तरह सार्वजनिक व्यवहार करने लगेगी, तो हम अपने भीतर कई पाकिस्तान खड़े कर लेंगे। कम से कम महाराष्ट्र सरकार सरीखे बर्ताव की कल्पना में हिमाचल का चारित्रिक पतन नहीं हो सकता। दूसरी ओर आंदोलनरत कांग्रेसी विधायक का विरोधी फार्मूला भी कोरोना काल के संकट को बढ़ा देता है।

आम नागरिक के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के सबक अगर ऐसे आंदोलन में ध्वस्त होंगे, तो यह गंभीर मसला है और उन हिदायतों का उल्लंघन भी है जिनका पालन अनिवार्य है। कांग्रेस इसी विषय को विधानसभा के मार्फत उठा सकती है या कानूनी दांव पेंच में सियासत के मुकाबले को दोनों तरफ से टाला जा सकता है। सियासत के लिए सही मुद्दे भी हो सकते हैं, लेकिन अवैध निर्माण की तरह अवैध मुद्दों की कमाई अधिक होती है। कुल्लू के अपने आर्थिक मसले तथा कोरोना से आहत व्यापारिक खतरे हैं। सेब की पूरी फसल असमंजस के तराजू में फंसी है जबकि जिला का पर्यटन उद्योग पूरी तरह धराशायी है, लेकिन भाजपा को यह साबित करना है कि कांग्रेसी विधायक का भवन अतिक्रमण की जमीन पर खड़ा है या कांग्रेस को जवाब देने की हैसियत में शक्ति प्रदर्शन करना है। ये दोनों काम हो गए। कंगना के नाम पर आंदोलनरत भाजपा ने अगर सियासी कूच नहीं किया होता, तो पूर्व विधायक महेश्वर सिंह कैसे हल्ला बोलते और अगर कांग्रेस जवाब नहीं देती तो मुंबई का फैसला कुल्लू में कैसे होता। कमोबेश हर पार्टी अब मोर्चे पर आना चाहती है, जबकि देश-प्रदेश की जरूरतें हर घर में बंद हैं।

बच्चों के भविष्य ताले में बंद हैं, जबकि स्कूली शिक्षा का पूरा साल औचित्यहीनता की ओर सरक रहा है। इन तमाम सवालों के बीच विधानसभा के मानसून सत्र के फेफड़ों में कोविड का दर्द नहीं, बल्कि राजनीतिक घटनाक्रम का असर है। ऐसा लगता है कि प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनावों के लिए जमीन तैयार हो रही है ताकि वहां समर्थक जिंदा रहें। यह मसला अगर वास्तव में अतिक्रमण का ही है, तो आज तक का इतिहास बताता है कि वास्तव में प्रदेश के कब्जाधारी तो नेता हैं या राजनीतिक प्रभाव से किस तरह इमारतों की गर्दनें ऊंची हो रही हैं। कभी नगर नियोजन कानून बना था, लेकिन धज्जियां उड़ा कर इसे बेअसर होना पड़ा, तो आजतक राजस्व रिकार्ड की फाइल इतनी सशक्त नहीं हुई कि अतिक्रमण के पंजे से प्रदेश की जमीन बच जाए। कुल्लू के संग्र्राम में संदेश यह नहीं कि इस टकराव का कारण पता चले, बल्कि यह है कि पता चले कि राजनीति हो रही है।


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