विधानसभा अध्यक्ष विपिन सिंह परमार ने कहा, विपक्ष का रवैया सदन की परंपरा के उलट

By: राज्य ब्यूरो प्रमुख—शिमला Sep 18th, 2020 12:15 am

परमार बोले, कांग्रेसी अपनी बात कहने से पहले बयां कर रहे सरकार की मंशा

विधानसभा अध्यक्ष विपिन सिंह परमार ने कहा कि कांग्रेस विधायक अपनी बात कहने से पहले सरकार की मंशा को बयां कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह पहला मौका है कि विपक्ष ने सदन की परंपरा के विपरीत कार्यशैली दिखाई है। उन्होंने कहा कि गुरुवार सुबह उन्हें सदस्य जगत सिह नेगी, मोहन लाल ब्राक्टा, नंद लाल और कर्नल धनीराम शांडिल से नियम-67 के तहत एससी-एसटी को सरकारी सेवा में नौकरी न देने और एससी-एसटी कंपोनेंट प्लान का पैसे सही ढंग से आबंटन न करने पर चर्चा मांगी थी। यह नोटिस दो अलग-अलग विषयों, जिनमें एक आरक्षण से जुड़ा था और दूसरा राशि आबंटन करने से जुड़ा था।

उन्होंने कहा कि इस संबंध में राकेश सिंघा से भी नियम-130 में चर्चा का नोटिस आया है। उसे सरकार को जवाब के लिए भेजा गया है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से जगत सिंह नेगी इस प्रस्ताव की बात रखते हुए इस सदन में अपनी बातों से सनसनी पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं और आसन को संबोधित न कर, दूसरी तरफ  इशारा कर रहे हैं, यह सरासर गलत है। उन्होंने जो कहा कि अध्यक्ष का चैंबर सभी के खुला है और वहां पर सदन के नेता, प्रतिपक्ष के नेता, संसदीय कार्यमंत्री और सदस्य सब आते हैं।

 वे अपनी बात रखते हैं और कई मामलों पर विचार-विमर्श करते हैं। इसके बाद संसदीय कार्यमंत्री सुरेश भारद्वाज ने  विपक्ष के वॉकआउट की निंदा करते हुए इसे हिमाचल की जनता की आकांक्षाओं पर कुठाराघात करार दिया। उन्होंने कहा कि सुर्खियों में बने रहने के लिए जो वॉकआउट किया गया है और वे उसकी कड़ी निंदा करते हैं। उन्होंने कहा कि हिमाचल विधानसभा देश की पहली विधानसभा है, जहां मुख्यमंत्री ने 10 दिन की सदन की बैठक बुलाने की हिम्मत की। देश में अन्य विधानसभाओं की बैठकें तीन दिन से ज्यादा नहीं चलीं। विपक्ष के नेता खड़े ही रह जाते हैं और सदस्य नोटिस देते हैं, वे ही वॉकआउट की बात करते हैं।

प्रश्नकाल पर लाखों रुपए के खर्च का ख्याल नहीं

सुरेश भारद्वाज ने कहा लाखों रुपए का पैसा प्रश्नकाल के लिए सवाल इकट्ठा करने में खर्च किया जाता है, उसकी विपक्ष के सदस्य कोई परवाह नहीं करते हैं। संसदीय कार्यमंत्री को अध्यक्ष और सचिव से सदन चलाने को लेकर कई विषयों पर बात करनी होती है। साथ ही कहा कि अध्यक्ष के चैंबर में जो बात होती हैं, उसका कोई जिक्र सदन में नहीं होता है। यदि वहां की चर्चा भी सदन में करेंगे, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।


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