ईश्वर से साक्षात्कार

By: स्मिता सिंह, धर्मशाला Oct 24th, 2020 12:40 am

चार धाम यात्रा भाग-3

गतांक से आगे…

हिमालय का एक शिखर केदारनाथ

पृथ्वी से हजारों फीट की ऊंचाई पर विराजमान हैं बाबा केदार शिव। गूगल पर यदि हम केदार का अर्थ तलाशें, तो एक अर्थ हिमालय का एक शिखर भी मिलता है। ऊंचा उठने के लिए हिमालय ने भी लाखों वर्ष पूर्व समुद्र यानी बहुत निचले स्तर से अपनी यात्रा शुरू की थी। इसलिए उसके शिखर तक की यात्रा तो दुर्गम होगी ही। जब आप ऊंचाई पर होते हैं, तो न सिर्फ  हाड़ कंपा देने वाली ठंड होती है, बल्कि आक्सीजन की भी कमी होने लगती है।

सांस लेने में जब हमें दिक्कत होती है, तो स्वतः ईश्वर का स्मरण हो आता है। जड़ी-बूटियों, चीड़-देवदार के पत्तों के बीच फंसे बादल में ईश्वर समान आकृति का भी आभास होने लगता है। ऐसे अद्भुत प्राकृतिक दृश्य मन पर पड़े ईष्या, द्वेष, प्रतिस्पर्धा, अहंकार, काम, क्रोध, मोह जैसे दुर्गुणों की धूल को झाड़ देते हैं। तभी स्वच्छ और साफ-सुथरा मन प्रकृति के दृश्यों में ईश्वर की छवि ढूंढने लगता है। रुद्रप्रयाग जिले में समुद्रतल से 11657 फीट की ऊंचाई पर मंदाकिनी व सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। साथ ही यह पंच केदार में से भी एक है। कहा जाता है कि भूरे रंग के विशालकाय पत्थरों से निर्मित कत्यूरी शैली के इस मंदिर का निर्माण पांडव वंश के जन्मेजय ने करवाया था। आठवीं सदी में चारों दिशाओं में चार धाम स्थापित करने के बाद 32 वर्ष की आयु में आद्य शंकराचार्य ने केदारनाथ धाम में ही समाधि ली थी। उन्हीं के द्वारा वर्तमान मंदिर बनवाया गया। मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है। मंदिर छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में भगवान शिव का वाहन नंदी विराजमान है। मंदिर की सीढि़यों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ अंकित है, जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। केदारनाथ धाम के पुजारी मैसूर (कर्नाटक ) के जंगम ब्राह्मण होते हैं।

श्रीविष्णु को समर्पित बदरीनाथ

हिंदी यात्रा साहित्य के पितामह व बौद्ध दर्शन के अध्येता राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि भौगोलिक यात्राओं के साथ-साथ हमारे मन में भी विचारों की यात्रा सतत होती रहती है। यात्रा के दौरान मिलने वाले आध्यात्मिक और धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों से जब हमारा संवाद होता है, तो खोखली और पुरानी धारणाएं टूटती हैं और उनके स्थान पर नए और सुंदर विचारों का जन्म होता है। उत्तराखंड के चमोली जिले में समुद्रतल से 10276 फीट की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम भगवान विष्णु को समर्पित है। विष्णु पुराण, महाभारत व स्कंद पुराण में भी इसे सर्वश्रेष्ठ धाम बताया गया है। माना जाता है कि शंकुधारी शैली में बने 15 मीटर ऊंचे बदरीनाथ मंदिर का निर्माण सातवीं से नवीं सदी के मध्य हुआ।

मंदिर के शिखर पर गुंबद है और गर्भगृह में श्रीविष्णु के साथ नर-नारायण ध्यानावस्था में विराजमान हैं। श्रीविष्णु की मूर्ति शालिग्राम पत्थर से बनी है, जिसे श्रीविष्णु की आठ स्वयंभू प्रतिमाओं में से एक माना जाता है। मान्यता है कि इसे आद्य शंकराचार्य ने आठवीं सदी के आसपास नारद कुंड से निकालकर मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया था।

यह मंदिर श्रीविष्णु के उन 108 दिव्य मंदिरों में से भी एक है, जो वैष्णव संप्रदाय के लोगों द्वारा बनाए गए थे। माना जाता है कि आद्य शंकराचार्य ने यह व्यवस्था बनाई कि मंदिर के मुख्य पुजारी केरल के नंबूदरी ब्राह्मण हों। पुजारी को रावल कहा जाता है। इस मंदिर को बदरी विशाल के नाम से से भी पुकारा जाता है। श्री विष्णु को ही समर्पित चार अन्य मंदिरों योग-ध्यान बदरी, भविष्य बदरी, वृद्ध बदरी और आदि बदरी के साथ बदरी विशाल को जोड़कर पूरे समूह को पंच बदरी के रूप में जाना जाता है।

– स्मिता सिंह, धर्मशाला


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