अंबाजी शक्तिपीठ

By: Oct 17th, 2020 12:24 am

कहा जाता है कि अंबाजी के इस मंदिर की जगह पर माता सती का हृदय गिरा था और यहां पर शक्तिपीठ का निर्माण हुआ। यहां पर शांगार और पूजा भी खास तरह से की जाती है। सुबह बाल रूप की, दोपहर को यौवन रूप की और शाम को प्रौढ़ स्वरूप की पूजा होती है …

शक्तिस्वरूपा अंबाजी देश के अत्यंत प्राचीन 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। गुजरात का अंबाजी मंदिर बेहद प्राचीन है। यहां मां का एक श्रीयंत्र स्थापित है। इस श्रीयंत्र को कुछ इस प्रकार सजाया जाता है कि देखने वाले को लगे कि मां अंबे यहां साक्षात विराजी हैं। अंबाजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां पर भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार संपन्न हुआ था। वहीं भगवान राम भी शक्ति की उपासना के लिए यहां आ चुके हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में मां की कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है। शक्ति के उपासकों के लिए यह मंदिर बहुत महत्त्व रखता है। मां अंबाजी मंदिर गुजरात-राजस्थान सीमा पर स्थित है। माना जाता है कि यह मंदिर लगभग बारह सौ साल पुराना है।

इस मंदिर के जीर्णोद्धार का काम सन् 1975 से शुरू हुआ था और तब से अब तक जारी है। श्वेत संगमरमर से निर्मित यह मंदिर बेहद भव्य है। मंदिर का शिखर एक सौ तीन फुट ऊंचा है। शिखर पर 358 स्वर्ण कलश सुसज्जित हैं। मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर गब्बर नामक पहाड़ है। इस पहाड़ पर भी देवी मां का प्राचीन मंदिर स्थापित है। माना जाता है यहां एक पत्थर पर मां के पदचिह्न बने हैं। पदचिह्नों के साथ-साथ मां के रथचिह्न भी बने हैं। अंबाजी के दर्शन के बाद श्रद्धालु गब्बर जरूर जाते हैं। देश के 52 शक्तिपीठों में से एक अंबाजी शक्तिपीठ है, जिसका जिक्र शास्त्रों में भी आया है।  नवरात्र में यहां का वातावरण आकर्षक और शक्तिमय रहता है। नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र पर्व में श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं। व्यापक स्तर पर मनाए जाने वाले इस समारोह में ‘भवई’ और ‘गरबा’ जैसे नृत्यों का प्रबंध किया जाता है। साथ ही यहां पर सप्तशती का पाठ भी आयोजित किया जाता है। कहा जाता है कि अंबाजी के इस मंदिर की जगह पर सती माता का हृदय गिरा था और यहां पर शक्तिपीठ का निर्माण हुआ।

यहां पर शृंगार और पूजा भी खास तरह से की जाती है। सुबह बाल रूप की, दोपहर को यौवन स्वरूप की और शाम को प्रौढ़ स्वरूप की पूजा होती है। इसी पूजा-अर्चना का चमत्कार ही है कि यहां से आज तक कोई खाली हाथ नहीं लौटा। अंबाजी में भादो पूर्णिमा पर पैदल चलकर आने के साथ-साथ ध्वजा पताका लेकर आने की भी विशेष परंपरा रही है। भक्त छोटे-छोटे झंडे और 52 गज लंबी ध्वजाएं लेकर माता के मंदिर में चढ़ाकर अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं। अंबा माता के मंदिर में पैदल चलकर आने वाले सभी श्रद्धालु मां अंबा की आरती के साथ जुड़ने को अपना सौभाग्य मानते हैं और आरती के दर्शन करने पर ही श्रद्धालु अपनी यात्रा को सफल मानते हैं।


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