बाईस-चौबीस के अनुराग-1

By: Oct 23rd, 2020 12:06 am

केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर के हालिया हिमाचल दौरों का निष्कर्ष विकास की उमंगों में राजनीति के नए इतिहास को सींच रहा है और जहां वह मात्र सांसद नहीं, प्रदेश की आशाओं- आकांक्षाओं के बीच मौजूद होने का प्रासंगिक विवरण देते हैं। कौन हिमाचली नहीं चाहेगा कि प्रदेश में बल्क ड्रग पार्क न बने, लेकिन जिस अंदाज में अनुराग ठाकुर पैरवी करते हैं उससे विकास का मजमून बड़ा हो जाता है। इसी तरह जब केंद्र सरकार ने राज्यों को बारह हजार करोड़ का पचास साल के लिए ब्याज मुक्त ऋण दिया, तो उसमें हिमाचल की हिस्सेदारी का आंकड़ा अगर साढ़े चार सौ करोड़ बैठा, तो अनुराग ठाकुर के वित्त मंत्रालय का जिक्र होगा। बतौर केंद्रीय राज्य मंत्री उनकी अमानत में पलते सपनों की चौपाल पर अगर बार-बार कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार और केंद्रीय विश्वविद्यालय के निर्माण का आश्वासन मिलता है, तो यह सियासी फलक का विस्तार सरीखा है। हालांकि अनुराग के सपनों की रेल तो हमीरपुर तक पहुंचना चाहती है, या मंडी एयरपोर्ट का एक छोर जाहू को छूना चाहता है, लेकिन इन इरादों के आगे इम्तिहान की दीवारें खड़ी हैं। अनुराग ठाकुर अपने सफर की कहानी को इतना बुलंद तो कर ही रहे हैं कि जब वह इरादों का पुष्प गुच्छ लेकर चलते हैं, तो पूर्व मुख्यमंत्री शांता भी हिमायत करते हैं।

 खैर इन तमाम सपनों में भाजपा की गिनती तो बाईस-चौबीस की रहेगी। यानी बाईस में हिमाचल और चौबीस में देश को जीतने की सीढि़यों पर सांसद अनुराग ठाकुर के भविष्य का मकसद खड़ा है। यह श्रेय प्रेम कुमार धूमल को जाता है कि उन्होंने संसदीय परिपाटी से प्रदेश की राजनीतिक तस्वीर बदली और अब हर सांसद की बकअत में सत्रह विधायकों से जुड़ा पूरा क्षेत्र देखा जाता है। इसी विरासत से अनुराग की राजनीतिक संपत्ति बढ़ जाती है और जब वह कांगड़ा के संसदीय क्षेत्र की महत्त्वाकांक्षा व सांसद किशन कपूर को जोड़ लेते हैं, तो इसका भौगोलिक अर्थ अपने दायरे में चौंतीस विधायकों का गठजोड़ कर लेता है। प्रदेश की राजनीति का एक दूसरा परिदृश्य भी है और इसके सबूत तब मिले थे जब मंडी की एक रैली से दो प्रमुख नेताओं ने जोश से भरे इशारों से हमीरपुर के सियासी कान खींचे थे। शिमला संसदीय क्षेत्र से तीसरा परिदृश्य भाजपाध्यक्ष के रूप में सांसद सुरेश कश्यप के क्षितिज में देखा जा रहा है, तो यह स्पष्ट है कि कहीं कांगड़ा जमा हमीरपुर हो रहा है और कहीं सत्ता की पलकों पर मंडी और शिमला सवार हैं। राजनीतिक तौर पर भाजपा की राष्ट्रीय कमान के लिए अगर आज बिहार चुनाव कुछ महत्त्वपूर्ण सबक दे रहा है, तो ये हिमाचल के परिपे्रक्ष्य में भी समझना होगा। भले ही राजद नेता तेजस्वी यादव को एनडीए घटक दल ठिगना साबित करने में जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं, लेकिन दस लाख नौकरियों का वादा भारी पड़ रहा है। इस संदर्भ में हिमाचल या केंद्र सरकार को भी ऐसी खुराक तैयार करनी पड़ेगी। ऐसे में राज्य सरकार चाहे तो केंद्र से मिले साढ़े चार सौ करोड़ का निवेश करके स्वरोजगार का ढांचा विकसित कर सकती है या इन्वेस्टर मीट के परिणामों को अंकुरित करके सीधा रोजगार उपलब्ध करा सकती है। देखना यह होगा कि क्या जयराम सरकार के फैसलों की रिक्तता को सांसद अनुराग केंद्र से पूरा करा पाएंगे या केंद्रीय योजनाओं के संबल से हिमाचली युवा को अपने साथ चला पाएंगे।

 उनके हिसाब से प्रदेश की भौगोलिक और केंद्र की राजनीति के समीकरण बाईस से चौबीस के चुनावों के बीच जिंदगी का अहम घटनाक्रम हो सकता है। यह इसलिए भी कि अब तक उनके आलोचक परिवारवाद का पिंजरा खड़ा करते रहे हैं, जबकि अब वह धूमल की विरासत से निकली स्वतंत्र व अनुभवी भूमिका में देश के वित्त मंत्रालय से जुड़े हैं। केंद्र से राज्य के वित्तपोषण में श्रेय उन्हें मिलेगा और यह इसलिए भी कि पूर्व में हिमाचली अभिलाषाएं केंद्र में मंत्री रहते हिमाचली नेताओं के आगे हारी हैं। बेशक असरदार वीरभद्र सिंह, शांता कुमार, जगत प्रकाश नड्डा या आनंद शर्मा केंद्रीय मंत्री रहे हों, लेकिन राज्य को वांछित लाभ नहीं मिला। अब पुनः सड़क मार्गों व फोरलेन परियोजनाओं से मिटती आशाएं प्रश्न खड़े कर रही हैं। यह कार्य भले ही नड्डा नहीं कर पाए, पर अब इसका सियासी पिटारा अनुराग के ऊपर रहेगा। अनुराग ठाकुर को अनावश्यक अतिरेक से भी बचना होगा। पिछले चुनावों में वह दो बार अपनी सीमाएं तोड़ चुके हैं। एक बार टीवी डिबेट में वीरभद्र सिंह के खिलाफ टिप्पणी तथा दूसरी बार एक समुदाय विशेष के खिलाफ नारेबाजी का उद्घोष करके वह अपनी स्वीकार्यता व सियासी सफर पर जो प्रश्न खड़े कर चुके हैं, उनसे अब पूरी तरह बचना होगा।


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