चंबा की लोक गाथाओं को संरक्षण की जरूरत

By: डा. गौतम शर्मा व्यथित, चंचल सरोलवी Oct 18th, 2020 12:13 am

विमर्श के बिंदु

मो.- 9418130860

अतिथि संपादक : डा. गौतम शर्मा व्यथित

हिमाचली लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक विवेचन -3

-लोक साहित्य की हिमाचली परंपरा

-साहित्य से दूर होता हिमाचली लोक

-हिमाचली लोक साहित्य का स्वरूप

-हिमाचली बोलियों के बंद दरवाजे

-हिमाचली बोलियों में साहित्यिक उर्वरता

-हिमाचली बोलियों में सामाजिक-सांस्कृतिक नेतृत्व

-सांस्कृतिक विरासत के लेखकीय सरोकार

-हिमाचली इतिहास से लोक परंपराओं का ताल्लुक

-लोक कलाओं का ऐतिहासिक परिदृश्य

-हिमाचल के जनपदीय साहित्य का अवलोकन

-लोक गायन में प्रतिबिंबित साहित्य

-हिमाचली लोक साहित्य का विधा होना

-लोक साहित्य में शोध व नए प्रयोग

-लोक परंपराओं के सेतु पर हिमाचली भाषा का आंदोलन

लोकसाहित्य की दृष्टि से हिमाचल कितना संपन्न है, यह हमारी इस नई शृंखला का विषय है। यह शृांखला हिमाचली लोकसाहित्य के विविध आयामों से परिचित करवाती है। पेश है इसकी तीसरी किस्त…

चंचल सरोलवी मो.-8580758925

हिमाचल प्रदेश का जिला चंबा अपने नैसर्गिक सौंदर्य से प्रकृति प्रेमियों का मन ही नहीं मोह लेता, अपितु अपनी समृद्ध ऐतिहासिक पारंपरिक लोक संस्कृति की विभिन्न विधाओं को अपने आंचल में समेटे बरबस सबको अपनी ओर आकर्षित भी करता है। इन्हीं विविध विधाओं में से एक है लोक गायन गाथाएं, जो लोक संस्कृति और इतिहास की अमूल्य धरोहर जनमानस के जीवन का संपूर्ण परिचय दिया करती हैं। चंबा में लोक गाथाओं का इतना अक्षय भंडार है, जहां से कोई भी जिज्ञासु कभी भी निराश होकर नहीं लौटता। चंबा की लोक गाथाएं अनेकता के रंग में रंगी हुई हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप में आज भी गाई और सुनी जाती हैं जो लोगों की धार्मिक अगाध श्रद्धा, विश्वास व पारंपरिक लोक संस्कृति और इतिहास की अमूल्य धरोहर के रूप में विद्यमान हैं। चंबा की अनेक विधाओं में लोक गाथा गायन की भी समृद्ध परंपरा प्रचलित है।

चंबा की लोक गाथाओं का विश्लेषण किया जाए तो वह अनेक प्रकार के रंगों में रंगी हैं। धार्मिक लोक गाथा ऐंचली, धार्मिक लोक गाथा मुसाधा, कारक लोक गाथा, बार गायन गाथा, गुग्गा गायन गाथा, ढोलरू गायन गाथा, छिंझैटी गायन, दरुणे गायन लोक गाथा आदि। ऐंचली और मुसाधा गायन में धार्मिक प्रसंगों वाली कई गाथाएं गाई जाती हैं, जैसे रमीण (रामायण), पंडवीण (महाभारत), शवीण (शिव पुराण) आदि। ऐतिहासिक आख्यान को गाथाकार ने अपनी बोली में निबद्ध किया है।

ऐंचली और मुसाधा गायन वस्तुतः श्रुति परंपरा से चला आ रहा है। इसकी एक विशिष्ट परंपरा है। धार्मिक कथानक और उपाख्यान पृथक-पृथक रूप से इस गायन परंपरा में प्रस्तुत किए जाते हैं। ऐंचली और मुसाधा लोक गाथा गायन की शैली में अंतर पाया जाता है। ऐंचली गायन में तो केवल गाथा का गायन होता है, परंतु मुसाधा में गाथा गायन का प्रसंग गाने के साथ बीच-बीच में स्थानीय भाषा में उसकी व्याख्या कथा के रूप में की जाती है।

ऐंचली लोक गाथा गीत धार्मिक एवं ऐतिहासिक आस्था के प्रतीक ‘नुआला’ उत्सव में गाए जाते हैं। नुआला यानी शिव भगवान के निमित्त लोक परंपरागत पूजा-अर्चना एवं आराधना है, जिसका आयोजन विशेष लोक पारंपरिक विधि से किया जाता है। नुआला उत्सव का आयोजन नया मकान बनाने पर, मनौती पूर्ण होने पर और विवाह के शुभ अवसर पर किया जाता है। ऐंचली गायन में चार लोक गायक कलाकार होते हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘बंदे’ या ‘ऐंचलेडे’ कहते हैं। मुसाधा लोक गाथा गायन का आयोजन भगवान शिव के निमित्त नई फसल होने पर, मन्नत पूर्ण होने पर विशेष रूप से किया जाता है।

इसके अलावा मुसाधा लोक गायक घर-घर जाकर अपना गायन सुनाकर नई फसल बधाई के रूप में भी प्राप्त करता है। मुसाधा गायन में मात्र दो कलाकार होते हैं। पुरुष कलाकार को ‘घुराई’ और स्त्री कलाकार को ‘घुरैण’ कहते हैं। मुसाधा लोक कलाकार शायद विश्व में एकमात्र लोक कलाकार है, जो एक साथ दो वाद्य यंत्रों को बजाते हुए गाता है। एक हाथ में वाद्य यंत्र ‘खंजरी’ से ताल बजाता है और दूसरे हाथ से गले में लटकाया वाद्य यंत्र ‘रूबाना’ (तार वाद्य) से संगीत देते हुए गाता है। घुरैण (स्त्री कलाकार) हाथों में ‘कंसी’ बजाते हुए गाने में साथ देती है। कारक लोक गाथा में देवी-देवताओं का जन्म तथा उनकी महिमा का गुणगान किया जाता है।

इसके अलावा नाग महिमा, पांडवों की गाथा इत्यादि गाई जाती है। इसमें दो कलाकार होते हैं। एक कलाकार  तार वाद्य यंत्र बजाते हुए संगीत देते गाता है और दूसरा कलाकार ढोलक पर ताल बजाता  है। तार वाद्य यंत्र बजाने वाले को ‘गारडी’ कहते हैं। यह देवी-देवताओं की महिमा गाकर लोगों का इलाज भी करता है। बार गायन लोक गाथा में राजाओं के यश, शौर्य और युद्ध के किस्से सुनाए जाते हैं, जिन्हें अबदाल कहते हैं। लोक गायन गाथा हरणातर और भगत में केवल पुरुष कलाकार ही होते हैं।

भगत लोक नाट्य में भी राजाओं के किस्से जैसे राजा हरिश्चंद्र, राजा मोरध्वज, रामायण के प्रसंग, सरवन कुमार किस्सा, कृष्ण लीला और स्वांग यानी हास्य-व्यंग की लीलाएं करके लोगों का मनोरंजन करते हैं। छिंझैटी लोक गायन में पुरुष कलाकार एक गोलाकार वृत्त बनाकर बैठकर अपने साथियों के साथ पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाते हुए नाचते और गाते हैं। गुग्गा गायन लोक गाथा में राणा मंडलीक की व्युत्पत्ति का वर्णन किया जाता है तथा नाग लीलाओं का विस्तार से वर्णन किया जाता है। दरुणे लोक गाथाएं बिना ताल-संगीत के लंबी लय में गाई जाती हैं।

इस लोक गाथा में प्यार, मोहब्बत, संयोग, वियोग आदि का वर्णन बड़े ही मनभावन और सुंदर ढंग से किया जाता है। धार्मिक लोक गाथा ऐंचली और मुसाधा में धार्मिक   रामायण, महाभारत और शिव पुराण के ऐतिहासिक आख्यानों को गाथाकार ने अपनी बोली में निबद्ध किया है।

ऐंचली गायन व मुसाधा गायन वस्तुतः श्रुति परंपरा से चला आ रहा है। यह गायन एक विशिष्ट परंपरा में गाया जाता है। धार्मिक कथानकों, आख्यानों, उपाख्यानों और युगयुगीन कालकरमिक ऐतिहासिक संदर्भों को मधुर शैली में आज भी प्रस्तुत करते हैं। यह इन गाथाओं का ऐतिहासिक महत्त्व है। चंबा की उपरोक्त विविध गायन लोक गाथाएं विलुप्त होती जा रही हैं, जिनके लेखन व संरक्षण की अत्यंत आवश्यकता है। इन गाथाओं को विरसा लोग ही गाया करते हैं। पिछले लगभग 40 वर्षों से मैं इन विविध लोक गाथाओं की रिकॉर्डिंग और लेखन करके सुरक्षित रखता आ रहा हूं, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण इस विविध अमूल्य धरोहर का प्रकाशन करवाने और रिकॉर्डिंग करवाने में असमर्थ हूं।


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