पीएचडी दाखिले में दिव्यांगों से भेदभाव पर राज्यपाल से शिकायत
शिमला-प्रदेश विश्वविद्यालय में हर वर्ग के छात्रों का विरोध शुरू होने लगा है। अब विश्वविद्यालय के डिसेबल्ड स्टूडेंट्स ने सवाल उठाए हैं। वहीं आरोप लगाया कि एचपीयू प्रशासन पीजी का रिजल्ट आए बिना ही पीएचडी में सीटे भरने का प्रोसेस शुरू कर रहे हैं। डिसेबल्ड स्टूडेंट्स एंड यूथ एसोसिएशन (डीएसवाईए) ने राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय से शिकायत की है कि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय दिव्यांग विद्यार्थियों को पीएचडी में प्रवेश देने में पीजी कक्षाओं के परीक्षा परिणाम का इंतजार नहीं कर रहा है। छात्रों ने राज्यपाल से मांग की है कि दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए आरक्षित पीएचडी की सीटें पीजी कक्षाओं के रिजल्ट निकलने के बाद भरी जाएं।
राज्यपाल एवं हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलाधिपति बंडारू दत्तात्रेय को भेजे एक पत्र में डीएसवाईए के संयोजक मुकेश कुमार और सह-संयोजक संयोजक सवीना जहां ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता अध्ययन प्रोफेसर हमेशा से दिव्यांग विद्यार्थियों के साथ अन्याय करते रहे हैं। उन्होंने कहा कि हर शैक्षणिक विभाग में दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए एक-एक सीट का विशेष आरक्षण देने का फैसला कार्यकारिणी परिषद ने दिसंबर 2019 में लिया था। छात्रों ने आरोप लगाते हुए कहा कि उसके बाद अधिष्ठाता अध्ययन ने यह सीटें भरने की प्रक्रिया शुरू करने में नौ महीने लगा दिए।
उन्होंने कहा कि जेआरएफ और दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए पीएचडी में डायरेक्ट प्रवेश के आवेदन की आखिरी तारीख 3 अक्तूबर थी। अब अधिष्ठाता अध्ययन ने सभी विभागों को फरमान जारी कर प्रवेश प्रक्रिया 26 अक्तूबर तक पूरी करने के निर्देश दिए हैं। इससे वे दिव्यांग विद्यार्थी पीएचडी में प्रवेश लेने से वंचित रह जाएंगे, जिन्होंने अभी पीजी की परीक्षाएं दी हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय को दिव्यांगों की डायरेक्ट सीटें भरने के लिए संबंधित अ यर्थियों के गोपनीय परीक्षा परिणाम तुरंत मंगाने चाहिए, या फिर परीक्षा परिणाम घोषित करने का इंतजार करना चाहिए। मुकेश कुमार और सवीना ने राज्यपाल से इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करने की मांग की है। उनका कहना है कि कोरोना के कारण पीजी परीक्षाएं आयोजित करने में हुई देरी के लिए दिव्यांग विद्यार्थी जिम्मेवार नहीं है। इसलिए परीक्षा परिणामों का इंतजार कर रहे दिव्यांग विद्यार्थियों को पीएचडी की प्रवेश प्रक्रिया में भाग लेने से वंचित नहीं किया जा सकता।
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