कोरोना के विरोधाभास

By: Oct 21st, 2020 12:06 am

वैज्ञानिकों की नेशनल सुपर मॉडल समिति ने दावा किया है कि फरवरी, 2021 में, भारत में, कोरोना वायरस समाप्त हो जाएगा। ‘समाप्त’ शब्द की जगह ‘नगण्य’ कह सकते हैं, क्योंकि वैज्ञानिकों ने अंग्रेजी भाषा में खुलासा किया है। बीते तीन सप्ताह से अधिक के अंतराल में संक्रमण के नए मामले और मौतें कम हुई हैं। कुछ राज्यों में एक भी मौत सामने नहीं आई है। हर रोज औसतन 20-22 हजार संक्रमित मामले कम मिल रहे हैं, लेकिन फरवरी तक देश में एक करोड़ 06 लाख संक्रमित मरीज होंगे। बेशक यह रुझान और आकलन सुखद है, लेकिन पहला विरोधाभास यह है कि इसी घोषणा के समानांतर महामारी से निपटने के लिए बनाई गई टास्क फोर्स के प्रमुख एवं नीति आयोग के सदस्य डा. विनोद पॉल ने चेतावनी दी है कि सर्दियों की ठंड में कोरोना वायरस की दूसरी लहर आ सकती है, लिहाजा संक्रमण के मामले व्यापक स्तर पर बढ़ सकते हैं। डा. पॉल का आकलन यह भी है कि सर्दियों में दिल्ली अर्द्धराज्य में ही 15,000 संक्रमित मामले हर रोज की स्थिति आ सकती है। बेशक ऐसा होना तय नहीं है, लेकिन आपको याद दिला दें कि डा. पॉल ने ही भविष्यवाणी की थी कि जून-जुलाई में कोरोना संक्रमण खत्म हो जाएगा। हकीकत देश के सामने है।

 वह दावा भी आंकड़ों और डाटा के आधार पर किया गया था और इस बार भी दावे इन्हीं आधारों पर किए गए हैं। देश तय करे कि ऐसे दावों पर विश्वास करना चाहिए अथवा नहीं, लेकिन इन दावों में गंभीर विरोधाभास हैं। यदि फरवरी, 2021 तक कोरोना संक्रमण के प्रभाव और प्रहार नगण्य होने हैं, तो उसके आसार सर्दियों में ही दिखने चाहिए। यदि सर्दियों में कोरोना वायरस का फैलाव जारी रहता है, तो फरवरी तक के निष्कर्ष का क्या होगा? बेहतर होता कि कोरोना संबंधी सभी समितियां बैठकर आपस में विमर्श करतीं और एक सहमत-बिंदु पर पहुंचतीं। उसके बाद देश के सामने कोई घोषणा करनी चाहिए थी। बहरहाल इसी दौरान केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्द्धन ने स्वीकार किया है कि कोरोना का सामुदायिक संक्रमण हुआ है, लेकिन कुछ जिलों और इलाकों तक ही सीमित रहा है। देश भर में सामुदायिक संक्रमण नहीं देखा गया। हालांकि केरल, पश्चिम बंगाल और दिल्ली की राज्य सरकारें सामुदायिक संक्रमण की घोषणा करती रही हैं, लेकिन यह केंद्र सरकार का अधिकार-क्षेत्र है, लिहाजा उसे जून-जुलाई में ही यह स्थिति स्वीकार करनी चाहिए थी। अब कोरोना वायरस का देशव्यापी फैलाव इतना बढ़ चुका है कि संक्रमण के स्रोत का पता लगाना असंभव-सा है। लिहाजा आसार ऐसे बने हुए हैं कि संक्रमण जारी है, लेकिन वह बाहरी लोगों के संपर्क से आ रहा है अथवा संक्रमित इलाकों में ही फैलाव हो रहा है, इसका कोई ठोस अध्ययन फिलहाल सामने नहीं है। वैज्ञानिकों की समिति का निष्कर्ष यह भी रहा है कि देश की 30 फीसदी से ज्यादा आबादी संक्रमित हो चुकी है, लेकिन अब 22 राज्यों और संघशासित क्षेत्रों में 20,000 से कम सक्रिय मरीज शेष हैं। यानी जो उपचाराधीन हैं।

 हालांकि महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल में यह संख्या 50,000 से अधिक है। मरीजों से ज्यादा संख्या हर रोज स्वस्थ होने वाले लोगों की है। ऐसे करीब 79 फीसदी लोग महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, उप्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, छत्तीगढ़ और ओडिशा राज्यों से हैं। निष्कर्ष यह भी दिया गया है कि यदि देश में लॉकडाउन लागू नहीं किया जाता, तो जून में ही 1.40 करोड़ संक्रमित मरीजों के साथ ‘पीक’ की स्थिति होती और फरवरी, 2021 तक 2.4 करोड़ लोग संक्रमित होते। बीते अगस्त माह तक करीब 26 लाख मौतें हो जातीं, लेकिन शुक्र है कि ऐसे हालात नहीं बने। अब यदि पांच राज्यों-केरल, राजस्थान, छत्तीगढ़, कर्नाटक और बंगाल-को छोड़ दिया जाए, तो ज्यादातर राज्यों में कोरोना का संक्रमण थमा है या खत्म-सा हुआ है। देश में महामारी से मरने वालों की दर दुनिया में सबसे कम है, स्वस्थ होने वालों की दर 88 फीसदी को लांघ चुकी है। समिति कोरोना की दूसरी या तीसरी लहर को लेकर अभी विश्वस्त नहीं है, क्योंकि शरीर की एंटीबॉडी कितने समय तक बरकरार रहती है, इसका कोई ठोस निष्कर्ष सामने नहीं है। देश में कोरोना का खौफ  पहले जैसा नहीं रहा है। जीवन के सभी पहलू और सभी गतिविधियां लगभग खोल दी गई हैं। जीवन सामान्य-सा दिखने लगा है। आर्थिक बढ़ोतरी की सूचनाएं भी आ रही हैं और सबसे अहं है कि संक्रमित मरीजों की रोजाना संख्या घट रही है। सर्दियों का प्रभाव और फिर फरवरी का निष्कर्ष देखना दिलचस्प होगा।


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