माता हिडिंबा बिना शुरू नहीं होता दशहरा

राज परिवार की दादी के निर्देशों पर ही होता है परंपराओं का निर्वहन, नए स्वरूप में मनाए जाने वाले उत्सव के लिए मिला है देवी को न्योता

भुंतर-कोरोना संक्रमण के संकट के कारण नए व लघु स्वरूप में मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में इस बार केवल सात देवी-देवता शामिल होंगे। ये वे देवता हैं, जिनकी दशहरा में विशेष भूमिका रहती है और इनके बाद कुल्लू दशहरा का आगाज नहीं होता है। इन आमंत्रित देवी-देवताओं में प्रमुख हैं माता हिडिंबा, जो राज परिवार की दादी भी कहलाई जाती है। माता हिडिंबा के आने के बाद ही दशहरा उत्सव की गतिविधियां आरंभ होती हैं। लिहाजा, माता हिडिंबा को दशहरा उत्सव समिति की ओर से इस बार का पहला निमंत्रण भेजा गया।

देव समाज के प्रतिनिधियों के अनुसार माता हिडिंबा ने किसी समय में राज परिवार के पहले राजा विहंगमणि पाल को एक वृद्धा के भेष में दर्शन दिए थे। जानकारी के अनुसार वृद्धा को जब राजा विहंगमणि पाल ने उसके गंतव्य तक पहुंचाया तो वृद्धा के रूप में माता ने उसे कहा था कि जहां तक उसकी नजर जाती है, वहां तक की संपति उसी की है और माता ने उसे इस जनपद का राजा घोषित कर दिया था। तभी से राजा ने माता को दादी के रूप में पूजना आरंभ कर दिया था। कहा जाता है कि यहां की पूरी संपत्ति माता हिडिंबा की है। इसी कारण से आज भी राजवंश के लोग दादी कहकर पुकारते हैं। माता हिडिंबा राज परिवार की दादी होने के कारण पहले पूजनीय थीं और माता की पूजा-अर्चना भी होती थी। राजा जगत सिंह ने माता के दैविक वचनों का अनुसरण करते हुए ही 16वीं शताब्दी में कुल्लू दशहरा की परंपराओं का आगाज किया था। इसके चलते आज भी माता की पूजा और उनके कुल्लू में पहुंचने से पहले दशहरा की प्रक्रियाओं को आरंभ नहीं किया जाता। माता हिडिंबा का यहां पहुंचने पर जोरदार स्वागत किया जाता है। जिला मुख्यालय के रामशिला में राजा का एक सेवक चांदी की छड़ी लेकर जाता है और पारंपरिक तरीके से माता का अभिवादन कर रघुनाथ के दरबार और फिर राजा के बेहड़े में पहुंचाता है। दशहरा उत्सव में दौरान सभी मेहमान देवताओं में माता हिडिंबा को भी पहली श्रेणी में रखा जाता है।

माता के आशीर्वाद से होगा उत्सव का आगाज

माता हिडिंबा की दशहरा में हाजिरी इतनी अहम है कि माता के भगवान रघुनाथ व राज परिवार से मिलन के बाद ही माता की इजाजत के बाद भगवान रघुनाथ की यात्रा आरंभ होती है। इसके बिना भगवान रघुनाथ किसी भी देव गतिविधि को आरंभ नहीं करते हैं। इस बार कोरोना संक्रमण के संकट के कारण छोटे स्वरूप में मनाए जाने वाले दशहरा में माता हिडिंबा के निर्देशों के तहत ही उत्सव का आगाज होगा और उत्सव की परंपराओं का निर्वहन किया जाएगा।