लाड़लों को हक दिलाने उतरेगी मातृशक्ति, करुणामूलक आश्रित संघ की माताएं आमरण अनशन पर बैठने की तैयारी में

By: दिव्य हिमाचल ब्यूरो — हमीरपुर Oct 30th, 2020 12:06 am

सरकारी सेवा करते हुए हमारे अपने वर्षों पहले हमें हमेशा के लिए छोड़ कर इस संसार से चले गए, उस वक्त सरकार ने आस बंधाई कि जब हमारे बच्चे बड़े हो जाएंगे, तो उन्हें उनकी शिक्षा और काबलियत के हिसाब से सरकारी विभागों में करूणामूलक आधार पर नौकरी दी जाएगी। आज जब हमारे बच्चों को अपना हक लेने के लिए आमरण अनशन जैसा कदम उठाना पड़ रहा है, तो लग रहा है कि हमारे साथ धोखा किया गया है। यह दर्द उन माताओं का है, जिनके लाड़ले करूणामूलक आधार पर नौकरी पाने के लिए शिमला में तीन दिन से आमरण अनशन पर बैठे हैं। उनका कहना है कि इससे पहले कि हमारे लाड़लों की जान पर बन आए, तो हम ही आमरण अनशन पर बैठ जाती हैं। माताओं अनिता देवी, जसविंद्र कौर, संधला देवी, सुनीता देवी, कलांशा देवी, कमला देवी और शेल्मनी का कहना है कि अगर प्रदेश सरकार यह चाहती है कि अपने लाड़लों को हक दिलाने के लिए हम आमरण अनशन पर बैठ जाएं, तो यही सही।

 उन्होंने सवाल किया है कि हमारे अनशन पर बैठने से सरकार को शर्म तो नहीं आएगी। बता दें कि करूणामूलक आश्रित संघ के सदस्य 20 अक्तूबर से शिमला में क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठे थे, लेकिन जब सरकार की ओर से एक सप्ताह तक उनसे मिलने कोई नहीं आया, तो उन्होंने आमरण अनशन शुरू कर दिया। शिमला की ठंड में प्रदेश के विभिन्न जिलों से पात्र अभ्यर्थी आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं। उनकी माताओं को इस बात का मलाल है कि उनके बच्चों के जीवन की सरकार को कोई फिक्र नहीं है। सरकार ने 1990 में करूणामूलक आधार पर नौकरी देने के लिए नीति प्रदेश में बनाई थी। शुरू-शुरू में तो पात्र युवाओं को इसका लाभ मिला, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, तो फाइलें औपचारिकताओं में फंसती चली गईं। पिछले करीब 15 वर्षों से प्रदेश में करूणामूलक आधार पर नौकरी पाने का इंतजार कर रहे युवाओं की संख्या 4500 के आसपास हो गई है। बताते हैं कि इनमें 35 से 40 परिवार  ऐसे भी हैं, जिनके न मां है न पिता। वे आज तक इसी उम्मीद के सहारे हैं कि सरकार उन पर नजर-ए-इनायत करेगी।


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