मेरा मोबाइल कुमार: पूरन सरमा, स्वतंत्र लेखक

By: पूरन सरमा, स्वतंत्र लेखक Oct 23rd, 2020 12:06 am

मैं इकलौते पुत्र का पिता हूं। इस दृष्टि से मेरा और उसका महात्म्य है। उसके पास तीन मोबाइल फोन हैं। दो उसकी जेबों में भरे रहते हैं और एक गले में लटका रहता हैं। पता नहीं कब किस दिशा से कॉल या मैसेज आ जाए। हमेशा चौकस रहता है। मेरा मोबाइल कुमार एक जगह ज्यादा देर बैठ या ठहर भी नहीं सकता है। वह हर दस-पांच मिनट में स्थान बदल लेता है। उसने एक मोबाइल फोन मुझे भी जबरन सौंप दिया है। उसका तर्क यह है कि आपसी संपर्क के लिए मेरे पास भी मोबाइल अनिवार्य है। मैं विवशता में मोबाइल जेब में रखे सोचता रहता हूं कि ठीक है कम से कम मैं बच्चे के टच में तो हूं। कई बार मैं वहम की वजह से जेब से मोबाइल निकालकर देखता रहता हूं कि कहीं कोई कॉल या मैसेज तो नहीं है। लेकिन वह मात्र मेरा वहम ही होता है, जो मुझे अनचाहे रूप से चौकस रखता है।

 पांच-सात दिन में एक-दो बार ही घंटी बज पाती है मेरे मोबाइल की। उसका एक कारण यह भी है कि मैंने अपने नंबर किसी मित्र या जान-पहचान वाले को दिए ही नहीं हैं। दफ्तर में तो अभी यह पता ही नहीं है कि मेरी जेब में मोबाइल भी रखा हुआ है। दफ्तर में नंबर देने का मतलब उड़ता तीर लेने के समान है। कब अफसर को काम आ पड़े और वह कार्यालय समय बाद भी मेरा उपयोग करने की स्थिति में आ जाए। हालांकि दफ्तर में मेरा महत्त्व नगण्य है। परंतु मैं अपने आपको महत्त्वपूर्ण मानता रहा हूं। जहां तक मोबाइल कुमार के मोबाइलों का प्रश्न है, वे सब सदैव सक्रिय रहते हैं। वह खाना खाते समय, सोते समय, यहां तक कि टॉयलेट में भी इस सेवा का भरपूर लाभ उठा रहा है। कई बार उसे असमंजस होता है कि वह तीनों मोबाइल की घंटियों में से पहले किसे सुनें।

 लेकिन उसने पता नहीं कैसे तालमेल को मेनटेन कर रखा है कि एक ही साधे सब सधे की तर्ज पर हर कॉल कर्ता को संतुष्ट कर देता है। उसकी स्टाइल को मैं अनेक बार नमस्कार कर चुका हूं। जब वह मोबाइलों से लैस होकर मोटर साइकिल पर सवार होता है तो हो सकता है पड़ोसी दांतों तले अंगुली दबाते हों। मैंने उन्हें दांतों तले अंगुली दबाते नहीं देखा, इसलिए श्योर नहीं हूं। लेकिन वह है हैरतअंगेज। अद्भुत श्रवण शक्ति है उसमें। फोन करने में भी वह मुक्त मन को कभी नहीं दबाता। जब ही तो उसका बिल अकेले ढ़ाई हजार से चार हजार के बीच जाता है। मुझे यह भारी-भरकम बिल चुभता नहीं है क्योंकि मोबाइल के जरिए मैं कम से कम अपने इकलौता पुत्र से हर वक्त टच में रहता हूं। दूसरे, वह मेरा इकलौता पुत्र है, इसलिए मैं उससे कभी नाराज नहीं होता हूं। मोबाइल पर अकसर मेरे पुत्र की गर्ल फ्रेंड्स चैट करती रहती हैं, इस तरह दोनों का वक्त भी बढि़या बीत जाता है। पढ़ाई हो या न हो, लेकिन मोबाइल पर चैट आजकल जरूरी हो गया है। चैट से जो सुकून मिलता है, वह पढ़ाई से मिलने वाला नहीं है। हर छह महीने बाद पुराने मोबाइल को नए से बदल लेना मेरे पुत्र की आदत-सी बन गई है। यह भी मुझे चुभता नहीं है क्योंकि आखिर वह मेरा इकलौता पुत्र है।


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