नगर निगम बनाम शहरीकरण-2

By: Oct 30th, 2020 12:06 am

हिमाचली नागरिक की जिम्मेदारी-जवाबदेही के पैमाने में नगर निकायों का आरोहण अगर सफल होता है, तो शहरीकरण की तरफ लपकते उद्देश्यों में अवश्य ही निखार आएगा। तीन नए नगर निगमों के तहत एक लाख बीस हजार की आबादी का शरीक होना, केवल एक क्षेत्रीय समाधान नहीं, बल्कि हर नागरिक के कर्त्तव्य तथा आर्थिक सहयोग की गिनती भी है। यह उस राज्य के नागरिक समाज के लिए कोई कहर की बात नहीं, जहां प्रति व्यक्ति आय पिछले साल तक 183108 रुपए रही है और जहां हर घर से कोई न कोई सरकारी नौकरी या सैन्य सेवाओं से ताल्लुक रखता है। दरअसल शहर में जीने की सोहबत तो हिमाचल में पैदा हो गई, लेकिन शहरी जिंदगी की शर्तें कबूल नहीं हुईं। हिमाचल के दर्जनों गांव अपनी समृद्धि व आय के हिसाब से पारंगत हुए, लेकिन किसी भी प्रकार की शुल्क अदायगी में योगदान न के बराबर रहा। राज्य सरकारों ने बजटीय प्रावधानों में जनता की इस तरह परवरिश की कि सीधे कभी कर नहीं लगा और इसी वजह से जीवन शैली की आधुनिक सुविधाओं के लिए भी लोग शुल्क अदा करने से कतराते हैं। ऐसे में शहरी मानसिकता में जीते पूरे हिमाचल को अब नगर निगमों की सीमाओं में प्रवेश करने का अगर हक चाहिए, तो इसकी कीमत भी अदा करनी होगी। शहर और गांव की परिभाषा को मुकर्रर करने की नीति व नियम लागू करके ही हम कर अदायगी में अंतर पैदा कर सकते हैं। यानी उसी बस्ती को गांव माना जाए जहां सत्तर फीसदी भूमि कृषि या बागबानी के अधीन हो। अगर इससे ऊपर भवन निर्माण या व्यापारिक गतिविधियां बढ़ती हैं, तो व्यवस्थागत तरीके से ऐसे गांव को शहरी निकाय की परिधि में लाना होगा।

 दूसरी ओर शहरी निकायों के सीमा क्षेत्र से जुड़ते कम से कम दस किलोमीटर क्षेत्र को किसी भी प्रकार के निर्माण की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए और यह उसी स्थिति में छूट दी जाए, जब पूरा क्षेत्र शहरी विकास प्राधिकरण या किसी शहरी निकाय के तहत शहरी विकास योजना के प्रारूप में विकसित होने की मंशा जाहिर करे। सड़कों से कम से कम दस से पंद्रह मीटर की दूरी तक नव निर्माण पर पूरी तरह रोक लगाने के साथ-साथ हिमाचल को कम से कम आधा दर्जन उपग्रह शहर या कर्मचारी व पूर्व सैन्य कर्मचारी बस्तियां स्थापित करनी होंगी। तमाम धार्मिक स्थलों के दस किलोमीटर दायरे में व्यवस्थित शहरी विकास योजना पर अमल करते हुए वहां विकास बोर्ड के तहत प्रबंधन व्यवस्था कायम की जा सकती है। इसी तरह बड़े बांधों के तटीय कस्बों-शहरों के लिए भी अलग तरह की योजनाएं-परियोजनाएं बना कर पनपते शहरीकरण को संबोधित करना होगा। बेशक हिमाचल ने साहसिक कदम उठाते हुए तीन और नगर निगम जोड़े हैं, लेकिन हर शहर की अपनी महक का विस्तार भी होना चाहिए। मसलन पालमपुर शहर को प्रदेश की गार्डन सिटी के रूप में विकसित करना होगा, तो मंडी शहर को हिमाचल की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में शोहरत, सुविधा तथा अधोसंरचना से सशक्त करने की जरूरत रहेगी। सोलन को प्रदेश के अति आधुनिक व अपार्टमेंट सिटी के रूप में विकास का ताज पहनाने के लिए बहुत प्रयास की जरूरत। हर शहर के चरित्र के अनुरूप पर्यटन, परिवहन, पीडब्ल्यूडी, बागबानी, वन, कला-संस्कृति, चिकित्सा व जल शक्ति जैसे विभागों को अपनी योजनाओं को भविष्य के अनुरूप नई शक्ल व नवाचार से जोड़ना होगा। हिमाचल का हर शहर निवेश की गुंजाइश रखता है अतः प्राथमिक तौर पर भूमि बैंक विकसित करके आमदनी के स्रोत बढ़ाए जा सकते हैं।

 शहरी क्षेत्रों में विकास व नागरिक सुविधाओं की अहमियत को समझते हुए बिजली व पानी की दरों के रूप में नगर निकायों की आमदनी जोड़ी जा सकती है। शहर में वाहन पंजीकरण के साथ निजी पार्किंग की शर्त जोड़ते हुए नगर निकायों को वाहन पंजीकरण का शेयर दिया जाए। सरकार को शहरी निकायों की आमदनी बढ़ाने के अवसर प्रदान करने होंगे, मसलन पीपीपी मोड पर व्यापारिक, खेल, मनोरंजन व पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा दिया जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार हिमाचल में शहरीकरण की रफ्तार तीस प्रतिशत के ऊपर पहुंच चुकी है, लेकिन अभी तक नगर निकायों के तहत पांच लाख का आंकड़ा भी एकत्रित नहीं हुआ है। बीबीएन के दायरे तकरीबन साढ़े चार लाख की आबादी न तो शहरी और न ही ग्रामीण परिदृश्य में पल रही है। अगले कुछ सालों में हिमाचल को कम से कम बीस लाख लोगों के लिए शहरी व्यवस्था का इंतजाम करना पड़ेगा और इसके मंथन के साथ-साथ योजनाओं-परियोजनाओं का आज से ही रुख मोड़ना होगा। विभिन्न विभागों की सोच में ग्रामीण प्राथमिकताओं का आंचल रहा है, अब इसे शहरी संकल्प में स्वीकार करने की जरूरत है।


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