प्रधानमंत्री का संबोधन

By: Oct 22nd, 2020 12:06 am

जब भी प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करते हैं, तो अपेक्षाएं और उम्मीदें की जाती हैं कि संबोधन व्यापक होगा। आम आदमी को राहत देने वाली घोषणा होगी अथवा कोई आपातकालीन ऐलान भी किया जा सकता है। यही कारण है कि अटकलों और अनुमानों का बाजार गरम होने लगता है, लेकिन मंगलवार शाम को प्रधानमंत्री मोदी का जो संक्षिप्त संबोधन देश ने सुना, वह एकांगी और अधूरा माना जा सकता है। बेशक यह त्योहारों का मौसम है, लिहाजा उल्लास और खुशियों का माहौल भी होना चाहिए। देश का औसत नागरिक भी भरपूर मन और निष्ठा से इन त्योहारों को जी सके, शिद्दत से इन्हें मना सके। यह स्थिति सुनिश्चित करना भी प्रधानमंत्री और सरकार का बुनियादी दायित्व है। कोरोना काल में जिन 10-12 करोड़ भारतीयों की नौकरियां अथवा दिहाडि़यां छिन गई थीं, उनमें से आज भी करोड़ों हाथ खाली हैं। नतीजतन जेब भी खाली है। ऐसे चेहरों को रोते-व्यथित होते टीवी चैनलों पर अक्सर देखा जा सकता है। बेशक देश के ज्यादातर हिस्से अनलॉक हो चुके हैं, लेकिन हालात अभी सामान्य नहीं हैं। सवाल यह भी है कि यह जमात त्योहार कैसे मना पाएगी? एकदम आर्थिक सवालों पर पहुंचना हमारा मकसद नहीं था, लेकिन यह इस दौर का सबसे भयावह मुद्दा है। कोरोना वायरस का संक्रमण हमारी 138 करोड़ से ज्यादा की आबादी में से अभी तक 76 लाख को ही संक्रमित, प्रभावित और बीमार कर पाया है। उनमें से भी 67 लाख से अधिक स्वस्थ हो चुके हैं। बेशक प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन एक उपदेशक, समाज-सुधारक और अभिभावक का आह्वान था। बेशक कोरोना महामारी का विषाणु अब भी जिंदा और मौजूद है। किसी भी लापरवाही के अंजाम खतरनाक हो सकते हैं। एक साथ परिवार और समाज संक्रमण के दायरे में आ सकते हैं, लिहाजा अब भी सतर्कता और सावधानी अनिवार्य है। इस तरह आगाह करना और चिंता साझा करना भी प्रधानमंत्री का दायित्व है, लेकिन हमारे प्रधानमंत्री अक्सर आर्थिक मुद्दों पर खामोश रहते हैं या टाल जाते हैं। यह उनका कमजोर पक्ष है। कोरोना के संदर्भ में भी अमरीका, ब्राजील और यूरोप की स्थितियों से भारत की तुलना करते रहे हैं। जीडीपी की विकास दर और कोरोना वायरस के प्रभाव तथा प्रबंधन के संदर्भ में बांग्लादेश, चीन, नेपाल, मलेशिया, इंडोनेशिया, वियतनाम, अफगानिस्तान और श्रीलंका आदि एशियाई देशों की तुलना में हमारी आर्थिक स्थिति बदतर है और भारत इस सूची में सबसे निचले पायदान पर है। हमारी दूसरी तिमाही की आर्थिक विकास दर भी -10.3 फीसदी रही है। यह आकलन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का है।

 प्रधानमंत्री ने कोरोना के संदर्भ में कभी इन देशों का उल्लेख नहीं किया। हम यह विश्लेषण इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि करोड़ों बेरोजगारों और बदहाल औद्योगिक क्षेत्रों की अपेक्षा रही है कि प्रधानमंत्री एक और आर्थिक पैकेज की घोषणा करें, ताकि आम भारतीय खड़ा होने के लिए हिम्मत जुटा सके। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन का तो बुधवार के अखबारों में बयान छपा है कि एक और राहत पैकेज का विकल्प खुला है। यानी सरकार एक और आर्थिक एवं व्यापारिक पैकेज देने पर विचार कर रही है। यदि देना है, तो इससे अनुकूल समय और क्या हो सकता है, क्योंकि त्योहारों का मौसम है। यदि लोग खरीददारी करेंगे, तो बाजार में मांग पैदा होगी। उसी से आपूर्ति और उत्पादन जुड़े हैं। होटल, पर्यटन, परिवहन, एयरलाइंस और कपड़ा उद्योगों में अब भी संकट के हालात हैं और धंधा पटरी पर नहीं लौटा है। प्रधानमंत्री को इस संदर्भ में सभी जानकारियां होंगी! बेशक प्रधानमंत्री का परामर्श सिर-माथे होना चाहिए कि कोरोना के इस दौर में मास्क पहनें, दो गज की दूरी रखें और बार-बार हाथ साबुन से धोएं। जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं, लेकिन लगातार जागरूकता के बावजूद बिहार की चुनावी जनसभाओं में या किसी विरोध-मार्च में अथवा अपने आसपास के बाजार और पार्कों में देखा गया है कि बहुत कम लोग नियमों का पालन कर रहे हैं। बिहार में तो सरेआम मान्यता है कि कहां है कोरोना? कोरोना की बंदिशें आम आदमी के संस्कारों और शिक्षा से जुड़ी हैं। यह चेतना और जागृति व्यक्ति के स्तर पर होती है, बलात् नहीं कराई जा सकती। बहरहाल प्रधानमंत्री का फोकस था कि कोरोना-काल में देश के लोगों को सचेत किया जाए। देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति भी इसी से चिपका एक अहं विषय है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।


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