प्रोटोकोल में लाश : निर्मल असो, स्वतंत्र लेखक

By: निर्मल असो, स्वतंत्र लेखक Oct 26th, 2020 12:03 am

समिति भी हैरान थी कि उनके साधारण व उपेक्षित श्मशानघाट में साधारण व्यक्ति की लाश के साथ-साथ दूसरे कफन में लिपटे मृत नेता कैसे एक साथ पहुंच गए। आश्चर्य यह भी था कि साधारण व्यक्ति की लाश कंधों पर थी, लेकिन नेता की वीआईपी वैन में। लाश के पीछे आ रहे वीआईपी लोगों के काफिले का इंतजार था और जहां सियासी प्रदर्शन हो वहां लाश तक की एेंठ बढ़ जाती है। किसी ने बताया कि मुख्यमंत्री अपने सरकारी हेलिकाप्टर में उड़कर राजधानी से आने वाले हैं। आखिर इस लाश को जलाने की प्रोटोकोल तय थी, लेकिन असाधारण परिस्थितियों में मरे साधारण व्यक्ति को यह छूट है कि मरने पर तुरंत आग के सुपुर्द हो जाए। किसी साधारण लाश को जलने में देर नहीं लगती, जबकि मुर्दा वीआईपी को तो सार्वजनिक दर्शन देने ही होते हैं। आम व्यक्ति को जीवनभर आग ही तो कबूल करनी है, सो लाश बनकर कौनसा अफसोस। नहीं जलेगी तो पुलिस है न कि कभी भी लावारिस बनाकर, रात के अंधेरे में पेट्रोल में डुबो-डुबो कर जला दे। यहां भी मसला कुछ ऐसा ही था। वीआईपी लाश के जलने से पहले आम लाश को उपलों की तरह भस्म करने की जल्दी में समाज और प्रशासन जुट गया, ताकि बाद में उसके धुएं से दिक्कत न हो।

अक्सर आम आदमी मरने के बाद अपना धुआं छोड़ जाता है, इसलिए गाहे-बगाहे अब इन लाशों के चिन्ह मिटाए जाते हैं। दूसरी ओर वीआईपी नेताओं की लाश अपनी अंतिम इच्छा जताती है। श्मशानघाट पर खुसर-पुसर यह नहीं थी कि मुख्यमंत्री अंतिम संस्कार की औपचारिकता में आंसू बहाएंगे, बल्कि यह थी कि किस सरकारी संस्थान के साथ लाश बने नेता का नाम चस्पां कर दिया जाएगा। इतना ही नहीं, कुछ लोग तो यह अनुमान लगा चुके थे कि कमबख्त पांच फुटिया नेता का कम से कम आठ-दस फुट का बुत किसी न किसी चौराहे पर कब्जा कर लेगा। अब तक साधारण लाश तेज अग्नि पकड़ चुकी थी। बीच-बीच में असहाय आंसुओं से भीगे चार कंधे तैनात थे ताकि जीवन की अंतिम क्रिया से चंद हड्डियां चुन लें और यही हुआ भी। सामने वीआईपी लाश तक काफिला पहुंच चुका था और इधर आम आदमी की ढीठ हड्डियों के सिवाय कुछ नहीं बचा था। दो लाशों के बीच श्मशानघाट समिति के लिए वीआईपी अवसर था, लिहाजा नेता की लाश को हर सुख-सुविधा और शृंगार दिया जाने लगा। यहां पूरा लोकतंत्र मेहनत करता हुआ दिखाई दिया। लोकतंत्र के हर स्तंभ के प्रतिनिधि वहां मौजूद थे, फिर भी अनूठी शोक सभा में देश अनाथ प्रतीत होने लगा था। हर संबोधन को देश के कान सुन रहे थे, लेकिन महान तो वह नेता हो रहा था जो प्रोटोकोल में मरा था। वह चुनावी रैली में मरा था, इसलिए महान था। वह जातीय आधार पर मरा था, इसलिए महान था। वह धार्मिक हिसाब से मरा था, इसलिए महान था। अंत में वह नेता होकर मरा, इसलिए आम आदमी और देश के वजूद से बड़ा नजर आ रहा था। मुख्यमंत्री ने अवसर की नजाकत को देखते हुए नेता के नाम पर बहुत सारे वादे कर दिए, लेकिन इस श्मशानघाट को नेता के नाम नहीं किया। अंत में समिति ने वीआईपी लाश जलाने के बाद यह फैसला लिया कि श्मशानघाट ही ऐसी जगह है जिसे आम आदमी के नाम पर कर दिया जाए। अब वहां वीआईपी नेता जलाए जरूर जाते हैं, लेकिन श्मशानघाट पर आम आदमी का नाम चस्पां है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App