रेलवे के निजीकरण के विरोध में रेलवे स्टेशन मास्टर को प्रधानमंत्री के नाम सौंपा ज्ञापन

By: एजेंसियां - हिसार Oct 2nd, 2020 12:06 am

भारतीय रेलवे व अन्य जनसेवाओं को निजीकरण, निगमीकरण व ठेकेदारीकरण के हमलों के विरोध में सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट) के बैनर तले आज आईजी चौक से लेकर रेलवे स्टेशन तक विरोध प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन के बाद रेलवे स्टेशन मास्टर को प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा गया। प्रदर्शन का नेतृत्व पार्टी के राज्य कमेटी सदस्य एवं जिला सचिव मेहरसिंह बांगड़ ने किया। ज्ञापन में कहा गया कि रेलवे देश में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला विभाग है और आम जनता के लिए सबसे सस्ता, सुलभ व सुरक्षित यातायात का साधन है। रेलवे को देश की जीवन रेखा कहा जाता है। पिछले करीबन दो-ढाई दशक से विभिन्न रूपों में इसके विघटन की एक सोची-समझी और बेरोकटोक प्रक्रिया के माध्यम से इसे एकाधिकार घरानों के हित-स्वार्थ में निजीकरण के लिए खोला जा रहा है।

देश के 109 रूटों पर 151 ट्रेनों को प्राइवेट मालिकाने में चलाने का केंद्र सरकार का निर्णय रेल कर्मचारियों व देश की जनता पर बड़ा हमला है। इसका निर्माण आम जनता से वसूले गये टैक्सों और मजदूर-कर्मचारियों की कड़ी मेहनत से हुआ है। निजी क्षेत्र का इसके निर्माण में रतीभर भी योगदान नहीं है। सार्वजनिक धन और लाखों श्रमिकों के खून-पसीने से बनी रेल पटरियों, स्टेशनों और एकीकृत बुनियादी ढांचे के अन्य संबंधित भागों का इस्तेमाल करने का एकाधिकार घरानों को खुली छूट होगी। नतीजतन, न केवल कर्मचारियों पर विभिन्न हमले किये जा रहे हैं, बल्कि अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ कर सरकार यात्रियों को भी आसानी से उपलब्ध सार्वजनिक परिवहन प्रणाली से वंचित करने जा रही है। निजी क्षेत्र को दिये जाने वाले स्टेशनों व अन्यों पर भी प्लेटफार्म टिकट, वेटिंग रूम, क्लाक रूम, शौचालय, पार्किंग व अन्य जरूरी सुविधाओं के शुल्कों में वृद्धि की जा चुकी है। असल में, सरकार पूरे रेलवे नेटवर्क का निजीकरण करने और लोगों को मुनाफाखोरों की दया पर छोड़नेे के लिए पूरी तरह से तत्पर है। इससे रेलवे विभाग का पूर्ण रूप से निजीकरण का सरकार का इरादा स्पष्ट नजर आता है। पहले प्रकाश टंडन व राकेश मोहन कमेटी और अब विवेक देव राय कमेटी की सिफारिशों के अनुसार रेलवे को देशी-विदेशी पूंजीपतियों को बेचने के लिए सरकार बड़ी तेजी से काम कर रही है।

उन्होंने मांग की कि जनहित को ध्यान में रखते हुए रेलवे समेत किसी भी सरकारी विभाग का निजीकरण न किया जाए और इस बारे में अब तक घोषित सभी निर्णय वापस लिये जाएं। इसके साथ ही निजीकरण, निगमीकरण और संकुचन के माध्यम से सरकारी क्षेत्र के अवमूल्यन, डाउनसाइजिंग और सरकारी क्षेत्र के विघटन की चालू प्रक्रिया के विपरीत इसका जनहितैषी विस्तार करने तथा रेलवे सहित सरकारी विभागों में सभी रिक्त पड़े पदों को स्थायी नियुक्ति के आधार पर भरने की मांग को प्रमुखता के साथ उठाया गया।


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