संजवां मंदिर

By: गोपाल शर्मा, कांगड़ा Oct 17th, 2020 12:22 am

हिमाचल प्रदेश को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता। यहां कण-कण में देवी-देवताओं का निवास है। जिला कांगड़ा की इंदौरा तहसील में ब्यास नदी के किनारे पर स्थित एक छोटा सा गांव संजवां बाबा मंसा राम जी की तपोभूमि है। श्री राम भक्त बाबा मंसाराम जी 16वीं शताब्दी में हुए। वे बाबा लालदयाल जी महाराज के समकालीन कहे जाते हैं। उनके जन्म स्थान के बारे में तो कुछ ज्ञात नहीं हो पाया। इतना ही पता चलता है कि वे बचपन में ही घर-परिवार को छोड़ कर साधु, महात्माओं की संगत में रहते हुए भगवान की साधना में लग गए। आरंभ में उन्होंने ऊना के जंगलों में तपस्या की। फिर घूमते- घूमते संजवां गांव में आ गए। उन्होंने पूरे क्षेत्र में सनातन धर्म की ऐसी अलख जगाई कि सदियां बीत जाने पर आज भी यह पताका फहरा रही है। यहां बाबा जी के स्थायी रूप से रहने के बारे में एक कथा प्रचलित है। जिला ऊना के जंगलों में भ्रमण करते हुए संजवां गांव में पहुंचे। यह बहुत ही छोटा गांव था। बाबा जी को प्यास लगी और उन्होंने एक घर से पानी मांगा। एक औरत घर के बाहर आई और बोली, बड़े बाबा बने फिरते हो, तो क्यों नहीं अपनी तपस्या के बल पर पानी निकाल लेते।

भगवे वस्त्र पहन लेने से ही कोई साधु नहीं बन जाता। यह सुन कर बाबा जी ने अपनी खड़ाऊं को जोर से धरती पर मारा और वहां पर पानी की धारा फूट पड़ी। यह देख कर वह औरत हैरान हो गई। इस गांव में पानी की बड़ी समस्या थी। बाबा जी ने औरत से कहा, माता जी आपने कुछ भी गलत नहीं किया। यह तो मैंने आप सब की परेशानी को दूर करने के लिए किया है। यह सुन कर उपस्थित लोग बाबा जी की जय-जयकार करने लगे। सभी ने बाबा जी को यहीं रह कर तपस्या करने का आग्रह किया। बाबा मंसा राम जी ने उन लोगों का आग्रह स्वीकार कर वहीं पर अपनी कुटिया बना ली और धूणा लगा दिया। परमपुज्य बाबा मंसा राम जी के तपोबल की और भी बहुत सी कथाएं क्षेत्र में प्रचलित हैं। कहते हैं बाबा जी को अन्नपूर्णा सिद्धि प्राप्त थी। जो भी श्रद्धालु उनके दर्शनों के लिए दरबार में आते, बाबा जी सभी को भोजन अवश्य करवाते। वहां अटूट लंगर चला रहता।

उन दिनों लोगों की इच्छाएं सीमित होती थीं। अपनी जरूरत की लगभग सभी वस्तुएं लोग अपने गांव में ही  पैदा कर लेते थे। एक बार गांव में जो दुकानदार था, उसके पास नमक खत्म हो गया। वह बाबा जी के पास गया और उन्हें अपनी समस्या बताई। बाबा जी ने उसे एक मुट्ठी नमक दिया और कहा, इसे जा कर अपने नमक रखने वाले बरतन में डाल दो और ढक्कन लगा दो। जो भी नमन लेने आए उसे आधी कीमत पर देते जाओ। दो बातों का ध्यान रखना। एक किसी से अधिक पैसे मत लेना, दूसरा यह बात किसी को भी मत बताना कि बाबा जी ने तुम्हें नमक दिया था। जिस दिन तुम इनमें से एक भी बात का उल्लंघन किया, तुम्हारा नमक खत्म हो जाएगा। दुकानदार ने वैसा ही किया। वह कई सालों तक वैसे ही नमक बेचता रहा परंतु बाबा जी के द्वारा दिया गया नमक खत्म नहीं हुआ। आखिर उससे रहा नहीं गया। एक दिन उसने सारी घटना अपने मित्रों को बता दी। यह कह कर जैसे ही उसने बरतन में हाथ डाला, बरतन खाली था। वह दौड़ा-दौड़ा बाबा जी की कुटिया में गया और उनके चरणों में गिर पड़ा। बाबा जी ने उसे उठाया और बोले,भक्त तुमने मेरी बात का उल्लंघन किया है अब मैं कुछ नहीं कर सकता।

बाबा जी के बाद भी काफी महात्मा उनकी इस गद्दी पर विराजमान हुए। उन्होंने भी अपने तपोबल से सिद्धियां प्राप्त कर लोककल्याण के कार्य किए। वर्तमान में पूज्य बाबा जी की गद्दी पर पूज्य देवा चेतन स्वरूप जी व पूज्य देवा कांता जी विराजमान हैं। उन्हें आरंभ में तो काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, परंतु अथक परिश्रम तथा दैवी कृपा से आज दरबार की ख्याति को चार चांद लगा दिए हैं। वर्ष भर में होने वाले सभी उत्सवों के अतिरिक्त हर वर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी तथा रामनवमी का पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है और विशाल लंगर का आयोजन होता है। हर वर्ष श्री शतचंडी दुर्गा पूजन महायज्ञ का आयोजन किया जाता है। यह विशाल कार्यक्रम क्षेत्र में सनातन धर्म की पताका को फहरा रहा है। इसके अतिरिक्त पूज्य देवा कांता जी जड़ी-बूटियों से श्रद्धालुओं के असाध्य रोगों का उपचार भी करती हैं।

             – गोपाल शर्मा, कांगड़ा


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App