श्री गोरख महापुराण

By: Oct 31st, 2020 12:20 am

अब तक आपने पढ़ा कि किस तरह राजा गोपीचंद के मंत्रियों ने जालंधरनाथ को जब वे समाधि लगाए उपासना कर रहे थे, उसी अवस्था से उठाकर गड्ढे में रखवा दिया और गड्ढे को भर दिया। अब पढ़ें इससे आगे….

योगी को अपने सिर अधर वाले गट्ठर होने के कारण कुछ भी पता नहीं चला। कूड़े-कचरे का का सारा भार गट्ठर के ऊपर ही रहा। जालंधरनाथ तो अपने सांवर मंत्र की सिद्धि में इस प्रकार लगे रहे जैसे कि सारा कार्य उनकी इच्छानुसार ही एकांत में भजन करने के लिए हुआ हो। इधर गोरखनाथ से  अपने गुरु की दुर्दशा सुनकर कानिफानाथ को बहुत दुःख हुआ और साथ ही आश्चर्य भी कि मेरे गुरु को कैद करने की हिम्मत गोपीचंद को किस प्रकार हुई। गुरु देव उसकी नगरी को भस्म न करके खुद कैद हो गए। मेरी समझ में कुछ नहीं आया। असली भेद तो हैलापट्टन जाने पर ही खुलेगा। कानिफानाथ ने शिष्यों को आदेश दिया कि तुरंत ही डेरे तंबू उखाड़ कर बैल गाडि़यों में लदवाओ।

 हाथियों पर झूलें डलवा दो तथा रथ, घोड़े, पालकी सजवा कर हैलापट्टन के राजा गोपीचंद की राजधानी शीघ्र ही चलो। कानिफानाथ योगी की आज्ञा सुनकर उनके शिष्यों ने शीघ्र ही डेरे उखाड़ कर सब समान गाडि़यों में लदवा दिया और हाथी, घोड़े, रथ, पालकी आदि सजवा कर गाजे-बाजे के साथ अपने ठाठ-बाट बना अपनी-अपनी सावरियों पर चढ़ मंजिल दर मंजिल तय करते हुए हैलापट्टन नगरी जा पहुंचे। योगियों का वायु वेग के समान हाथी, घोड़े पर चढ़ आगमन सुन कर हैलापट्टन के सकल नर-नारी भारी संख्या में योगियों के स्वागत को चल दिए। राजा गोपीचंद भी उच्च अधिकारियों को लेकर कानिफानाथ की अगवानी को जा पहुंचे। राजा गोपीचंद को आया देख प्रजा वर्ग ने जयकारे बोल-बोल कर आकाश-पाताल एक कर दिया। राजा गोपीचंद ने कानिफानाथ को हाथ जोड़कर नमस्कार किया और कानिफानाथ का हाथ पकड़ कर राज भवन में ले गए। सज्जनों! जालंधरनाथ योगी के कैद होने की खबर नगरी में किसी को नहीं थी। सबको यही मालूम था कि वह यहां ये कहीं और चले गए हैं। अपने गुरु के अचानक चले जाने की खबर सुनकर राज माता मैनावती बहुत अधीर हुईं। उनकी अपने बेटे को अमर तत्त्व दिलाने की इच्छा मन में ही रह गई और इसी गम में वह बीमार पड़ गई। जब राजा गोपीचंद ने अपनी माता की बीमारी का कारण जानना चाहा तो मैनावती बोलीं मैं योगी जालंधरनाथ से तूझे अमरता का वरदान दिलवाना चाहती थी पर तूने तो उनका आशीर्वाद तक प्राप्त नहीं किया। बेटा चिंता मत करो। मैं मरूंगी नहीं। मुझे अमरता का वरदान गुरुदेव से मिल चुका है। उन्हें ऐसा वैसा सिद्ध मत समझ, वह मुर्दे को जिंदा करने की सामर्थ्य रखते थे।

 गोपीचंद बोले मातेश्वरी यह घर-घर मांगने वाले ढोंगी संत आप जैसी भोलीभाली नारियों को अपने माया जाल में फंसाकर उनकी बुद्धि भ्रष्ट कर देते हैं। मैनावती बोली बेटा वह ऐसे वैसे सिद्ध नहीं थे। उन्हें तो परमात्मा का ही अवतार समझना चाहिए। उनकी कृपा से ही मुझे जगत ब्रह्ममयी दिखता है। अपनी माता की बात राजा को जंची नहीं। वह अपने मन में सोचने लगे पटरानी का कहा ही सच नजर आता है। अगर योगी सचमुच करामाती होता, तो क्या मल-मूत्र के गड्ढे में कैद हो मर जाता। करामाती योगी तो तंत्र शक्ति से पल भर में बाहर निकल आता। परंतु बीमार अवस्था में भी माता का चेहरा चंद्रमा के समान चमक रहा है और सत्यता की दमक दमदमा रही है। अपने बेटे को सोच-विचार करते देख मैनावती बोली, बेटा अब भविष्य में इस बात का ध्यान रखना और कोई योगी आए, तो उससे दीक्षा लेना मत भूलना। गोपीचंद को उत्तर देते न बना।


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