तिब्बत में छिपा है तंत्र ज्ञान

By: Oct 31st, 2020 12:20 am

21 मार्च 2020 के अंक में आपने पढ़ा कि राजेश बहुत कमजोर हो गया है। वह घबराया हुआ था। अब इससे आगे पढ़ें ः पहले राजेश कुछ न बोला। मैंने दोबारा अपना प्रश्न किया- ‘राजेश क्या देख रहे हो? जाओ वहां कौन है? देखो?’ राजेश का चेहरा धीरे-धीरे रंग बदलने लगा और धीरे-से फुसफुसाकर बोलने लगा- ‘गहरा घना जंगल है…एक वीरान खंडहर है…

-गतांक से आगे…

अचानक आराम कुर्सी पर बैठे राजेश की गर्दन एक ओर लुढ़क गई। उसकी आंखें बंद हो गईं। शरीर एकदम ढीला पड़ गया। राजेश के पिता घबरा गए। ‘आप…आपने यह क्या कर दिया।’ राजेश के पिता ने पूछा। ‘इस समय आप चुप रहिए।’ मैंने उनको फटकारा। फिर राजेश के चेहरे पर नजरें जमाकर कहा- ‘राजेश क्या देख रहे हो?’ पहले राजेश कुछ न बोला। मैंने दोबारा अपना प्रश्न किया- ‘राजेश क्या देख रहे हो? जाओ वहां कौन है? देखो?’ राजेश का चेहरा धीरे-धीरे रंग बदलने लगा और धीरे-से फुसफुसाकर बोलने लगा- ‘गहरा घना जंगल है…एक वीरान खंडहर है…खोपडि़यों का ढेर…मां काली की विशाल पाषाण मूर्ति…और वह बैठी है…।’ मैं सब सुनता रहा, फिर बोला- ‘रास्ता बोलो।’ ‘रास्ता…पैंतीस किलोमीटर…उत्तर में राजमार्ग…पगडंडी…तीन मोड़ बहुत बियावान जंगल, पुराना किला…।’ राजेश चुप हो गया। राजेश को मैं चेतनावस्था में ले आया। उसके माता-पिता प्रसन्न हो गए। राजेश को सम्मोहित कर मैंने उसके पीछे की शक्ति का पता कर लिया था। साहस करना ही पड़ा। साहस के साथ-साथ एक जिज्ञासा भी थी। आखिर कौन संरक्षण दे रहा है?

साधना कक्ष में आकर मैं शांत मुद्रा में बैठ गया। सामान्य होने के बाद मैं स्वयं को अचेतनावस्था में ले गया। अचेतन मन स्थूल शरीर को छोड़ उस स्थान की खोज में उड़ चला। कुछ समय के बाद खंडहर दिखाई पड़ा। दूर-दूर तक आदमी का नामोनिशान न था। बस्ती की बात तो दूर। खंडहर एकदम वीरान पड़ा था। जीर्ण-शीर्ण रूप में वह राक्षस-सा लग रहा था। खंडहर में प्रवेश करके देखा तो वह काफी बड़े किले के समान था। खंडहर में भटकते-भटकते एक स्थान पर निगाहें पड़ते ही मैं ठगा-सा खड़ा रह गया। सामने ही मां काली की विशाल पाषाण प्रतिमा…जलता हवन कुंड…समीप ही बिखरी खोपडि़यां…कुछ हड्डियां और…एक ओर सीधा फंसा त्रिशूल। मैंने सबसे पहले मां को प्रणाम किया। सब कुछ सूना पड़ा था। झींगुरों की आवाज, हवा की सायं-सायं वातावरण को और भी भयानक बना रही थी। जमीन पर स्वतंत्र घूमते सांप और लुढ़कती खोपडि़यां वीरान खंडहर को और भी भयानकता प्रदान कर रही थीं। अचानक मैं ठगा-सा खड़ा रह गया। कंचन-सा बदन, चंचल चितवन, बिखरे घने काले-लंबे केश, अत्यंत सांचे में ढला शरीर…संगमरमरी चेहरा और सर्वथा आवरणहीन एक युवती सामने थी। माथे पर लाल रक्तिम बिंदी, गले में लाल अधखिले गुलाबों की माला, उसकी आंखें बेहद जल रही थीं, उसका सुंदर चेहरा आग के समान भभक रहा था।


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