विरोध प्रदर्शन, मौज प्रदर्शन

By: अशोक गौतम Oct 21st, 2020 12:06 am

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मन में किसान विरोधी बिल के प्रति सत्तायी गुस्सा आते ही भैयाजी ने मुझसे झल्लाते कहा, ‘हे शागिर्द! हम सरकार की किसान विकास नीति का विरोध करना चाहते हैं’, सुन मैं हाथ जोड़े दिमाग बंद किए उनके आगे मुस्कुराते बुत की तरह खड़ा रहा तो वे आगे बोले, ‘हम किसानों के बीच जाना चाहते हैं अभी के अभी। हमारी शाही सवारी तैयार की जाए। पर यार! ये किसान कैसे होते हैं? इन्हें पहले तो मैंने कभी देखा नहीं। ये कहां पाए जाते हैं?’ ‘भैयाजी, किसानों को नजदीक से तो सरकार ने भी नहीं देखा है। बस, उन्होंने भी किसानों को आंकड़ों में ही उन्हें देखा है। या फिर ज्यादा ही हुआ तो कभी कभार टीवी पर देख लिया मौज मस्ती के लिए। भैयाजी! इन दिनों अधिकतर किसान तो गांव से पलायन करने के बाद शहरों में पाए जाते हैं और कुछ गांवों में अभी भी जैसे-तैसे फसल की कीमत न मिलने पर कर्ज के बोझ तले दबे होने के चलते पेड़ों पर लटकते देखे जा सकते हैं।’

 ‘तो ऐसा करो, हमारे लिए किसान विरोधी बिल के प्रति विरोध प्रदर्शन के लिए ऐसे गांव जाने की तैयारी करो जो शहर के नजदीक हो। जहां गोबर न हो। जहां कच्चे घर न हों। जहां गरीबी न हो। अपने पुरखों से सुना था कि गांव में यही सब होता है। सच कहें तो अब हमसे सत्ता से और दूर नहीं रहा जा रहा शागिर्द! हमारा मन किसानों को बहकाने के लिए तड़प रहा है, फड़क रहा है।’ भैयाजी ने मुझसे मन की बात शेयर की, पर मैं तो उनके मन की बात पहले ही जान हरकत में आ चुका था। असल में मैं जबसे भैयाजी का खास हुआ हूं, सोए सोए भी हरकत में ही रहता हूं। सोए सोए भी हरकत ही करता रहता हूं। ‘हुकुम भैयाजी! अबके किस तरह का प्रदर्शन चाहते हैं आप? मेरा मतलब, हिंसात्मक या अहिंसात्मक?’ ‘दोनों का कॉकटेल! लोकतंत्र में अहिंसात्मक प्रदर्शन भी कोई प्रदर्शन होता है लल्लू? हम ऐसा प्रदर्शन चाहते हैं जो हिंसात्मक होते हुए भी अहिंसात्मक हो और अहिंसात्मक होते हुए भी हिंसात्मक।’ भैयाजी ने लंबी सांस लेकर कहा तो देश के किसानों के प्रति उनका दर्द एकबार फिर नाक के रास्ते बाहर आया।

 कुछ देर कुछ न सोचने के बाद भैयाजी ने पुनः कहा, ‘देखो, हम अबके पार्टी वर्करों की पीठ पर बैठ कर नहीं, सांड की पीठ पर बैठकर किसान विरोधी बिल का विरोध करना चाहते हैं।’ ‘सर! सांड़ नहीं, बैल!’ ‘तो बैल ही सही। पर यार, ये बैल सरकार की तरह मारते तो नहीं? इनके सरकार की तरह सींग तो नहीं होते? हमारे लिए विदेशों से एक जोड़ी बैल किसान विरोधी बिल का विरोध करने के लिए तुरंत इंतजाम किया जाए।’ ‘भैयाजी! पैसा?’ ‘पार्टी फंड से ले लो! पार्टी में वर्करों की कमी है, फंड की नहीं।’ ‘माफ  करना भैयाजी! बैलों का जमाना तो कभी का चुक गया है भैयाजी! अब तो संसद के सिवाय और कहीं बैल दिखते नहीं। बचा खुचा किसान अब तो ट्रैक्टरों से ही खेती करता है।’ ‘तो ट्रैक्टर का इंतजाम किया जाए इमीजिएटली।’ ‘कोनों चिंता नहीं भैयाजी! आप कहो तो आपके वर्करों से लंबी आपके प्रदर्शन में ट्रैक्टरों की लाइन लगवा दें। देखना अबके आपके किसान विरोधी बिल के प्रदर्शन के लिए ऐसा ट्रैक्टर सजाएंगे कि…ऐसा ट्रैक्टर सजाएंगे कि…इंद्र का मन भी अपने सिंहासन को छोड़ ट्रैक्टर पर बैठने के लिए मचल उठेगा।’ भैयाजी के फसली शागिर्द ने कहा और सरकार के किसान विरोधी बिल का भैयाजी द्वारा विरोध करने की तैयारी में जुट गया।


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