विष्णु पुराण

By: Oct 31st, 2020 12:20 am

प्रोक्तान्येतानि भवता सप्तमन्वंतराणि वै।

भविष्याण्यपि विप्रर्षे ममाख्यातु त्वामर्हसि।।

सूर्यस्य पन्नीसंज्ञाभूतत्तया विश्वकर्मणः।

मनुर्यमो यवी चैव तदपत्यानि वै मुने।।

असहंति नु सा भर्तु र्स्तजश्छायां युयोज वै।

भतृंशुश्रूषणेऽरय स्वयं च तपसे ययो।।

संज्ञयमित्यथार्कश्च छायवः मात्मजत्रम।

शनैश्चरं मनुं चांती चाप्यजीजनतत।।

छाय संज्ञा ददौ शाप यमाय कुपिता यदा।

तदान्ये यमसौ बुद्धिरित्यासीद्यमसूर्ययोः।।

ततो विवस्वानाख्याते तपैवास्ण्संस्थिताम।

समाधिदृष्टया ददृशे तामश्वां तपसि स्थिताम।।

वाजिरूपधर सोऽयां देवावथाऽश्विनी।

जतयामास रेवंतं रेतसोऽप्ते च भास्करः।।

श्री मैत्रेयजी ने कहा, हे ब्राह्मर्षि आपने बोले हुए सात मन्वंतरों का वर्णन किया, अब आप आगे होने वाले मन्वंतरों के  विषय में कहिए। श्री पराशर जी ने कहा, हे मुने विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा सूर्य की पत्नी हुई। उसने मनु और यम दो पुत्र तथा यमी नामक पुत्री को जन्म दिया। संज्ञा अपने पति का तेज सहन कर सकने के कारण अपने समान छाया उत्पन्न कर और उसे अपने पति की सेवा सौंपकर स्वयं तपस्विनी बनकर चली गइर्ं। सूर्य ने छाया को संज्ञा समझा और उस से शनैश्चर एक दूसरा मनु और तपसी इन तीन संतानों को जन्म दिया।

एक दिन की बात है उस छाया ने क्रोध करके यम को श्राप दे दिया,तब सूर्य और यम को संदेह हुआ कि यह संज्ञा नहीं है। तब छाया के रहस्य का उद्घाटन हुआ और सूर्य ने समाधि लगाकर यह  जान लिया कि संज्ञा घोड़ी का रूप धारण किए हुए वन में  तपकर रही है। तब उन्होंने भी घोड़े का रूप धारण करके घोड़ी रूपिणी संज्ञा से दो अश्विनीकुमार और रेत स्राव के पश्चात रेवंत को उत्पन्न किया।

अग्निये च पुनःसंज्ञा स्वस्थानं भगवानरविः।

तेजसश्शमनं वास्य विश्वकर्मा चकार ह।।

भ्रममारोप्य सूर्य तु तस्य तेजोनिशातनम।

कृतवानष्टम भागं स व्यशतयदव्यम।

यत्तस्माद्वैष्णवं तेजयश्शातितं विश्वकर्मणा।।

जाज्वल्म मानमपतत्तद्भूमौ मुनिसत्तम।।

त्वष्टव तेजसा तेन विष्णो श्वक्रमत्तल्पयत।

त्रिशूलं चैव शर्वस्य शिविका धनदस्य च।।

शक्ति गुहस्य देवानामन्येषां च गदायुधम।

तत्सर्व तेजसा तेन विश्वकर्मा व्यवर्द्धयत।।

इसके बाद भगवान सूर्य संज्ञा को अपने यहां लाए और विश्वकर्मा ने भी उनका तेज न्यून कर दिया। उन्होंने सूर्य को सानपर चढ़ाकर उनके तेज को छीनना आरंभ कर दिया,परंतु वह उसका आठवां अंश ही कम कर सके।  हे मुनि श्रेष्ठ सूर्य के जिस अत्यंत प्रकायामय वैष्णव तेज को छीना गया, वह तेज पृथ्वी पर जा गिरा। उसी गिरे हुए तेज से विश्वकर्मा ने भगवान विष्णु का चक्र,शिवजी का त्रिशूल तथा कार्तिकेय की शक्ति का निर्माण किया।  विष्णु और अन्यान्य देवताओं के जो शास्त्रास्त्र और कुबेर के विमान थे, वे भी उस तेज से पुष्ट किए।


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