युद्ध को तैयार भारत!
विजयदशमी पर्व पर शस्त्र-पूजन के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सरसंघचालक मोहन भागवत ने चीन पर दो टूक टिप्पणियां कीं, लेकिन दोनों के मायने अलग-अलग थे। रक्षा मंत्री यह कई बार दोहरा चुके हैं कि सेना एक-एक इंच जमीन की रक्षा करेगी। कोई हमारी जमीन छीनने की कोशिश भी नहीं कर सकता। इस यथार्थ और जांबाज सैनिकों के शौर्य और निष्ठा पर देश को रत्ती भर भी संदेह नहीं है। दूसरी तरफ सरसंघचालक ने हमारी सीमा में चीन के अतिक्रमण की बात कही है। हालांकि उन्होंने सेना की पीठ भी थपथपाई है कि उसकी वजह से ही भारत आज चीन के सामने तनकर खड़ा है। अलबत्ता हमें अपनी सैन्य तैयारियों की ताकत और दायरा भी बढ़ाना चाहिए। संघ प्रमुख भी चाहते हैं कि अब वक्त आ गया है, जब चीन को सबक सिखाना चाहिए। चीन के ही संदर्भ में तीसरा बयान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का है, जिन्होंने एक सार्वजनिक संबोधन में कहा है कि हम युद्ध को तैयार हैं, लेकिन हम स्वार्थ के लिए युद्ध नहीं करेंगे।
हम अपनी जमीन और दुश्मन के क्षेत्र में भी लड़ेंगे। चीन पर अभी तक का यह सबसे महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील बयान है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी भारत सरकार की भीतरी रणनीति और सैन्य व्यूह-रचना के एक बेहद महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। तो क्या अब देश यह मान ले कि भारत-चीन में युद्ध की संभावनाएं पकने लगी हैं? रक्षा मंत्री ने इस आशय का परोक्ष बयान तक नहीं दिया, युद्ध की घोषणा तो बहुत दूर की बात है। अभी तक प्रधानमंत्री मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चीनी सेना के अतिक्रमण को स्वीकार ही नहीं किया है, तो युद्ध संबंधी बयान भी क्यों देंगे? भारत सरकार के ये दोनों शीर्षस्थ नेता देश के सामने स्पष्ट क्यों नहीं करते कि आखिर भारत-चीन सीमा पर तनाव कितना और क्यों है? हमारे 60,000 से अधिक सैनिक और अस्त्र-शस्त्र, गोला-बारूद, मिसाइलें और विमान क्यों तैनात हैं? इतनी ही सैन्य ताकत चीन ने भी जुटाई होगी! एलएसी पर घोर तनाव और तनातनी मई महीने से ही जारी है। काफी लंबा अरसा हो गया है कि दोनों पक्षों के सैनिक आमने-सामने डटे हैं। इस दौरान 3-4 बार आपसी झड़प, हाथापाई की घटनाएं हो चुकी हैं, लेकिन गलवान घाटी में चीनी सेना का हथियारबंद हमला अनायास था, जिसमें 20 भारतीय जवान ‘शहीद’ हुए।
हालांकि बाद में पलटवार हमले में हमारे जांबाज सैनिकों ने कई चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। यह दीगर है कि अभी तक चीन ने मृत सैनिकों की संख्या सार्वजनिक नहीं की है। इनके अलावा, सेनाएं तैनात जरूर रही हैं। हमने कुछ ऊंची और रणनीतिक पहाड़ी चोटियों पर, चीनी सैनिकों को धकेल कर, कब्जा कर लिया है, जबकि फिंगर और पैंगोंग इलाकों में अब भी चीन काबिज है। इस तनाव के मद्देनजर दोनों पक्षों के बीच कमांडर स्तर की सात बार बातचीत हो चुकी है, लेकिन सहमति के नाम पर ढाक के तीन पात ही हैं। भारत-चीन के विदेश मंत्रियों ने भी मास्को में संवाद कर 5-सूत्रीय समझौता तय किया था। रक्षा मंत्री भी मास्को में ही मिले। राजनयिक स्तर पर संवाद जारी रहा है, लेकिन अब नौबत युद्ध तक की आ गई है! इसी दौरान विपक्ष के एक तबके ने गंभीर आरोप चस्पां किए हैं कि चीन ने भारत की 1200 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा जमीन कब्जा रखी है। दरअसल यह डाटा कहां से आया? जमीन किस क्षेत्र में है और कहां से कहां तक की है? ये सवाल इसलिए भी गंभीर और देश-विरोधी हैं, क्योंकि आज तक चीन ने भी ऐसा कोई दावा नहीं किया है, लिहाजा राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर ऐसे बयान, आरोप और सवाल कमोबेश देशहित में नहीं हैं। हमारे देश के ऐसे अंतर्विरोधों से चीन ही खुश होगा! राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा रणनीति पर सार्वजनिक बहस नहीं होनी चाहिए, यह पूरा देश जानता है। अब तो युद्ध की बातें की जानी शुरू हो गई हैं, तो सरकार और विपक्ष को एकजुट होकर मोर्चे पर लड़ना चाहिए।
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