अथार्गलास्तोत्रम

By: Nov 28th, 2020 12:24 am

विनियोग : ॐ अस्य श्री अर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुऋर्षिः अनुष्टुप छन्दः श्रीमहालक्ष्मीर्देवता श्रीजगदम्बाप्रीतये सप्तशती पाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ।

ॐनमश्चण्डिकायै

(मार्कण्डेय उवाच )

ॐजयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।। 1।।

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।

जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तुते ।। 2।।

ॐचंडिका देवी को नमस्कार है।

मार्कण्डेय जी कहते हैं ः जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा, इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो। देवि चामुण्डे! तुम्हारी जय हो। सम्पूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। सब में व्याप्त रहने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। कालरात्रि! तुम्हें नमस्कार हो।।

मधुकैटभविद्राविविधातृ वरदे नमः।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। 3।।

महिषासुरनिर्णाशि भक्तनाम सुखदे नमः।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। 4।।

मधु और कैटभ को मारने वाली तथा ब्रह्माजी को वरदान देने वाली देवि! तुम्हे नमस्कार है। तुम मुझे रूप (आत्मस्वरूप का ज्ञान) दो, जय (मोह पर विजय) दो, यश (मोह-विजय और ज्ञान-प्राप्तिरूप यश) दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। महिषासुर का नाश करने वाली तथा भक्तों को सुख देने वाली देवि! तुम्हें नमस्कार है। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। 3-4।।


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