फिर जीवंत हुआ ‘काव’ का रचना संसार

By: विनोद भारद्वाज, शिमला Nov 1st, 2020 12:05 am

पहाड़ों से निकलने वाली प्रगतिशील ‘इरावती’ पत्रिका का 20वां अंक हिमाचल में 90 के दशक में साहित्यिक व सांस्कृतिक क्रांति के अग्रदूत रहे भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी महाराज कृष्ण काव के जीवन, दर्शन, संघर्ष की कहानी बयां करता नजर आता है। हिमाचल के जिला हमीरपुर के गांव बल्ह, डाकघर मौहीं में कोरोना काल के इस दौर में संपादक एवं जाने-माने साहित्यकार राजेंद्र राजन ने कठिन परिस्थितियों के मध्य एक ऐसा सृजन प्रस्तुत किया है जिसे पढ़कर एक महान शख्सियत के जीवन, संघर्ष, सेवा, समर्पण तथा सबसे अधिक इन ठंडी वादियों में साहित्य, संस्कृति के प्रति उनके अनुराग का भान मिलता है। इरावती का यह अंक कोरोना महामारी के दौर में एक नए कथानक को लेकर आया है। 92 पृष्ठों की पत्रिका का प्रथम पृष्ठ से लेकर अंतिम पृष्ठ ‘काव’ के संघर्ष व रचना संसार का जीवंत दस्तावेज नजर आता है।

महाराज कृष्ण काव की बहन, जो हिमाचल प्रदेश की मुख्य सचिव भी रहीं, ने ‘मेरे भाई साहब’ शीर्षक से भ्राता के बचपन, मां-दादी की गोद, भारत की आजादी, परिवार का दिल्ली पलायन, कश्मीर के हालात, आईएएस में प्रवेश से लेकर उनकी प्रशासनिक दक्षता व साहित्य के प्रति अनुराग का मार्मिक चित्रण किया है। वह अपने जीवन काल में 27 पुस्तकें प्रकाशित कर पाए। इनमें से 16 उनकी मूल रचनाएं हैं। उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी व कश्मीरी भाषाओं में अपने विचारों को कलमबद्ध किया। पहाड़ के जाने-माने साहित्यकार केशव व काव का सान्निध्य किसी से छिपा नहीं है। केशव द्वारा काव से लिए साक्षात्कार में उनके साहित्य के प्रति प्रदेश को दिए गए योगदान व गुटों में बंटे साहित्यकारों को एक मंच पर लाने का उल्लेख मिलता है। केशव के शब्दों में काव को कविता, कहानी, उपन्यास के अलावा कथेतर गद्य लेखन में भी महारत हासिल थी। अधिकांश कथेतर गद्य अंग्रेजी भाषा में लिखा है। ‘साइंस ऑफ  स्प्रिच्युएलिटी’ तथा ‘ब्यूरोक्रेसी आईएएस’ उनकी प्रमुख कृतियां हैं। राजेंद्र राजन ने इस अंक में काव की 11 चुनिंदा कविताओं से उनके विचारों को पाठकों तक लाने का सफल प्रयास किया है।

लेखक एवं पूर्व प्रशासनिक अधिकारी श्रीनिवास जोशी के काव के साथ प्रशासनिक कार्यकलापों व साहित्यिक मंचों, गोष्ठियों में घनिष्ठता एवं समीपता से सभी वाकिफ  रहे हैं। जोशी ने अपने लेख में उनके साहित्यिक सृजन का बारीकी से अवलोकन कर इस महान शख्सियत के जीवन के अंदरूनी पन्नों को खोला है। कवि, साहित्यकार एवं विपाशा के संपादक रहे तुलसी रमण ने ‘साहित्यकार-प्रशासक का अध्यात्म’ में उनके वक्त में शिमला की ठंडी वादियों में उनके साहित्यिक सम्मेलनों, गोष्ठियों तथा नाट्य प्रस्तुतियों व शिखर संस्था को बुलंदियों के शिखर पर लाने के प्रयासों को कलमबद्ध किया है। पांच संस्मरणों की इसी श्रेणी में कवयित्री एवं चर्चित लेखिका रेखा ने ‘उनको न भूल पाएंगे’ में एक सफल, कुशल और ईमानदार प्रशासक के रूप में उनकी छवि को सामने लाने का प्रयास किया है। अंत में सलाहकार संपादक हेमराज कौशिक की कलम से काव के उपन्यास ‘आसमान नहीं गिरते’ पर विस्तारपूर्वक समीक्षा की गई है। इसी अंक में काव के एक चित्रकार होने का भी आभास मिलता है। आर्थिक तंगी के बावजूद पत्रिका को प्रकाशित करने के लिए राजेंद्र राजन के प्रयास सराहनीय हैं। कोरोना काल में इस सृजन के लिए राजेंद्र राजन को साधुवाद।

विनोद भारद्वाज, शिमला


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