गौरव शर्मा का पांगणा से नाता

न्यूजीलैंड के सांसद डाक्टर गौरव शर्मा का पांगणा से अटूट नाता सामने आया है । जो हिमाचल के लिए भी गौरव की बात है कि संस्कृत में शपथ ग्रहण करने पर पांगणावासियों ने बधाई दी है। पांगणा-हमीरपुर हिमाचल ही नहीं अपितु समूचे राष्ट्र के लिए यह गौरव का विषय है कि यहां की माटी से जुड़े डाक्टर गौरव शर्मा ने न्यूजीलैंड में संस्कृत में शपथ ग्रहण कर भारत का गौरव बढ़ाया है। न्यूजीलैंड के सांसद बने डाक्टर गौरव शर्मा के परिवार का पांगणा से भी अटूट नाता है। पांगणा के राकणी उपगांव के मूल निवासी सेवानिवृत्त खंड शिक्षा अधिकारी राजेंद्र गुप्ता  का कहना है कि गौरव शर्मा के दादा बीरबल शर्मा ने 1964 के आसपास राकणी से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर बागीचे की स्थापना की। उन्होंने दूसरा बागीचा बिठरी डही के पास और तीसरा बागीचा सोरता पंचायत के अंतर्गत खणयोग में स्थापित किया।

संस्कृति मर्मज्ञ डाक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि मंडी जिला की ऐतिहासिक नगरी पांगणा से भी अटूट संबंध रखने वाले डा. गौरव शर्मा ने न्यूजीलैंड की संसद में सांसद के रूप में संस्कृत भाषा में शपथ ग्रहण कर भारतवंशी होने का परिचय दिया। पांगणा के समीपस्थ गांव लुच्छाधार सेरी से संबंध रखने वाले सेवादास का कहना है कि उनका परिवार पिछले पांच दशक से गौरव शर्मा के परिवार से जुड़ा है। संस्कृत में शपथ लेने पर सेवा ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि इससे राष्ट्र प्रेम के साथ राष्ट्रभाषा का प्रेम भी स्पष्ट होता है। जबकि गौरव शर्मा पेशे से डाक्टर हैं। सुकेत संस्कृति  साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डाक्टर हिमेंद्र बाली का कहना है कि डाक्टर गौरव शर्मा ने न्यूजीलैंड की राजनीति में पदार्पण कर अपनी मातृ भाषा संस्कृत में शपथ लेकर अपने भारत देश के प्रति अपने प्रेम का प्रदर्शन कर एक अनूठी मिसाल पेश की।

डाक्टर गौरव का दूसरे देश की राजनीति में सर्वोच्च पद प्राप्त करने के बावजूद अपने देश के प्रति भावनात्मक प्रेम को प्रमाणित करता है। डाक्टर गौरव का यह देश प्रेम व सद्भावना उन्हें भारतीय होने के साथ-साथ यहां की सनातन संस्कार परंपरा के अग्रदूत की अग्रिम पंक्ति में प्रतिष्ठित करती है। व्यापार मंडल पांगणा के अध्यक्ष सुमित गुप्ता का कहना है कि डाक्टर गौरव का यह राष्ट्र प्रेम भारत के राजनीतिज्ञों के लिए एक प्रेरक प्रसंग है। बही सरही निवासी घनश्याम शास्त्री का कहना है कि धन्य है भारत माता के सपूत गौरव शर्मा को। भारत के हर कोने में अंग्रेजी में लिखने बोलने वाले को पढ़ा लिखा आदमी समझा जाता है जबकि आर्यावर्त की पहचान संस्कृत भाषा से होती है। विज्ञान अध्यापक पुनीत गुप्ता का कहना है कि डाक्टर गौरव की यह अभिव्यक्ति संस्कृत और संस्कार की गहरी संवेदना से जुड़ी है जो समस्त आधुनिक भारतीयों को एक नई दिशा प्रदान करती है।