लोकतंत्र ‘घोड़ा मंडी’ है क्या?

By: Nov 27th, 2020 12:06 am

बीती 26 नवंबर को ‘संविधान दिवस’ था। संविधान के प्रारूप रचनाकार डा. भीमराव अंबेडकर को समर्पित विश्व का सबसे बड़ा और लिखित दस्तावेज है हमारा संविधान। हमारा गौरव और पावन-ग्रंथ भी संविधान ही है, जो भारत जैसे विशाल और विविध देश को संचालित करता रहा है। 1949 के नवंबर में इसी दिन भारत का संविधान ग्रहण किया गया था। यह दीगर है कि 26 जनवरी, 1950 से संविधान लागू हुआ था और हमारा लोकतंत्र ‘गणतंत्र’ बना था, लिहाजा उस दिन देश ‘गणतंत्र दिवस’ मनाता है। एक बहुआयामी, धर्मनिरपेक्ष और मजबूत संविधान के बावजूद 70 सालों में हमारा लोकतंत्र ‘परिपक्व’ नहीं हो पाया, यह  हमारा क्षोभ और हमारी निराशा है। राजनीति और लोकतंत्र ‘घोड़ा मंडी’ लगते हैं, क्योंकि आज भी दलबदल जारी है। सांसदों और विधायकों की खरीदी-बेची हो रही है। वे पाला बदल लेते हैं। कांग्रेस के चुनाव चिह्न पर जीत कर आए और ‘भाजपाई’ बन गए। मंत्री पद भी हासिल हो जाता है, लेकिन इस तरह जनादेश का मजाक उड़ाया जाता है। यह किसी को न तो एहसास होता है और न ही कोई मानने को तैयार है। दलबदल का लगभग पहला और बड़ा प्रयास हरियाणा में किया गया, जब रातोंरात जनता पार्टी की सरकार कांग्रेस की सत्ता में तबदील हो गई। मुख्यमंत्री देवीलाल की जगह भजनलाल मुख्यमंत्री बन गए। उस घटना को करीब 40 साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी लोकतंत्र को धत्ता बताने का सबसे बड़ा उदाहरण यही है।

 उसके बाद, संविधान होने के बावजूद, दलबदल निरोधी कानून होते हुए, हमने जन-प्रतिनिधियों को पाला बदलते देखा है। हाल के कुछ समय की बात करें, तो मप्र, गुजरात, कर्नाटक, गोवा, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर आदि राज्यों में कांग्रेसी विधायक दलबदल करके ‘भाजपाई’ होते रहे हैं। तेलंगाना में भी कांग्रेस विधायक टीआरएस में शामिल हुए थे, क्योंकि वहां सरकार टीआरएस की है। यानी लोकतंत्र सरकार का पर्यायवाची बन कर रह गया है! दलबदल में राज्यपालों की भूमिका क्या होती है, उसे लेकर पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने इस्तीफा तक देने की धमकी दे दी थी। उनका गुस्सैल सवाल था कि एक आदेश पर हस्ताक्षर कराने के लिए रात में 12.30 बजे उन्हें क्यों जगाया और बाध्य किया गया? बहरहाल तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने उन्हें मनाया और शांत किया। राज्यपाल बूटा सिंह ने बिहार की विधानसभा भंग कर दी थी। वह तभी अंतिम आदेश माना जाता, जब उस पर राष्ट्रपति की मुहर लग जाती। बहरहाल हमने अपने संविधान की रचना करते हुए बहुत कुछ ब्रिटिश संविधान से ग्रहण किया था, लेकिन ‘व्हिप’ की प्रेरणा नहीं ले सके। ब्रिटिश सांसद ‘व्हिप’ का उल्लंघन करते हुए विरोधी पक्ष के किसी महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पर मत दे सकते हैं, लेकिन उनकी सांसदी पर आंच तक नहीं आती। भारत की संसदीय व्यवस्था में सांसद या विधायक ‘पार्टी व्हिप’ के बंधक हैं। यदि वे ‘व्हिप’ को तोड़ते हैं, तो उनकी सदस्यता रद्द हो जाती है। यह संविधान और लोकतंत्र के अपरिपक्व होने के कुछ उदाहरण हैं। ताजा मामला बिहार में सामने आया है, जब राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने जेल की सजा काटते हुए भाजपा विधायक ललन पासवान को फोन कर तोड़ने की नाकाम कोशिश की और मंत्री पद का लालच भी दिया।

 जो ऑडियो सार्वजनिक हुआ है, उसमें लालू की आवाज स्पष्ट है। आवाज की नकल करने वाला कोई भी व्यक्ति इस तरह विधायक को फोन करने का दुस्साहस नहीं कर सकता, लिहाजा राजद की ‘फर्जी’ करार देने की दलीलें भोथरी हैं। लालू की आवाज की फोरेंसिक जांच करा ली जाए, तो सच 24 घंटे में सामने आ सकता है। राजद की साजिश थी कि कुछ नए विधायकों को तोड़ कर विधानसभा स्पीकर का चुनाव जीता जाए। वह नहीं हो सका। लालू चारा घोटाले के 4 गंभीर मामलों में सजायाफ्ता हैं, लेकिन ऐसा लगता है मानो वह छुट्टी मनाने झारखंड गए हैं। स्वास्थ्य की आड़ में उन्हें रिम्स निदेशक के बंगले में शिफ्ट किया गया है और निदेशक एक गेस्ट हाउस में हैं। वहां से लालू अक्सर मोबाइल का इस्तेमाल करते रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा सरकार के दौरान वहां के मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी शिकायत दर्ज कराई थी कि लालू जेल से ही फोन करते रहते हैं। अब मौजूदा हेमंत सोरेन सरकार में तो राजद भी एक घटक दल है। क्या इन हरकतों को भी संवैधानिक और लोकतांत्रिक माना जा सकता है? लिहाजा ‘संविधान दिवस’ के मौके पर पीड़ा होती है कि लोकतंत्र का प्रारूप क्या बना दिया गया है?


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