मनुष्य की खुशहाली

By: सद्गुरु  जग्गी वासुदेव Nov 21st, 2020 12:20 am

जब आपका मन सुखद हो जाता है, तो हम इसे शांति कहते हैं और अगर ये बहुत ज्यादा सुखद हो जाए, तो हम इसे हर्ष कहते हैं। अगर आपकी भावनाएं सुखद होती हैं, तो हम इसे प्रेम कहते हैं और अगर ये बहुत ज्यादा सुखद हो जाती हैं, तो हम इसे करुणा कहते हैं। जब आपकी जीवन ऊर्जाएं सुखद हो जाती हैं, तो हम इसे आनंद कहते हैं और अगर ये बहुत ज्यादा सुखद हो जाएं, तो हम इसे परमानंद कहते हैं…

दुनिया में हमें केवल संपत्ति नहीं बनानी है, बल्कि खुशहाली बनानी है। धन-दौलत मनुष्य की खुशहाली के कई साधनों में केवल एक साधन है, लेकिन मात्र यही सब कुछ नहीं है। संपत्ति का मतलब अपने लिए बाहर की स्थिति को सुखद बनाना है। पर अभी तो लोग इसके पीछे ऐसे पड़े हैं जैसे कि ये कोई धर्म हो। पैसा बस एक साधन है, ये अपने आप में मंजिल नहीं है। हम बिना किसी कारण के इसे बहुत बड़ा बना रहे हैं। क्या ये खराब है? क्या ये अच्छा है? इन दोनों में से ये कुछ भी नहीं है। ये बस एक साधन है जो हमने बनाया है। हमें यह समझना चाहिए कि कोई भी पैसा नहीं चाहता है। ये थोड़ा बेतुका लग सकता है पर मैं कह रहा हूं कि वो पैसा नहीं है जिसे लोग चाहते हैं।

बात बस ये है कि जिसे वो बेहतर जीवन समझते हैं, उसे पाने के लिए पैसा ही एक साधन है। सभी चाहते हैं कि उनका जीवन सुखद रहे। जब हम सुखद रहने की बात करते हैं, तो ये पांच तरीकों से हो सकता है। अगर आपका शरीर सुखद अवस्था में है, तो हम इसे सुख कहते हैं। जब आपका मन सुखद हो जाता है, तो हम इसे शांति कहते हैं और अगर ये बहुत ज्यादा सुखद हो जाए, तो हम इसे हर्ष कहते हैं। अगर आपकी भावनाएं सुखद होती हैं, तो हम इसे प्रेम कहते हैं और अगर ये बहुत ज्यादा सुखद हो जाती हैं, तो हम इसे करुणा कहते हैं। जब आपकी जीवन ऊर्जाएं सुखद हो जाती हैं, तो हम इसे आनंद कहते हैं और अगर ये बहुत ज्यादा सुखद हो जाएं, तो हम इसे परमानंद कहते हैं। अगर आपके आसपास सब सुखद हो, तो हम इसे सफलता कहते हैं। आपको यही सब चाहिए है कि नहीं? नहीं, मैं स्वर्ग जाना चाहता हूं, पर आप स्वर्ग क्यों जाना चाहते हैं? क्योंकि सभी विज्ञापन यही कहते हैं कि वो बहुत सुखद जगह है।

तो आपको बस सुखद अवस्था चाहिए, खुशी चाहिए और अभी आपका यही विश्वास है कि इस दुनिया में, पैसे से आप इसे खरीद सकते हैं और कुछ हद तक ये सही भी है, पर पैसा सिर्फ  बाहरी अवस्था को सुखद बना सकता है, ये आपके अंदर की अवस्था को सुखद नहीं बना सकता। अगर आपके पास बहुत पैसा है तो आप एक पांच सितारा होटल में रह सकते हैं पर अगर आपका शरीर या मन, आपकी भावनाएं या ऊर्जाएं सुखद नहीं हैं, तो क्या आप उस पांच सितारा होटल का आनंद ले पाएंगे? नहीं! कहने का मतलब है कि जीवन में पैसा ही सब कुछ नहीं होता। अगर आप स्वस्थ और खुश नहीं हैं, आपका मन भटक रहा है, तो हजारों रुपए भी आपके मन को चैन और शांति नहीं दे सकते। इसलिए जीवन में जो परम आवश्यक है उस पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। जीवन को खुशहाल बनाना बहुत जरूरी है।


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