नहीं रहे टांकरी के ज्ञाता खूबराम खुशदिल, 96 की उम्र में सांसारिक यात्रा को अलविदा कह गए लेखक

By: निजी संवाददाता — कुल्लू Nov 28th, 2020 12:06 am

कुल्लू में 96 की उम्र में सांसारिक यात्रा को अलविदा कह गए लेखक, नम आंखों से सैकड़ों ने दी विदाई

प्राचीन टांकरी लिपि के ज्ञाता खूबराम खुशदिल ने अपनी सांसारिक यात्रा पूर्ण कर पंचतत्त्व में विलीन हो गए। टांकरी लिपि को सहेजने वाले खूबराम खुशदिल ने गुरुवार को अपने कराड़सू स्थित निवास में 96 की उम्र में अंतिम सांस ली। स्थानीय शमशानघाट में उनका दाह संस्कार किया गया। शुक्रवार को सैकड़ों नम आंखों ने टांकरी लिपि को पढ़ने व पढ़ाने वाले खूबराम खुशदिल को अंतिम विदाई दी। विलुप्त हो रही टांकरी लिपि को सहेजने के साथ-साथ खुशदिल महान विद्वान एवं विचारक भी थे। उन्होंने हिमाचल प्रदेश में टांकरी लिपि में लिखित असंख्य किताबों का हिंदी भाषा में अनुवाद करने के लिए जीवन के बीस वर्ष लगाए। वह प्रगतिशील बागबान भी थे। उनके निधन पर घाटी शोक में डूबी है।

 शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर, बंजार विधायक सुरेंद्र शौरी, आनी विधायक किशोरी लाल सागर, भाजपा के वरिष्ठ नेता युव राज बोद्घ, आरएसएस के जिला सह संचालक टेक चंद ठाकुर, सेवानिवृत्त जिला भाषा अधिकारी सीता राम ठाकुर, जिला भाषा अधिकारी सुनीला ठाकुर, शिक्षाविद्घ डा. पारस शर्मा, बाला राम ठाकुर ने खूबराम खुशदिल के निधन पर शोक प्रकट किया है। उनके जाने से समाज तथा शिक्षा जगत को जो क्षति हुई है, उसकी भरपाई करना असंभव है। टांकरी लिपि के ज्ञाता के जाने का गम किसी भी लेखक के लिए भूलना मुश्किल है।

सीखने वालों के लिए किताब तैयार

हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी के सदस्य एवं अखिल भारतीय इतिहास संकलन समिति के प्रांत कार्यकारी अध्यक्ष डा. सूरत ठाकुर ने खूबराम खुशदिल के दिवंगत होने पर शोक व्यक्त करते हुए बताया कि वह पूरे हिमाचल में एकमात्र टांकरी लिपि के ज्ञाता थे। उन्हें कुल्लू, मंडी, कांगड़ा, चंबा, महासुई और सिरमौरी में लिखी जाने वाली टांकरी लिपि का ज्ञान था। हिमाचल भाषा अकादमी के लिए उन्होंने बहुत सी पांडुलिपियों को अनुवाद करके दिया था। उनके पास टांकरी में लिखी हुई आयुर्वेद, तंत्रशास्त्र, ज्योतिष तथा इतिहास की अनेकों पांडुलिपियां मौजूद थी।

 उन्होंने टांकरी सीखने वालों के लिए एक पुस्तिका भी तैयार की थी। कुलूत संस्कृति विकास मंच के अध्यक्ष तोबदन व महासचिव हीरालाल ठाकुर ने कहा कि खूबराम जी टांकरी के साथ साथ कुल्लुवी संस्कृति के विद्वान थे। ठाकुर ने कहा कि अब टांकरी भाषा की पुरानी कोई भी ग्रंन्थ का अनुवाद करना बेहद मुश्किल होगा।


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