निचले हिमाचल की बागबानी सरकार का साथ मांगे

By: सूत्रधार एमके जसवाल सुभाष शर्मा टेकचंद वर्मा, अजय रांगड़ा Nov 25th, 2020 12:06 am

दो लाख 32 हजार 139 हेक्टेयर पर बागबानी

हिमाचल प्रदेश में दो लाख 32 हजार 139 हेक्टेयर क्षेत्र पर बागबानी हो रही है। इसमें साल दर साल बढ़ोतरी आ रही है। इसमें सबसे ज्यादा क्षेत्रफल पर सेब का उत्पादन हो रहा है। राज्य में एक लाख 13 हजार 154 हेक्टेयर पर सेब की बागबानी हो रही है। इसके अलावा 28 हजार 414 हेक्टेयर पर टेम्परेट फ्रूट, दस हजार 194 हेक्टेयर पर नट्स एडं ड्राई फ्रूट और 55 हजार 508 हेक्टेयर पर सब ट्रॉपिकल फ्रूट की बागबानी हो रही है। हिमाचल प्रदेश में साल दर साल उत्पादन के क्षेत्र में बढ़ोतरी आ रही है। प्रदेश में साल 2010-11 के दौरान 211295 हेक्टेयर में पर बागबानी हो रही थी। 2011-12 के दौरान 214574, 2012-13 में 218303, 2013-14 में 220706, 2014-15 में 224352, 2015-16 में 226799, 2016-17 में 229202, 2017-18 में 230853 और 2018-19 के दौरान 232139 हेक्टेयर पर बागबानी हो रही है। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में 705.77 हेक्टेयर पर पुष्प उत्पादन हो रहा है। राज्य में मशरूम व हनी का उत्पादन हो रहा है। राज्य में 2018-19 के दौरान मशरूम का उत्पादन 14206.70 मीट्रिक टन और हनी  यानी शहद का 1591.3 मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ था।

2019-20 के आंकड़े

जिला      क्षेत्रफल   उत्पादन

            हेक्टेयर    मीट्रिक टन

शिमला    48178     444837

कुल्लू      31004     145408

किन्नौर    12712     57744

कांगड़ा    40696     39485

मंडी       37313     65439

सिरमौर    15285     26920

ऊना       6097      20148

चंबा       16912     31041

सोलन     6036      8787

हमीरपुर   7737      2748

बिलासपुर 8354      2532

लाहुल     1815      333

कुल       232139   845422

मंडी के अप्पर एरिया में सेब लोअर में आम की महक

अब निचले हिमाचल में भी बागबान हर मौसम में फसलों का उत्पादन करने लग गए हैं। मैदानी क्षेत्रों में बागबानों द्वारा सेब की फसल तैयार करना एक बड़ी मेहनत का नतीजा है। हालांकि इन क्षेत्रों के बागबानों को सुविधा कम मिलती है। इसके बावजूद नई तकनीक अपनाकर फसलें तैयार की जा रही हैं। मंडी जिला में मुख्य तौर पर सबसे ज्यादा सेब की फसल का उत्पादन होता है। मंडी जिला के ऊपरी क्षेत्र जंजैहली, करसोग, सराज, पनारसा क्षेत्र का ज्वालापुर सहित अन्य क्षेत्र में सेब का उत्पादन होता है, जबकि सरकाघाट, धर्मपुर, सुंदरनगर का हराबाग, जोगिंद्रनगर सहित कुछ क्षेत्रों में आम की फसल की पैदावारी होती है। हालांकि बागबान कुछ क्षेत्रों में अनार, लीची का उत्पादन करते हैं, लेकिन जिला में प्रमुख तौर पर सेब की फसल की पैदावरी सबसे अधिक होती है।

वहीं, मंडी जिला में बागबान वर्ष 2010-11 में 35069 हेक्टेयर पर फसलों का उत्पादन होता था। इसमें 53759 मीट्रिक टन फलों का उत्पादन हुआ है। सेब का उत्पादन 15759 हेक्टेयर भूमि पर 46170 मीट्रिक टन हुआ है। अन्य शीतोष्ण फल 6228, अखरोट एवं अन्य सूखे मेवे 2957, नींबू 4490, अन्य उपउष्ण कटिबंधीय फल 5635 हेक्टेयर फसलों का उत्पादन होता था, लेकिन एक दशक में मंडी जिला में जहां टनों का उत्पादन मीट्रिक टनों तक पहुंच गया है, वहीं क्षेत्रफल में भी काफी इजाफा हुआ है। इससे उत्पादन में काफी बढ़ोतरी हुई है। वर्तमान समय में मंडी जिला में बागबान कुछ 37630.44 हेक्टेयर पर फसलों की उत्पादन कर रहे हैं। इसमें सबसे अधिक सेब की फसल 16849.45 हेक्टेयर भूमि पर उत्पादन होता है, जबकि अन्य फसलें दो से छह हेक्टेयर तक भी उत्पादित की जाती हैं। मंडी जिला में 2010-11 के दौरान सेब की फसल  46170 मीट्रिक टन हुई थी। वहीं वर्तमान में सेब का फसल की फसल करीब 57157.75 मीट्रिक टन हुई है, जबकि शीतोष्ण फल के अलावा अखरोट एवं सूखे मेवे के अलावा नींबू के साथ-साथ उपउष्ण कटिबंधीय के फसल में भी कुछ प्रतिशत इजाफा हुआ है।

वहीं, फसलों के उत्पादन के लिए विभिन्न योजनाओं के तहत एक दशक पहले एक से डेढ़ करोड़ का प्रावधान होता था, लेकिन वर्तमान में फसलों की किस्मों में भी बढ़ोतरी हुई है। विदेश किस्म के फसल भी तैयार  होने लग गए हैं, जिसके चलते मंडी जिला में विभिन्न योजनाओं को लेकर करीब 15 करोड़ की बजट खर्च किया जाता है।

इस बार कम हुई सेब की फ्लावरिंग

कटारु (जंजैहली) के बागबान विक्रम सिंह ठाकुर का कहना है कि प्रदेश सरकार बागाबानी व खेतीबाड़ी के लिए बेहतरीन कार्य कर रही है, लेकिन इस बार अप्रैल में ओलावृष्टि के कारण सेब की फ्लावरिंग कम हुई है। फसल को शुरुआत में ही रोग ने चपेट में ले लिया था, जिसके चलते सेब की फसल प्रभावित हुई है। प्रदेश सरकार सेब की फसल के लिए बेहतर कार्य कर रही है। विभिन्न योजनाओं के तहत सेब के लिए क्लस्टर स्थापित किए जा रहे हैं। इससे बागबानों को काफी लाभ मिलेगा। उन्होंने बताया कि अगर समस्त योजनाओं का बागबानों को भरपूर लाभ दिया जाए, तो सेब से हिमाचल फल राज्य बन सकता है।

लोगों को मिल रहा तमाम योजनाओं का लाभ

बागबानी विभाग ऊना के उपनिदेशक सुभाष चंद का कहना है कि बागबानी को बढ़ावा देने के लिए विभाग प्रयासरत है। तमाम योजनाएं बागबानों तक पहुंचाई जा रही हैं, जिसका लाभ भी बागबानों को आत्मनिर्भर कर रहा है

सरकारी योजनाओं का लाभ कुछ प्रतिशत ही

पनारसा क्षेत्र के बागबान जय कृष्ण ठाकुर का कहना है कि बागबानों को सरकारी योजनाओं का लाभ कुछ प्रतिशत मिल रहा है। वहीं, बागबान अपने स्तर पर ही सारी सुविधा रहे हैं। हर वर्ष मौसम की मार से फसलों पर विपरीत असर पड़ रहा है। वहीं, बागबानी को लेकर प्रदेश सरकार गंभीर है। हर वर्ष नई-नई योजनाओं के साथ बागबानों को लाभान्वित किया जा रहा है। इस बार कोरोना काल के चलते बागबानों को काफी नुकसान हुआ है। हिमाचल सेब से फल राज्य बन सकता है। क्योंकि वर्तमान समय में प्रदेश में नई किस्म के सेब की उत्पादन होने लगा है।

जनरल कैटेगिरी में सबसे ज्यादा बागबान

राज्य में 1989-90 के आकलन के तहत चार लाख 64 हजार 254 लोग बागबानी से जुड़े हुए हैं। इसमें जनरल कैटेगिरी के तीन लाख 17 हजार, 778, एससी के एक लाख 17 हजार 919, एसटी के 22 हजार 657 और अन्य पांच हजार 900 बागबान जुड़े हैं। हिमाचल भर की बात करें, तो राजधानी शिमला में 48 हजार 178 हेक्टेयर, कुल्लू में 31004, किन्नौर में 12,712, कांगड़ा में 40,696, मंडी में 37,313, सिरमौर में 15,285, ऊना में 6097, चंबा में 16,912, सोलन में 6036, हमीरपुर में 7,737, बिलासपुर में 8,354 और लाहुल-स्पीति में 1,815 हेक्टेयर पर बागबानी हो रही है।

बागबानी विस्तार के लिए 47 लाख

सिरमौर जिला में बागबानी के विस्तार के लिए वर्तमान वर्ष में 47 लाख की राशि से क्षेफफल विस्तार किया गया है। इसके अलावा बागबानी के विस्तार के लिए बागबानी को बाहरी राज्यों में प्रशिक्षण के लिए वर्ष में दस से 12 लाख की व्यय कर उन्नत्त किया गया है। जिला में बागबानी का निजी क्षेत्र में भी उम्दा प्रदर्शन देखने को मिला है। जिला के कई अग्रणी बागबानों ने बिना सरकारी सहायता के भी उम्दा उत्पादन विभिन्न फलों में किया है। हालांकि इसकी प्रतिशतता पांच से दस प्रतिशत ही है।

सरकार का ध्यान सिर्फ सेब पर

कालाअंब के आम के बागबान सुकेती के सुभाष शर्मा का कहना है कि प्रदेश का सारा फोकस सेब की फसल की ओर ही है। सेब की अर्ली वैरायटी को प्रदेश के सभी हिस्सों में उत्पादित करने के लिए विदेशों से भी पौधे आयत किए जा रहे हैं। वहीं, सेब बेल्ट बागबानों की लॉबी स्ट्रांग होने के चलते भी सेब की फसल की ओर ही सरकारों का ध्यान ज्यादा रहा है। उनका कहना है कि जिला में सिट्रस फल, आम तथा गुठलीदार का उत्पादन अधिक है, जिसके लिए यदि बागबानी विभाग ने योजनाएं चलाई भी हैं, तो धरातल पर उतरते ही यह धराशाही हो जाती हैं। फलों के सरकारी स्तर पर समय और सीजन पर प्लांट नहीं मिल पाते हैं। वहीं, कीटनाशक दवाइयों का भी अभाव रहता है, जिससे सरवाइवल कम रहती है।

ऊना में  दस साल में बढ़ा 361 हेक्टेयर एरिया

जिला ऊना में बागबानी के क्षेत्रफल में लगातार इजाफा हो रहा है। पिछले दस साल में जिला में 361 हेक्टेयर बागबानी का क्षेत्र बढ़ा है। वर्ष 2010-11 में जिला में बागबानी का क्षेत्र 1881 था, जो कि अब वर्ष 2019-20 में 2242 हेक्टेयर हो गया है। जिला ऊना फलों के राजा आम की उन्नत फसल से जाना जाता है, जिसकी बंपर फसल की पैदावार में रिकॉर्ड तोड़ बढ़ोतरी हो रही है। वर्ष 2010-11 में आम की फसल 7280 मीट्रिक टन थी, जो कि अब 2019-20 में बढ़कर 16500 मीट्रिक टन हो गई है। जिला में बागबानी मिशन को बढ़ावा देने के लिए दो से साढ़े चार करोड़ तक का बजट खर्च किया जा रहा है। इसके अंतर्गत सरकारी योजनाओं को बागबानों तक पहुंचाया जा रहा है।

अनुदान स्कीमों को हर उस जरूरतमंद बागबान तक पहुंचाने में ग्रामीण इलाकों में विभिन्न शिविरों का आयोजन किया जा रहा है। निचले क्षेत्र में बागबानी को विस्तार देने के लिए सरकार की ओर से 1688 करोड़ के बजट से उपोषण कटिबंधीय बागबानी सिंचाई एवं मूल्य ब्रधर्न प्रोजेक्ट कार्यान्वित किया जा रहा है। वर्ष 2021-22 में इस योजना को ऊना जिला के बंगाणा में शुरू किया जा रहा है, जिसमें 150 हेक्टेयर क्षेत्र में संतरा, नींबू प्रजाति व अमरूद के लिए प्रोजेक्ट के दायरे में लिया जा रहा है, जिसके लिए समूह चयन प्रक्रिया चली है।

सरकार आए आगे

बागबान शिव शशि कंवर ने कहा कि निचले क्षेत्र में बागबानी को बढ़ावा देने के लिए सरकार को आगे आना चाहिए। अग्रणी बागबानों को प्रोत्साहित करना चाहिए।

सख्ती से नियम तय करें

बागबान बेल सिंह ने कहा कि बागबानी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए पौध नर्सरी चलाने वालों को नर्सरी में तैयार किए पौधे लगाने के लिए सख्ती से नियम तय किए जाने चाहिए।

स्टोन फ्रूट्स के लिए सिरमौर फेमस

जिला सिरमौर में बागबानी दिनोंदिन बढ़ोतरी की ओर है। इसकी वजह है कि जिला में भी केंद्र और राज्य सरकार की प्रायोजित विभिन्न योजनाओं को बागबानी विभाग द्वारा लागू कर जिला के बागबानों को लाभ दिया जा रहा है। केंद्र सरकार की बागबानी की योजनाओं में राज्य सरकार द्वारा भी अतिरिक्त अनुदान राशि उपलब्ध करवाकर इसके क्षेत्र को विस्तारित करने की ओर अग्रसर किया जा रहा है। हिमाचल पुष्प क्रांति योजना, मधु विकास योजना, हिमाचल खुंब विकास, बागबानी यंत्रीकरण योजनाओं के अलावा अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट, जिनमें हिमाचल प्रदेश हार्टिकल्चर डिवेलपमेंट प्रोजेक्ट और हिमाचल प्रदेश शिवा, जिसे एशियन विकास बैंक द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा है, से जिला में बागबानी को बढ़ावा दिया जा रहा है। चूंकि जिला सिरमौर की बागबानी फसलों के लिए जलवायु विविधता लिए हुए है। लिहाजा जिला सिरमौर में मुख्य रूप से सेब, स्टोन फ्रूट, आम तथा स्ट्रॉबरी का उत्पादन किया जा रहा है। जिला की जलवायु मुख्यतः बागबानी के लिए चार भागों में यहां बंटी है, जिसके चलते सेब, गुठलीदार फल, आम तथा मैदानी भागों में स्ट्रॉबरी की फसल पैदा की जा रही है।

जिला सिरमौर में बागबानी क्षेत्रफल की बात की जाए, तो यहां जहां पिछले पांच वर्ष तक 14,822 हेक्टेयर क्षेत्र में बागबानी की जा रही थी, जिसमें 18,356 मीट्रिक टन फल का उत्पादन हो रहा था। वहीं, अब बागबानी का क्षेत्र विस्तार 15,285 हेक्टेयर क्षेत्र तक हो गया है, जिसमें 26,920 मीट्रिक टन फल का उत्पादन हो रहा है। पिछले एक दशक के बागबानी के जिला सिरमौर में क्षेत्र और फल उत्पादन की ओर देखें, तो जिला में मुख्य रूप से उत्पादित होने वाले फलों में सेब का जहां 3187 हेक्टेयर क्षेत्र में 567.5 मीट्रिक टन उत्पादित किया जा रहा था। वहीं, अब यह 2500 हेक्टेयर क्षेत्र में ही हो रहा है, जिसमें उत्पादन बढ़कर चार हजार मीट्रिक हो गया है। जिला में सेब का भले ही एरिया घटा है, मगर सेब की संघन खेती के चलते इसके उत्पादन में बढ़ोतरी दर्ज हुई है। इससे पूर्व सेब को बागीचों में दूर-दूर प्लांट किया जाता था, जिसमें तकनीक के बदलाव से संघन खेती अब की जाने लगी है।

और बढ़ता गया फैलाव

सिरमौर की दूसरी मुख्य फल उत्पादन यहां गुठलीदार फलों का है, जिसमें एशिया प्रसिद्ध आड़ू, प्लम की मुख्य फल फसलें उगाई जा रही हैं। पिछले एक दशक में जहां गुठलीदार फलों का रकबा 3423 हेक्टेयर क्षेत्रफल में था तथा फल का उत्पादन 8455 मीट्रिक का हो पाता था। वहीं अब यह स्टोन फ्रूट का एरिया जिला में 5241 हेक्टेयर का हो गया है तथा फल का उत्पादन 10,700 मीट्रिक टन का हो रहा है। जिला में मुख्य फल के रूप में उगाया जा रहा आम का एक दशक पूर्व 1864 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैलाव था, जिसमें 2125 मीट्रिक टन उत्पादन होता था, जबकि वर्तमान में 3061 हेक्टेयर क्षेत्रफल में आम का उत्पादन बढ़कर 3500 मीट्रिक टन का हो गया है।

जिला में बागबानी को बढ़ावा देने की बात की जाए, तो एक दशक पूर्व में वर्ष 2010-11 में जहां 72 लाख का बजट जिला के लिए रखा जाता था। वहीं, अब बागबानी का 2019-20 में 11.45 करोड़ के बजट से बागबानी को वित्त पोषित किया जा रहा है। वहीं, बागबानी के विस्तार के लिए सरकारी स्तर पर 12 करोड़ के लगभग अनुदान राशि देकर बागबानी को प्रोत्साहित किया जा रहा है। वहीं, पॉलिहाउस, वाटर टैंक, फल पौधरोपण, सब्जी, फूल, मसालेदार फसलों के विस्तार में भी 50 प्रतिशत तक धनराशि दी गई है।

सरकारी स्तर पर गंभीरता नहीं

सिरमौर के प्रगतिशील बागबान राजगढ़ के दाहन निवासी सुरेंद्र सिंह ने बताया कि सरकारी स्तर पर बागबानी में जिला में गंभीरता नजर नहीं आती है। विशेषकर गुठलीदार फलों को लेकर सरकार और विभाग की भी उदासीनता नजर आती है। यही वजह है कि हमारा स्टोन फ्रूट एचपीएमसी में नहीं खरीदा जाता। वहीं, स्टोन फ्रूट का बचा और पका हुआ माल भी सरकारी स्तर पर खरीदा नहीं जाता। वहीं सरकार का सेब की ओर अधिक ध्यान है।

गुठलीदार फलों की मंडिया भी दिल्ली और दूसरे राज्यों में ही हैं। जिला में मंडियों के अभाव में गुठलीदार फल पेटियों में ले जाना होता है, जिससे समय पर माल न पहुंचने के कारण फल खराब भी हो जाता है। इसके चलते अब बागबानों की दिलचस्पी भी कम होती जा रही है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App