निश्चितता और अनिश्चितता

By: सद्गुरु  जग्गी वासुदेव Nov 28th, 2020 12:20 am

आप यहां आए बिना किसी निवेश के। जब जाएंगे तब भी आपके हाथ में कोई पूंजी नहीं होगी। इस बीच जो कुछ भी हो, आपका तो लाभ ही होगा क्योंकि अब आपके पास जीवन का अनुभव भी होगा। महत्त्वपूर्ण यह है कि आप जीवन को किस तरह अनुभव करते हैं। अगर आपकी भीतरी स्थिति मानसिक विवशताओं से मुक्त और जागरूक है, तो आप अपने अनुभव खुद तय कर पाएंगे…

यह सच है कि बाहरी दुनिया में कुछ भी निश्चित नहीं है। अनिश्चितता ही चीजों को चुनौतीपूर्ण बनाती है। अनिश्चितता का अर्थ है कि चीजें बदलती रहती हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो कहीं कुछ ठहरा नहीं है। आप तेज चल रहे हैं तो आपका हर कदम ऐसी जमीन पर पड़ता है जिसकी आप ठीक तरह से जांच-परख नहीं कर पाए हैं। इसी को आप अनिश्चितता कहते हैं, जो नए अवसर या मौकों की तलाश में हैं, अनिश्चितता का समय उनके लिए सर्वश्रेष्ठ है। बाकी लोग अनिश्चितता को समस्या के रूप में देखते हैं, लेकिन क्योंकि आप लगातार अपनी मानसिक विवशताओं की प्रतिक्रियाओं में उलझे हुए हैं, तो निश्चितता की इच्छा करते हैं। निश्चितता है तो कोई बदलाव नहीं होगा, है न? किसी भी व्यवसाय या राजनीतिक या सामाजिक व्यवस्था में बदलाव न होने का मतलब है, कोई परिवर्तन न होना। ऐसी स्थिति में कोई विकास नहीं होता। विकासहीन माहौल में आप ऊब जाएंगे और क्रियाशील माहौल के लिए जरूरी संतुलन आप में है नहीं यानी समस्या माहौल की नहीं, बल्कि आपकी आंतरिक अनिश्चितता की है। आप तभी शांत रह सकते हैं, जब सारी दुनिया बदल जाए, तो यह संभव नहीं है। विकल्प यह है कि हम आप के भीतर परिवर्तन करें। इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है कि आप अपनी मानसिक विवशताओं यानी मजबूरियों से छूट जाएं तो आप हर परिस्थिति को अपनी योग्यता अनुसार संभाल लेंगे। हो सकता है कि आप किसी और की तरह कुशल न हों पर आप हर परिस्थिति में अपनी काबिलियत के अनुसार अपनी सबसे बेहतर कोशिश करेंगे बस और साथ ही अपनी मानसिक विवशताओं से बेबस होकर हर स्थिति में पीड़ा सहन करने से बच जाएंगे।

 आपका भीतरी तत्त्व अपने आप में एक अलग आयाम है। इसे बाहर की परिस्थिति के अनुसार ढाला नहीं जा सकता। बाहर निश्चितता है तो मैं इस तरह की भीतरी स्थिति रखूंगा, अब बाहर अनिश्चितता है तो मैं दूसरी तरह की भीतरी स्थिति रखूंगा, जब मेरे इर्द-गिर्द लोग अच्छे हैं तो मैं इस तरह का अंतरमन रखूंगा, जब मेरे इर्द-गिर्द लोग बुरे हैं तो मैं दूसरी तरह का अंतरमन रखूंगा, इस तरह करना संभव नहीं है। भीतरी स्थिति आप निर्धारित नहीं कर सकते। वो बस है। उसे किस प्रकार बनाए रखें? उसे बनाकर नहीं रखा जा सकता। जागरूकता है, तो मानसिक विवशताएं नहीं होंगी। आप यहां आए बिना किसी निवेश के। जब जाएंगे तब भी आपके हाथ में कोई पूंजी नहीं होगी। इस बीच जो कुछ भी हो, आपका तो लाभ ही होगा क्योंकि अब आपके पास जीवन का अनुभव भी होगा। महत्त्वपूर्ण यह है कि आप जीवन को किस तरह अनुभव करते हैं। अगर आपकी भीतरी स्थिति मानसिक विवशताओं से मुक्त और जागरूक है, तो आप अपने अनुभव खुद तय कर पाएंगे। सांसारिक परिस्थितियों को आप केवल कुछ हद तक ही निर्धारित कर सकते हैं। पर आप जीवन को किस तरह से अनुभव करेंगे ये शत प्रतिशत आप ही तय करते हैं।


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