ऑनलाइन पढ़ाई के खलल

By: Nov 24th, 2020 12:06 am

लौटती हिदायतों के कदम पुनः कोरोना काल की समीक्षा कर रहे हैं और सामने आंकड़ों की रेत पर फिसलती जिंदगी। चार कदम चले थे, ताकि मीलों बाधित रास्ते खुल सकें, लेकिन अब फिर पाबंदियों के खूंटे तैयार हैं। हिमाचल के कार्यालयों में कोरोना की घुसपैठ का एक फलसफा तो यही कि कांगड़ा के जिलाधीश-एसपी कार्यालय और धर्मशाला नगर निगम हों या शिमला सचिवालय के कर्मचारी, सभी दफ्तरों के प्रवेश द्वार आफत में हैं। फिर चिंता यही कि कहीं कोई मनहूस घड़ी बाजार के बीच घूमी दिवाली को अभिशप्त करके लौट न जाए या अनलॉक बस्तियों को सख्त पहरों में डाल दे। हिमाचल में भी बात नाइट कर्फ्यू तक पहुंच गई है, तो दूसरी तरफ शिक्षण संस्थानों की खिड़कियां बंद हैं। इस बीच हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय ने स्नातक स्तर के प्रथम व द्वितीय वर्ष के छात्रों को अगली कक्षाओं में प्रोमोट करने का उपाय मजबूरीवश खोज लिया। छात्रों के लिए यह वर्ष नहीं अपने भविष्य की रिक्तता में गुजरा ऐसा वक्त है, जो सदा अपने मुकाम पर चिन्हित होगा। ऑनलाइन शिक्षा की कैद में बच्चे केवल हिमाचली शिक्षण संस्थानों से नहीं, बल्कि देश-विदेश की पढ़ाई से प्रदेश से संपर्क हो रहा है।

क्या कभी इस पर चर्चा होगी कि ऑनलाइन पढ़ाई के वातावरण में बिजली विभाग या इंटरनेट कितना खलल डाल रहा है। हिमाचल में खपत के नजरिए से बिजली की बढ़ती मांग में ऑनलाइन शिक्षा का इस्तेमाल दिखाई दे रहा है, फिर भी यह गारंटी नहीं कि आपूर्ति सही होगी। सर्दियां आते ही विद्युत आपूर्ति की बिगड़ी स्थिति का बोझ छात्र समुदाय उठा रहा है। ऑनलाइन पढ़ाई के लिए यह आवश्यक बिंदु है और परीक्षाओं के दौर में इसकी अनिवार्यता को समझते हुए सरकार को दखल देना होगा। कुछ इसी तरह इंटरनेट इस्तेमाल को और सुविधाजनक तथा सक्षम बनाने की चुनौतियों में हिमाचल सरकार को संबंधित एजेंसियों से संपर्क साधना होगा। दरअसल कोरोना हालात पर बदलते फरमानों से एक हद या सीमित दायरे में चेतावनी भरे प्रबंध हो सकते हैं, लेकिन तस्वीर के दूसरे पहलू में रंग भरने की जरूरत है। यानी अगर शिक्षा की मजबूरियां दिखाई दे रही हैं या ऑनलाइन पढ़ाई में ही यह सत्र गुजरेगा, तो सरकार इसके नीतिगत प्रबंधन की दिशा में बढ़े। यह सुनिश्चित किया जाए कि ऑनलाइन पढ़ाई के पार्टनर के रूप में शिक्षक, स्कूल, शिक्षा विभाग, स्कूल शिक्षा बोर्ड तथा विश्वविद्यालय बेहतर तालमेल से कैसे काम करें। प्रदेश के विद्युत विभाग तथा इंटरनेट सेवाओं को भी इसी दायरे में लाने की आवश्यकता है।

 जीवन की उम्मीदों में चिकित्सा सेवाओं में आई अपंगता का इलाज भी जरूरी है। न तो कोविड सेंटर-अस्पताल अपनी क्षमता को साबित कर रहे हैं और न ही सामान्य अस्पतालों के रूप में विभिन्न प्रकार के मरीजों का सही उपचार हो पा रहा है। कोविड केयर के मजमून में फैली भ्रांतियां भले ही खत्म हों, इससे प्रभावित आंकड़ों का दस्तूर  नित नई चुनौतियों में कबूल करना होगा। पहले प्रश्नों को लॉकडाउन ने अवश्य ही समेट लिया, लेकिन अनलॉक को फिर से ताले में बंद करना मुमकिन नहीं। सरकारी पक्ष की करवटों में कर्मचारी साम्राज्य चल सकता है या सत्ता की चिंताओं में राजनीतिक हल निकल सकता है, लेकिन जनता के भीतर दरवाजे खुले रखने को मुश्किल कसरतों की आवश्यकता है। बढ़ते आंकड़ों के बीच स्कूल चलें या न चलें, पढ़ाई को चलाना पड़ेगा। कोविड के उठते ग्रॉफ से भले ही ग्राहक सहम जाए, बाजार को चलना ही पड़ेगा। नाइट कर्फ्यू से भले ही रात्रि विराम हो जाए, लेकिन जिंदगी के सफर को कब तक रोकेंगे। सवाल जनता के व्यवहार की समीक्षा का नहीं, बल्कि आदर्शों के दोगलेपन का है जहां सार्वजनिक समारोहों की रखवाली में सत्ता के नजारे हैं, लेकिन ऐसी ही परिपाटी में विवाहों के मिलन समारोह दोषपूर्ण हो जाते हैं।


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