पंचभीष्म मेले जयंती माता

By: Nov 21st, 2020 12:22 am

जयंती माता मंदिर में हर साल पंचभीष्म मेले लगते हैं। जो बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं, लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के कारण माता के मंदिर में शायद पहले जैसी रोनक देखने को न मिले। क्योंकि कोरोना ने हर त्योहार और उत्सव पर असर डाला है। इस बार ये मेले 25 नवंबर से शुरू हो रहे हैं, जो 30 नवंबर तक पांच दिन चलेंगे। हर बार इन मेलों को लेकर मां के दरबार को खूबसूरत ढंग से सजाया जाता है। कांगड़ा में मां जयंती का मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है। इन मेलों के दौरान पांच दीये मां के दरबार में पांच दिन तक अखंड जलेंगे।

कांगड़ा के साथ लगती पहाड़ी पर स्थित जयंती माता का मंदिर काफी प्राचीन है। पंचभीष्म मेले हर साल कार्तिक मास की एकादशी से शुरू होते हैं। इस दौरान तुलसी को गमले में लगाकर उसे घर के भीतर रखा जाता है और चारों ओर केले के पत्र लगाकर दीपक जलाया जाता है। कांगड़ा किला के बिलकुल सामने 500 फुट की ऊंची पहाड़ी पर स्थित जयंती मां दुर्गा की छठी भुजा का एक रूप है। द्वापर युग में यह मंदिर यहां पर निर्मित हुआ था। जयंती मां जहां जीत की प्रतीक हैं, तो वहीं पाप नाशिनी भी हैं। शक्तिपीठ माता बज्रेश्वरी देवी मंदिर से करीब छः किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित जयंती माता का मंदिर भक्तों के लिए महत्त्वपूर्ण आस्था स्थल है। कांगड़ा के आसपास के क्षेत्रों के साथ अन्य प्रदेशों के लोगों में भी जयंती माता के प्रति काफी आस्था है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां पर पांडवों का भी वास कुछ समय तक रहा है।

पंचभीष्म मेलों के दौरान इस क्षेत्र का नजारा ही कुछ और होता है। मंदिर में पांच दिनों तक चलने वाले इन मेलों में कांगड़ा ही नहीं, बल्कि दूरदराज के क्षेत्रों से भी लाखों की संख्या में लोग यहां पर मां के दर्शनों के लिए उमड़ते हैं। बीते वक्त के साथ-साथ यहां पर बेहतर रास्ते का निर्माण भी करवाया गया है और अन्य सुविधाएं भी लोगों को उपलब्ध करवाई जाती हैं। कार्तिक मास की एकादशी में पंचभीष्म का पर्व विशेषकर महिलाओं के लिए खास है। महिलाएं पांच दिन तक व्रत रखती हैं और मात्र फलाहार पर ही निर्भर रहती हैं। तुलसी को गमले में लगाकर उसे घर के भीतर रखा जाता है और चारों ओर केले के पत्र लगाकर दीपक जलाया जाता है। उसके बाद पांचवें दिन पूजे हुए दीपक को बुझा दिया जाता है। इसी दीपक को पंचभीष्म के दिन सात साल तक जलाया जाता है। जयंती माता को पंच भीष्म के साथ मनोकामना पूर्ण करने वाली माता के नाम भी जाना जाता है।


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