प्रभु की प्राप्ति, क्यों और कैसे

By: बाबा हरदेव Nov 21st, 2020 12:20 am

समय के बदलते युगों के बदल जाने से प्रभु की प्राप्ति के तरीके  नहीं बदल गए हैं, साधन नहीं बदल गए हैं। जैसे दुनिया में पुराने समय से ही पानी प्यास बुझाने के लिए है। यह तो नहीं कि उस वक्त भोजन किया करते थे या कोई अच्छे वस्त्र पहन लिया करते थे, तो इससे उनकी प्यास बुझ जाती थी। प्यास पानी पीने से ही तो बुझती थी। जिस सूरज की रोशनी से खेतों में अन्न पका करते थे, उसी सूरज की तपश से कीटाणुओं का नाश हुआ करता था। सूरज जो काम उन युगों में कर रहा था, वही काम आज भी कर रहा है। पुरातन युगों में जैसे साधन बने थे, वह आज तक चलते आ रहे हैं। तो क्या भक्ति में कुछ फर्क आ गया होगा? उन दिनों नम्रता भक्ति का एक अंग था और आजकल तो अभिमान भक्ति का अंग हो गया है। क्या उसी से ही पार उतारा होगा? नहीं। जिनते भी संत, महापुरुष पुरातन युगों में इस संसार में आए हैं, उन्होंने जो रास्ता तब अपनाया, वही रास्ता आज भी अपनाना होगा, आज भी उसी को अपने जीवन में , अपने मन में स्थान देना होगा। यह है प्यार, सत्कार, समदृष्टि और नम्रता वाला रास्ता। ये गुण जब तक हमारे जीवन में नहीं आएंगे, हम कभी न तो प्रभु को प्राप्त कर सकते हैं और न ही सुख की सांस ले सकते हैं। सुंदर कीर्ति को देखकर कलाकार के विषय में सभी जानना चाहते हैं। परमात्मा की कृति इतनी विचित्र और अनोखी है कि देख-देखकर आश्चर्य होता है।

एक बार कोई इनसान नारियल के पेड़ के नीचे कुछ ढूंढ रहा था। किसी ने पूछा, भाई साहब क्या बात है? कुछ पैसे गिर गए? आप क्या ढूंढ रहे हैं? क्या कोई वस्तु गिर गई है। कहता है, नहीं फिर भी टटोल कर देख रहा था। उसने फिर पूछा, भाई साहब आप क्या देख रहे हैं, बताते क्यों नहीं। वह इनसान कहने लगा मैं  देख रहा हूं कि वह पाइप कहां लगी है, जो नारियलों में पानी भरती है। मैं उस पाइप को ढूंढ रहा हूं। कहने का भाव यह है कि प्रभु तो बिना पाइप के ही नारियलों में पानी भर देता है और कभी अभिमान नहीं करता। प्रभु के भक्त भी अभिमान नहीं करते। साधसंगत! इस संसार में इनसान कोई छोटी वस्तु भी बना लेता है, तो गर्व से कहता है कि देखों मैंने क्या कर लिया, मैं तो बहुत बड़ा कलाकार बन गया हूं। मेरे में तो कितने हुनर हैं। अगर ईश्वर की एक-एक रचना को इनसान देख ले, अपने ही शरीर को, नाखून से लेकर सिर के बाल तक देख ले, एक-एक अंग के कार्य देख ले, तो इनसान दंग रह जाएगा। यह जो शरीर का सिस्टम बनाया है, यह क्या ऐसे ही बन गया है। इसके पीछे कलाकार है, इनसान अज्ञानता में उसे ही भूल गया है, अपने आप को करने-कराने वाला मानता है और फिर मायावादी बनकर वह इन्हीं में उलझा हुआ, अपने इस जीवन को बेकार कर लेता है। मायापति को जाने बिना, यह माया भी सुख देने वाली नहीं होती। प्रभु से मिले बिना इनसान की आत्मा व्याकुल होकर भटकती रहती है।


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