शादी समारोहों पर नकेल

By: Nov 18th, 2020 12:06 am

कोविड काल की निशानियों में बदलते सुरक्षा पहर की परीक्षा और सवालों के नित नए चयन। जनता के व्यवहार में संयम लाने के तौर तरीके अब महज चेतावनी नहीं, अनुशासित होने का आदेश भी है। दिवाली का त्योहार या यूं कहें कि इसके मिजाज में हिमाचल ने कुछ सीमाओं का उल्लंघन किया, नतीजतन तीव्र गति से कोविड पॉजिटिव मामलों में इजाफा हुआ है। खतरे किसी चाबुक की तरह हमारे सामने लटक रहे हैं और इसी अनिवार्यता में पुनः कोविड काल ने सख्त हिदायतें देनी शुरू की हैं। कुछ दिन पहले सरकारी स्कूलों को अवकाश के मोड में डालना अगर कोविड निगरानी में अनिवार्य हुआ, तो शादी, सांस्कृतिक व सामाजिक समारोहों पर फिर से नकेल कसने का दौर शुरू हुआ है। हिमाचल सरकार ने पारिवारिक समारोहों की छूट पर लगाम लगाते हुए सभी प्रकार के आयोजनों में मेहमानों की संख्या सौ तक निर्धारित की है। यह फैसला किस तरह प्रभावी होगा तथा समाज ऐसी भावना को किस तरह अहमियत देता है, इसके ऊपर सख्त निगरानी व फीडबैक की जरूरत रहेगी। समाज का एक बड़ा वर्ग अनलॉक माहौल में निरंकुश तथा स्वच्छंद हो रहा है।

 इसके लिए मास्क का इस्तेमाल, सोशल डिस्टेंसिंग तथा बाकी उपायों की कोई अहमियत नहीं है। हिमाचल के त्योहारी सीजन ने जाहिर तौर पर बाजार की मांग बढ़ाई, लेकिन इसके साथ खतरे भी बढ़ गए। दिवाली मनाने की छूट ने पटाखों से पर्यावरण का हाल इस कद्र बिगाड़ा कि धर्मशाला जैसे शहर का प्रदूषण स्तर अपनी खराब हालत में प्रदेश भर में अव्वल हो गया। राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों के बावजूद पटाखों का बाजार इतना गर्म रहा कि जनता ने इन्हें वर्जनाओं से कहीं आगे फोड़ा और हालात अब कसूरवार ठहरा रहे हैं। कोरोना की लौटती लहरें अगर विकसित देशों की सांस फुला रही हैं, तो यह भारतीय संदर्भों में कड़ी चेतावनी है। देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना के हर सबक की कहानी, कमोबेश हर राज्य के लिए है। इसी तरह हिमाचल की सार्वजनिक गतिविधियों के भीतर भी अंधेशों का संगम पैदा हो रहा है। पारिवारिक, सांस्कृतिक समारोहों तथा व्यापारिक गतिविधियों को गति देना अगर आवश्यक है तो यह देखना भी जरूरी है कि लोग यह न समझें कि कोरोना काल पूरा हो गया है। यह अनलॉक भारत के बीच कोरोना के खिलाफ हिदायतों की बेडि़यां हैं, जिन्हें खोले बिना आगे बढ़ना होगा।

 उदाहरण के लिए कांगड़ा प्रशासन ने मंदिरों में हवन-यज्ञ की अनुमति देकर जनता की आस्था से जुड़े विषय का समाधान किया, लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं कि ऐसे आयोजनों का सार्वजनिक पक्ष विस्तृत आकार ले। शिमला जैसे शहर में स्थानीय परिवहन की जरूरतों के बीच अगर यात्री ओवरलोडिंग की परिस्थिति में सुविधाएं हासिल कर रहे हैं, तो यह खतरनाक छूट है। दरअसल बचे खुचे कोरोना काल की अवहेलना की ज्यादा कीमत चुकानी पड़ सकती है, अतः सरकार को भी सार्वजनिक आदर्शों में खुद पर नियंत्रण लगाना होगा। प्रस्तावित जनमंच तथा शिलान्यास व उद्घाटन समारोह परोक्ष रूप में इस दृष्टि से रोके जा सकते हैं या स्थानीय निकाय चुनावों में ऐसी चुनौतियों को नजरअंदाज किया जा सकता है। बेशक सार्वजनिक व सामाजिक गतिविधियों के आश्वासन से ही रुका हुआ आर्थिक चक्कर पूरी तरह घूम सकता है, लेकिन भीड़ को निरंकुश फिलहाल नहीं छोड़ा जा सकता है। कोरोना काल के अंतिम पहर को मापना मुश्किल है और अभी तक इस आपदा के खिलाफ कोई चिकित्सकीय सुरक्षा चक्र पैदा नहीं हुआ है, लिहाजा बचाव की शर्तों में कोई छूट नहीं दी जा सकती। हिमाचल सरकार ने स्कूली छुट्टियों के बाद शादी जैसे आयोजनों में भीड़ को नियंत्रित करने के मानक बनाए हैं, देखना यह होगा कि समाज इसे कैसे लेता है और प्रशासन इसे कैसे निभाता है।


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