शरीर का अनुशासन

By: ओशो Nov 21st, 2020 12:20 am

अगर तुम सुनो और अपने शरीर के प्रति ध्यानपूर्ण हो जाओ, तो तुम इस तरह से अनुशासित होने लगोगे, जिसे अनुशासन नहीं कहा जा सकता। अब शरीर क्रिया वैज्ञानिकों का कहना है कि सोते समय हर किसी के शरीर का सामान्य तापमान दो घंटे के लिए, दो डिग्री गिर जाता है। तुम्हारे लिए यह तीन से पांच के बीच हो सकता है या दो से चार के बीच या चार से छह के बीच, लेकिन हर किसी का शरीर तापमान प्रत्येक रात दो डिग्री गिर जाता है और वे दो घंटे नींद के लिए सबसे गहरे होते हैं। अगर उन दो घंटों में तुम नहीं सोते हो जब तापमान कम था, तो तुम पूरा दिन थकान अनुभव करोगे, ऊंघ, जम्हाई लेते रहोगे और तुम्हें कुछ खोया सा लगेगा। तुम ज्यादा परेशान रहोगे। शरीर अस्वस्थ लगेगा।अगर तुम ठीक दो घंटे बाद उठ जाओ, जब वे दो घंटे बीत चुके हैं, वह तुम्हारे उठने का का सही समय है। तब तुम तरोताजा होते हो। अगर तुम सिर्फ  वे दो घंटे सो सको तो भी चलेगा। छह, सात या आठ घंटों की जरूरत नहीं है। अगर तुम सिर्फ  वे दो घंटे सो सको जब तापमान दो डिग्री नीचे हो, तुम एकदम आरामदेह और प्रसन्न अनुभव करोगे। सारे दिन तुम प्रसाद, शांति, स्वास्थ्य, पूर्णता, कल्याणमय अनुभव करोगे।अब प्रत्येक को यह देखना होगा कि वे दो घंटे कौन से हैं। बाहर के किसी अनुशासन का पालन मत करो, क्योंकि वह अनुशासन उसके लिए उचित होगा जिसने उसे बनाया है। तुम्हें अपना शरीर खोजना पड़ेगा, इसके ढंग, जो इसको रुचे वही तुम्हारे लिए उचित है। एक बार तुमने इसे खोज लिया, तो तुम इसे आसानी से कर सकते हो और यह थोपा हुआ नहीं होगा क्योंकि यह शरीर के साथ संगति में होगा। इसलिए तुम कुछ भी इस पर थोप नहीं रहे हो, कोई संघर्ष नहीं है, कोई प्रयास नहीं है। खाते समय ध्यान से देखो, तुम्हारे लिए क्या उचित है।

लोग सब तरह की चीजें खाते रहते हैं। तब वे परेशान होते हैं। फिर उनका मन प्रभावित होता है। किसी अन्य के अनुशासन का पालन मत करो, क्योंकि कोई भी तुम्हारी तरह नहीं है, इसलिए कोई नहीं बता सकता तुम्हारे लिए क्या अनुकूल रहेगा। इसलिए मैं तुम्हें केवल एक अनुशासन देता हूं और वह है आत्म जागरण, जो स्वतंत्रता का हिस्सा है। तुम अपने शरीर की सुनो। शरीर के भीतर एक गहन बुद्धिमत्ता है। अगर तुम इसे सुनो, तुम हमेशा सही होंगे और अगर तुम इसकी नहीं सुनोगे और इसके ऊपर चीजें थोपे जाओगे, तुम कभी भी खुश नहीं रहोगे, तुम दुखी रहोगे, बीमार, असहज और हमेशा परेशान और विचलित, खोए हुए रहोगे। क्षण का आनंद लेने का नई चीजों से कोई संबंध नहीं है। क्षण का आनंद निश्चित ही सामंजस्य से संबंधित है। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी का शरीर एक जैसी प्रक्रिया नहीं दोहरा सकता। सोने और जागने का नियम तो आपको बनाना है। आप जैसे अपने शरीर को ढालोगे वैसा ही बन जाएगा। जब एक बार आप इसे खोज लेते हैं, तो जीवन में अनुशासन अपने आप ही बन जाता है। बस थोड़ा सजग और सतर्क होने की जरूरत है। फिर आप पीछे मुड़कर नहीं देखोगे। अपने जीवन को सही सांचे में ढालने के लिए प्रयत्न तो आपको ही करना होगा। किसी दूसरे पर निर्भर होने की बजाय अपने आप कार्य में संलग्न होना सीखें।


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