टीका ‘राम-बाण’ नहीं

By: Nov 25th, 2020 12:06 am

कोरोना टीके का बहुत शोर मचा है। अमरीकी कंपनियों-मॉडर्ना और फाइजर-ने तो दावे किए हैं कि उनके टीके (वैक्सीन) 94-95 फीसदी कामयाब रहे हैं। यह निष्कर्ष इनसानी परीक्षण के बाद आया है। इन दावों में अतिशयोक्ति हो सकती है। हालांकि अभी भारत सरकार ने इन दोनों कंपनियों के कोरोना टीके के लिए अधिकृत ऑर्डर नहीं दिए हैं। उसका फोकस ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजनेका के टीके पर ज्यादा है, क्योंकि उसका उत्पादन पुणे का सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ  इंडिया कर रहा है। सीरम के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा है कि कंपनी ने 4 करोड़ डोज बना ली हैं और फरवरी, 2021 तक 20-25 करोड़ डोज का स्टॉक तैयार करने का लक्ष्य है। सीरम के संस्थापक डा. साइरस पूनावाला ने एक इंटरव्यू में बताया है कि आगामी 45 दिनों में टीका उपलब्ध हो सकता है। कंपनी आपातकालीन उपयोग की मंजूरी सरकार से मांगने जा रही है। सीरम का टीका भारतीय बाजार में 500-600 रुपए में उपलब्ध होगा। हालांकि कंपनी सरकार को 222 रुपए प्रति डोज की कीमत से टीका देगी। 2021 के अंत तक कंपनी का 300 करोड़ डोज तैयार करने का लक्ष्य है। सीरम दुनिया के सर्वोच्च टीका उत्पादक संस्थानों में एक है। भारत 140 देशों को विभिन्न बीमारियों के टीके मुहैया कराता रहा है। भारत में आईसीएमआर-भारत बायोटेक की साझेदारी कोरोना टीके के तीसरे चरण के मानवीय परीक्षण कर रही है। टीके को लेकर उनकी भी तैयारियां लगभग पूरी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जिन वैक्सीन कंपनियों को टीके पर शोध और परीक्षण की मान्यता दी है, उनकी संख्या करीब 250 है। उनमें 30 भारतीय भी हैं, जिनमें 5 कंपनियां शोध और परीक्षण के दूसरे-तीसरे चरण में हैं।

अमरीकी और ब्रिटिश कंपनियों के अलावा रूसी टीका-स्पूतनिक वी-भी है, जिसके तीसरे चरण के परीक्षण की अनुमति डा. रेड्डी लैब्स को दी गई है। अब भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने कुछ साक्षात्कारों के जरिए देश की जनता को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि कोरोना महामारी का टीका मार्च, 2021 तक हमें उपलब्ध होगा और अगस्त-सितंबर, 2021 तक हम 25-30 करोड़ लोगों में टीकाकरण का अभियान भी पूरा कर सकेंगे। यह आश्वासन के साथ-साथ दावा भी हो सकता है, लेकिन कोरोना टीके के लिए प्रयास बेहद गंभीर हैं। इस संदर्भ में अमरीकी विश्वविद्यालयों के कुछ विशेषज्ञ चिकित्सकों के शोध और निष्कर्ष भी प्रसंगवश महत्त्वपूर्ण हैं। उनका सार है कि सितंबर-अक्तूबर, 2021 से पहले कोरोना का असरदार और विश्वसनीय टीका बाजार में उपलब्ध नहीं होगा। बहरहाल अब उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है कि कोरोना टीके बाजार में आने लगेंगे और टीकाकरण भी किए जाएंगे। ब्रिटेन में 1 दिसंबर और अमरीका में 11 दिसंबर’20 से आपातकालीन आधार पर टीकाकरण आरंभ होने वाला है, लेकिन ऐसे विशेषज्ञ भी कम नहीं हैं, जो अभी से चेता रहे हैं कि टीके को ही ‘राम-बाण’ न समझ लिया जाए।

टीकों के आने के बाद और उनके व्यावहारिक प्रभावों के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना उचित होगा कि कौन-सा टीका कितना कारगर है? बेशक भारत ने चेचक और पोलियो सरीखी महामारियों के खिलाफ  जंग जीती हैं। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की ही टिप्पणी है। जब 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ था, तब चेचक के सर्वाधिक मामले हमारे देश में ही थे। हालांकि चेचक के टीके का आविष्कार 18वीं सदी में ही हो गया था। चेचक करीब 3000 सालों तक मानव-सभ्यता के लिए जानलेवा मुसीबत बना रहा। अकेली 20वीं सदी में ही इससे करीब 30 करोड़ मौतें हुईं। अंततः सभी देश लामबंद हुए, प्रयास किए गए और 1977 में चेचक का आखिरी ज्ञात मामला सोमालिया में मिला। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1979 में चेचक के खात्मे की पुष्टि भी कर दी। भारत में बीसीजी टीका स्कूलों के स्तर पर छात्रों को लगाया जा रहा है। कोरोना वायरस का प्रकोप चेचक, हैजा, प्लेग महामारियों की तुलना में कुछ भी नहीं है। कोरोना का कोई भी टीका एक प्रयोग होगा, लेकिन चिकित्सा जगत् की बड़ी शोधात्मक उपलब्धि होगी। टीकों की प्रभावशीलता ही तय करेगी कि अंततः कोरोना का खात्मा कब तक हो पाता है।


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