धीरे-धीरे लुप्त होने लगी प्राचीन संस्कृति

सतलुज घाटी से लगने वाले क्षेत्रों में प्राचीन लोक कथाएं व दंत कथाएं अब सुनने को नहीं मिलती है। आधुनिक दौर में यह प्राचीन संस्कृति धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। लोक कथाओं व दंत कथाओं में छिकचिडू की कथा, टुंडी राक्षस की कथा, मियां रंझा, बाड़ाघेडू तथा देवकन्या की कथा का खूब प्रचलन था। एक समय था जब इन कथाओं के लिए गांव के लोग सर्दी के मौसम में रात्रि समय में इकट्ठे होते थे तथा आग के पास बैठकर  भरपूर मनोरंजन करते थे। इस समागम में छोटे-बड़े, बच्चे, बुजुर्ग व स्त्री पुरुष सभी बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। इन कथाओं में इतना मनोरंजन था कि दंत कथाओं में गीतों का भी संपुट था। कथा कहने वाले बीच-बीच में अपनी गायन कला का बखूबी से प्रयोग करते थे। प्रायः कथाओं में सभी रसों की भरमार रहती थी। बच्चे तो इसमें बहुत ही दिलचस्पी लेते थे तथा उनके ज्ञान में भी वृद्धि होती थी। ये कथाएं आपसी मेलजोल व प्रेम भाईचारा को बढ़ाने की शिक्षा देती है।

बड़े ताज्जुब की बात है कि इसके लिए लोग समय नहीं निकाल पाते। भौतिकवादी युग में लोग इतने व्यस्त हो गए कि लुप्त होती जा रही हमारी प्राचीन संस्कृति अपने अस्तित्व को नहीं बचा पा रही है। लोगों का रुझान फिल्म, टीवी व पाश्चात्य संस्कृति की ओर निरंतर बढ़ रहा है। एक दौर था जब घर में टीवी जैसे मनोरंजन के साधन नहीं थे। उस समय ये कथाएं प्रमुख साधन हुआ करते थे परंतु आज यह चिंताजनक विषय बना है कि हमारी प्राचीन संस्कृति लुप्त होने के कगार पर है। अतः वर्तमान नई पीढ़ी को भी इसके बारे अपनी चिंता जाहिर करनी होगी। लिहाजा इस खजाने को खंगालना होगा तभी लोक कथाओं एवं दंत कथाओं का वर्चस्व कायम रहेगा।

हिमादित्य ज्योतिष संस्था के प्रमुख उमाशंकर दीक्षित का मानना है कि लुप्त होती जा रही प्राचीन संस्कृति को बचाना अत्यावश्यक है। संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए कारगर व उत्साहवर्धक कार्य करना होगा तभी हमारी संस्कृति सुरक्षित रह पाएगी। क्षेत्र के गांव रिवाड़ी के बुजुर्ग पंडित मस्तराम शर्मा, गुरुध्यान शर्मा, केआर शर्मा, गंगाराम शर्मा, झाबेराम शर्मा, रोशनलाल शर्मा तथा धर्मेंद्र शर्मा समेत अनेक लोगों का मानना है कि हमारी इस पुरातन संस्कृति को लुप्त न होने दें तथा नई पीढ़ी इसके संरक्षण के  लिए आगे आएं। तभी यह संस्कृति कायम रहेगी।