काम पर लौटता घराट

By: Dec 1st, 2020 12:03 am

आधुनिक तकनीक की रफ्तार के बीच कुछ पन्ने अगर अतीत के भी संवर जाएं, तो इसके पीछे श्रम और साधना को समझना होगा। धर्मशाला के छह घराटों के पाट फिर से घूमने लगे हैं और इस तरह प्राकृतिक पृष्ठभूमि की शिनाख्त, औचित्य और संदर्भों को संरक्षण मिला। एक मॉडल के रूप में धर्मशाला खंड विकास अधिकारी ने प्राचीन परंपराओं से रू-ब-रू होते श्रम को नई दिशा दी और मनरेगा की दिहाड़ी के दम पर फिर से घराट चला दिए। अनाज पिसाई की पारंपरिक विधा का वैज्ञानिक महत्त्व, नए अनुसंधान के बावजूद प्रासंगिक व बहुआयामी सिद्ध हुआ है, तो यह परिवेश की मूल्यवान संस्कृति का एक तरह से संरक्षण ही साबित होगा।

कुल मिलाकर विभागीय कारगुजारियों की रूटीन से बाहर निकल कर कोई अधिकारी अगर परिवेश की जरूरतों को अंगीकार करते हुए अतीत के बंद दरवाजों को खोलता है, तो ऐसे आदर्शों को सामाजिक मान्यता भी मिलती है। यह मनरेगा के उच्च परिणामों की श्रृंखला में बढ़ोतरी करने के साथ-साथ, जीवन मूल्यों का प्रशासनिक आधार भी सुदृढ़ करता है। घराटों का अस्तित्व वास्तव में पर्वतीय जल संरक्षण का प्राकृतिक प्रारूप विकसित करता रहा है, लेकिन पिछले कुछ दशकों से इनसानी रिश्तों ने विकास की नई डोर पकड़ कर ऐसे विकल्पों को अप्रासंगिक बना दिया। ऐसे में अगर एक खंड विकास अधिकारी नजीर बनकर छह घराटों को जीवन प्राण दे रहा है, तो इसके साथ पर्यावरण के संदेश और विकास की देशी रुह आबाद हो रही है। जाहिर तौर पर घराट का काम पर लौटना पानी के बेहतर इस्तेमाल के अलावा सूखी कूहलों व खड्डों का हालचाल पूछने सरीखा है। कूहल तब तक चलेगी, जब तक इसका सामुदायिक प्रयोजन होगा या सिंचाई व्यवस्था की साझेदारी में समाज आगे बढ़कर संरक्षण करेगा। जिंदगी के शार्टकट में सामने आ रही सामाजिक विरक्तता इस कद्र हावी है कि हमने सामूहिक जिम्मेदारियों के खाते ही बंद कर दिए। इस तरह जब एक घराट पुनः चलेगा, तो इसका सामाजिक गणित, ग्रामीण आर्थिकी का चक्र और पर्यावरण के प्रति बफादारी बढ़ेगी। हिमाचल में जीरो बजट या जैविक खेती के नित नए आयाम तभी सिद्ध होंगे, यदि इसकी प्रोसेसिंग तथा अंतिम उत्पाद तक परिवेश की महक होगी। स्वयं सहायता समूहों के नेटवर्क से कई हिमाचली उत्पाद सीधे खेतीबाड़ी को आमंत्रित तथा प्रोत्साहित करने के साथ-साथ महिला सशक्तिकरण का परिचय दे रहे हैं। इस सारी प्रक्रिया का अहम किरदार खेत ही रहेगा, लेकिन इसे उपभोक्ता से जोड़ने के नित नए सेतु खड़े करने होंगे। घराटों के लौटते दिन भले ही पीछे मुड़कर देखने जैसे समीकरणों को पैदा करें, लेकिन इससे स्थानीय बाजार की दक्षता बढ़ेगी। घराटों के पुनर्जन्म में मंडी आईआईटी की रुचि भी पर्वतीय तकनीक में सहायक हो सकती है और इस अनुभव पर केंद्रित अध्ययन, शोध व नवाचार कल नए मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

तकनीकी तौर पर हिमाचली परिप्रेक्ष्य में कई अहम बदलाव तभी हो पाएंगे, यदि वर्षों से चल रही पद्धति को समझा जाए। घराट का लौटना कुछ हद तक सुखद हो सकता है, लेकिन कल इसी के साथ विद्युत उत्पादन व ग्रामीण पर्यटन के विविध आयाम जुड़ते हैं तो ऐसी कवायद से राज्य की विशिष्टता बढ़ जाती है। इसी तरह ग्रामीण या पहाड़ी वास्तुकला के अद्भुत नमूने का संरक्षण आगामी शोध का जनक हो सकता है। पूरे हिमाचल में उपलब्ध जल धाराओं का संरक्षण संभव करने की दृष्टि से सामाजिक व वैज्ञानिक पहल के साथ-साथ यह आत्मबल भी पैदा करना होगा ताकि युवा वैज्ञानिक नित नए नवाचार का शृंगार करें। कृषि-बागबानी विश्वविद्यालयों, आईआईटी, एनआईटी के अलावा हिमाचल का विभागीय संकल्प जब जमीन पर उतरेगा, तो निश्चित रूप से पर्वतीय परिवेश के साथ प्रगति का सामंजस्य पैदा होगा।


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