कृषि कानून वापस ले सरकार, किसान आंदोलन के समर्थन में एकजुट हुए हिमाचल के संगठन, किया धरना-प्रदर्शन

By: कार्यालय संवाददाता — शिमला Dec 4th, 2020 12:07 am

किसान आंदोलन के समर्थन में एकजुट हुए हिमाचल के संगठन, प्रदेश में जगह-जगह किया धरना-प्रदर्शन

सीटू, हिमाचल किसान सभा, जनवादी महिला समिति, डीवाईएफआई, एसएफआई, दलित शोषण मुक्ति मंच ने अपनी मांगों व तीन किसान विरोधी कानूनों को लेकर संघर्षरत किसानों के आंदोलन का समर्थन किया है। इन संगठनों ने केंद्र व हरियाणा सरकार द्वारा किए जा रहे किसानों के बर्बर दमन की  निंदा की है। किसानों के आंदोलन के समर्थन में प्रदेश भर के मजदूरों, किसानों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों व सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े तबकों  द्वारा राज्यभर में प्रदर्शन कर किसानों के साथ एकजुटता प्रकट की गई। इस दौरान जिला व ब्लॉक मुख्यालयों में प्रदर्शन किए गए।

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने कहा गकि केंद्र व हरियाणा सरकार  किसानों को कुचलने पर आमादा हैं, जो बेहद निंदनीय है। उन्होंने आरोप लगाया कि ये तानाशाह रूप से कार्य कर रहे हैं। किसान आंदोलन को दबाने से स्पष्टतः जाहिर हो चुका है कि ये दोनों भाजपा सरकारें पूंजीपतियों के साथ हैं व उनकी मुनाफाखोरी सुनिश्चित करने के लिए किसानों की आवाज दबाना चाहती हैं, जिसे देश का मजदूर-किसान कतई मंजूर नहीं करेगा। केंद्र सरकार किसान विरोधी नीतियां लाकर किसानों को कुचलना चाहती है। उन्होंने देश के किसानों को ऐतिहासिक आंदोलन के लिए बधाई दी है, जिसमें करोड़ों किसान शामिल हो चुके हैं। लाखों किसान ट्रैक्टरों के साथ आंदोलन के मैदान में हैं। सरकार की लाठी, गोली, आंसू गैस, सड़कों पर खड्डें खोदना, बैरिकेड व पानी की बौछारें भी किसानों के होंसलों को पस्त नहीं कर पा रही हैं। उन्होंने किसानों के साथ मजदूरों की एकजुटता का आह्वान किया है।

उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीनों नए कृषि कानून पूर्णतः किसान विरोधी हैं। इसके कारण किसानों की फसलों को कान्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए विदेशी और देशी कंपनियों और बड़ी पूंजीपतियों के हवाले करने की साजिश रची जा रही है। इन कानूनों से फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की अवधारणा समाप्त कर दी जाएगी। आवश्यक वस्तु अधिनियम के कानून को खत्म करने से जमाखोरी, कालाबाजारी व मुनाफाखोरी को बढ़ावा मिलेगा। इससे बाजार में खाद्य पदार्थों की बनावटी कमी पैदा होगी व खाद्य पदार्थ महंगे हो जाएंगे।

इसमें सिर्फ कॉरपोरेट्स का फायदा

कृषि कानूनों के बदलाव से बड़े पूंजीपतियों और देशी-विदेशी कंपनियों का कृषि पर कब्जा हो जाएगा और किसानों की हालत दयनीय हो जाएगी। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार के नए कानूनों से एपीएमसी जैसी कृषि संस्थाएं बर्बाद हो जाएंगी, न्यूनतम समर्थन मूल्य की अवधारणा खत्म हो जाएगी, जिससे न केवल किसानों को नुकसान होगा, अपितु आम जनता को भी इसकी मार झेलनी पड़ेगी। ये सब कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से किया जा रहा है।

मदद करने के बजाय हो रही तबाही

आज कृषि भारी संकट में है। उसे मदद देने के बजाय केंद्र सरकार किसानों को तबाह करने पर तुली हुई है। न तो कृषि बजट में बढ़ोतरी हो रही है, न ही किसानों की सबसिडी में। न ही उपकरण किसानों को सरकार की ओर से मुहैया करवाए जा रहे हैं, न ही किसानों के कर्जे माफ किए जा रहे हैं और न ही उन्हें लाभकारी मूल्य दिया जा रहा है। स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें पिछले दो दशकों से केंद्र सरकार के मेज पर धूल फांक रही हैं व उन्हें लागू नहीं किया जा रहा है।


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