किसान आंदोलन का विस्तार

By: Dec 3rd, 2020 12:06 am

‘असी हक दी लड़ाई, हक दे नाल लड़ांगे।’ यह एक पंजाबी गीत की पंक्ति है और किसान आंदोलन का नया आह्वान भी है। मंच से एक सिख युवक इस गीत को गाता है और भीड़ में हजारों आवाज़ें गूंज उठती हैं। नौजवान, बुजुर्ग और कुछ महिलाएं भी गीत की धुन पर थिरकने लगती हैं। यह आंदोलन का जोश है, जो इतनी पराकाष्ठा तक पहुंच गया है कि किसान 2-3 साल तक भी राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर डटे रहने को तैयार है। अब सरहदों के पार बहुत दूर अमरीका और यूरोप से भी समर्थन गूंजने लगा है। ब्रिटेन में लेबर पार्टी के 20 सांसदों ने भारत के किसान आंदोलन का समर्थन किया है, लेकिन सड़कों पर बैठे किसानों के साथ दुर्व्यवहार की निंदा की है। शायद संदर्भ आंसू गैस, पानी की बौछारों, गहरे गड्ढे खोदने और बड़े-बड़े पत्थरों के अवरोधक खड़े करने का है। अमरीका और कनाडा ने भी किसानों के प्रति हमलावर रुख की भर्त्सना की है। कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने तो किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन के साथ खड़े होने की बात कही है। हालांकि हमारे विदेश मंत्रालय ने कनाडा के प्रधानमंत्री के बयान को खारिज करते हुए चेतावनी दी है कि भारत अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगा। यह दीगर है कि भारत की तरह अमरीका और कनाडा में भी किसान खुश नहीं हैं। फसलों की कीमतों पर उनका नियंत्रण नहीं है। वहां का किसान भी खुले बाज़ार का शिकार होता रहा है। भारतीय मूल के किसानों को सरकार अपेक्षित सबसिडी भी नहीं देती, लेकिन वे अपने देशों में आंदोलनरत नहीं हैं। हालांकि ये देश भारत के मित्र-देश हैं, लेकिन किसानों के मुद्दों पर सरकार के बजाय किसानों का समर्थन कर रहे हैं। किसान आंदोलन का यह अप्रत्याशित और अंतरराष्ट्रीय विस्तार है। यदि भारत के भीतर की ही बात करें, तो कर्नाटक के किसानों ने तय किया है कि 7 दिसंबर को वे विधानसभा का घेराव करेंगे और उसके बाद ‘रेल रोको’ आंदोलन का आगाज़ होगा। कर्नाटक के कुछ किसान संगठन ‘दिल्ली कूच’ भी कर सकते हैं। खेतिहर दृष्टि से सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र में भी किसान बैठकों के दौर जारी हैं।

वहां भी आंदोलन की सुगबुगाहट महसूस की जा सकती है। उप्र के ग्रेटर नोएडा के जेवर इलाके के किसानों ने दिल्ली-नोएडा बॉर्डर को बुरी तरह अवरुद्ध कर दिया है और शंखनाद करते हुए सड़क पर बैठ गए हैं। नतीजतन एक बड़ा, मुख्य मार्ग पूरी तरह बंद कर दिया गया है। हरियाणा में मेवात से किसानों के जत्थे दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं, लिहाजा गुरुग्राम और रोहतक के छोटे-बड़े बॉर्डर भी बंद करने पड़े हैं। गन्ना उत्पादन के प्रमुख इलाके पश्चिमी उप्र से किसान आकर गाजीपुर बॉर्डर पर डटे हुए हैं। यानी चारों तरफ  किसान आंदोलन के विस्तार ही दिख रहे हैं। हालांकि भारत सरकार के कृषि मंत्री, रेल मंत्री और वाणिज्य राज्यमंत्री के साथ 35 किसान नेताओं का संवाद मंगलवार को सम्पन्न हुआ है। आज गुरुवार को एक बार फिर बिंदुवार बातचीत होगी। आश्चर्य है कि किसानों के लिए अंबानी, अडाणी सरीखे उद्योगपति ‘खलनायक’ बने हैं। अब तो किसान सरेआम प्रधानमंत्री को भी कोसने लगे हैं कि उन्होंने वोट देने में भारी गलती की। बेशक अभी तक के संवाद बेनतीजा रहे हैं, लेकिन उन्हें सकारात्मक भी माना जा रहा है। किसान नए कृषि कानूनों को अपने लिए ‘डेथ वारंट’ करार दे रहे हैं, लिहाजा वे कानून को वापस लेने की मांग पर अड़े हैं।

चुनौतियां दोनों तरफ  हैं। किसान के लिए यह फसल का समय है। फसलों में पानी लगाना है, उनकी देखभाल करनी है। खेतों में आवारा पशु घूम रहे हैं, लिहाजा किसान उन्हें रोक नहीं पा रहे हैं। यह अतिरिक्त नुकसान हो सकता है। बहरहाल किसानों के लिए यह आंदोलन ही आर-पार की लड़ाई है। सरकार इन कानूनों को किसान के लिए बेहद उपयोगी और आमदनी बढ़ाने वाले मान रही है, जबकि किसानों के लिए किसी सहमति पर पहुंचने से पहले का उपाय यह होगा कि सरकार इन कानूनों को वापस ले। दोनों पक्ष अड़े हैं। एमएसपी के अलावा भी कई और मुद्दे हैं, जिनमें बिजली एक प्रमुख मुद्दा है। किसान मुफ्त बिजली मांग रहे हैं और पराली से जुड़े मामलों को रद्द करने और गिरफ्तार किसानों की रिहाई भी चाहते हैं। गतिरोध बहुत बड़ा है, लेकिन संवाद में ही समाधान है और यही देश की उम्मीद है। सरकार को संवेदनशीलता के साथ किसानों की मांगों पर विचार करना चाहिए। किसानों की मांगों को मानने में हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App