नियमों की पार्किंग

By: Dec 3rd, 2020 12:06 am

भले ही हिमाचल में नगर नियोजन के नियमों की शब्दावली में पार्किंग को ‘स्काई पार्किंग’ का स्थान मिल जाए या घर के साथ सेटबैक में इसकी छूट मिल जाए, लेकिन इससे सड़कों पर डटी वाहनों की भीड़ कम नहीं होगी। सेटबैक के आधार पर न्यू शिमला से गुजरती सड़क पर ऐसे आदर्शों की धज्जियां उड़ते देख सकते हैं या सोलन जैसे शहर को अपार्टमेंट नगरी के खिताब से जड़वत होते देख सकते हैं। खैर ओपन टू स्काई पार्किंग के नए मायनों में विभाग ने कम से कम ऐसे प्रश्न का सरल सा हल तो ढूंढा, जबकि यह विषय राज्य स्तरीय योजनाओं-परियोजनाओं का हिस्सा हो सकता है। कुछ काम अलग-अलग पैमानों और योजनाओं के आधार पर हुआ है, लेकिन यहां बढ़ते वाहनों के दबाव को समझने और यातायात व्यवस्था को नए सिरे से लिखने की जरूरत है। पार्किंग केवल सुविधा का मसला नहीं, बल्कि भविष्य की जरूरत, जीवनशैली की अनिवार्यता और कानूनी रूपरेखा का स्पष्ट दखल व निर्देश है।

कोरोना काल का ही संज्ञान लें तो हिमाचल में निजी वाहनों विशेषतौर पर दोपहिया वाहनों की खरीद अपेक्षाकृत अधिक बढ़ी है। हम शहरी क्षेत्र की नियमावलियां बदल कर चंद लोगों को सुविधा दे सकते हैं, लेकिन इसे व्यापक स्वरूप देने के लिए सर्वप्रथम अधिकृत एजेंसी की जिम्मेदारी बढ़ाते हुए ढांचागत मजबूती, पार्किंग व ट्रैफिक नियमों में संशोधन के अलावा गृह निर्माण की आवश्यक शर्तें तय करनी होंगी। अगर वाहन पंजीकरण के दौरान ही एक मुश्त पार्किंग शुल्क लिया जाए, तो इस धन से राज्य में पार्किंग अधोसंरचना तथा ट्रांसपोर्ट नगर जैसे संकल्प पूरे किए जा सकते हैं। वाहन खरीद के लिए घर में पार्किंग व्यवस्था की अनिवार्यता तथा शहरी इलाकों में गृह निर्माण की अनुमति के साथ निजी या सार्वजनिक पार्किंग का खाका भी जोड़ा जा सकता है। प्रमुख शहरों में बिखरी सरकारी इमारतों को एक साथ संयुक्त भवनों में बसाने की दीर्घकालीन योजना के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि बस स्थानकों को महापार्किंग के रूप में भी विकसित किया जाए। शहरों में महाआयोजनों, सांस्कृतिक-व्यापारिक समारोहों और नियमित पार्किंग की आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए हर नगर की चारों दिशाओं में सामुदायिक मैदान चिन्हित किए जाएं। निजी वाहनों की आवश्यकता के सामने सार्वजनिक परिवहन के विकल्प खड़े किए जाएं और इंटरसिटी बस सेवाओं को और सुविधाजनक तथा सक्षम बनाना होगा। पार्किंग के मसले का व्यापक हल नागरिक सभ्यता के नए पैमानों से जुड़ता है यानी हर शहर के मुख्य बाजारों को माल रोड की तरह वाहन वर्जित करना होगा, जबकि बाइपास, ओवरहैड ब्रिज, सब-वे तथा पैदल यात्रियों के लिए फुटपाथ व झूला पुलों का निर्माण करके नए विकल्प सौंपने होंगे।

बहरहाल सरकार ने शहरी नियोजन की दृष्टि से बाशिंदों को राहत देते हुए फौरी तौर पर ‘स्काई पार्किंग’ का कांसेप्ट दिया है, जिसकी अपनी एक अहमियत रहेगी, लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह कि शहरी विकास की अवधारणा को यह प्रदेश कितना हल कर पाया है। करीब दस साल पहले आवासीय सुविधाएं जुटाने की दृष्टि से हुआ मांग सर्वेक्षण आज भी अनाथ है। न तो करीब सत्तर हजार लोगों की आवासीय मांग के अनुरूप कोई योजना फलीभूत हुई और न ही भविष्य में ऐसी कोई पहल दिखाई दे रही है, जिसके तहत आधुनिक जीवनशैली की जरूरतों को पूरा करती बस्तियां या उपग्रह नगर विकसित हो पाएंगे। कुल मिला कर नगर नियोजन की अवधारणा इसी प्रश्न में घूम रही है कि विकास की शर्तों पर आम नागरिक असहज न हों। भले ही प्रदेश ने एक से बढ़ाकर पांच नगर निगम बना दिए या अपार्टमेंट अधिनियम के तहत भवन निर्माण के रास्ते खोल दिए, लेकिन हकीकत में यह सारा विकास आंखों में धूल झोंकने जैसा ही है। प्रदेश का कोई भी शहर इस लायक नहीं कि बाशिंदे मूलभूत सुविधाएं पाने में सफल हो रहे हों, सिर्फ भीड़ बढ़ रही है और भेड़ चाल में वाहनों के रेवड़।


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