सर्दी में सूखे घास से हो सकती है एलर्जी

By: जीवन ऋषि - 98163-24264 Dec 13th, 2020 12:10 am

बागबानों को डाक्टर जीके वर्मा का अचूक मंत्र

सर्दियों में खेतों और बागों में काम करने वालों को कुछ ऐसी सावधानियां बरतनी चाहिएं। सर्दियों में कुछ एलर्जी की तकलीफ और कुछ ठंड से होने वाली त्वचा की तकलीफ या कुछ सांस की तकलीफ भी बढ़ सकती है….

जैसा कि हम सब जानते हैं कि सर्दियों का मौसम दस्तक दे रहा है और दिन-प्रतिदिन टेंपरेचर कम होता जा रहा है। कभी भी मौसम बदलता है तो उसके हमारे शरीर और  हमारी त्वचा पर फायदे और नुकसान दोनों होते हैं।  सर्दियों में खेतों और बागों में काम करने वालों को कुछ ऐसी सावधानियां बरतनी चाहिएं।

सर्दियों में कुछ एलर्जी की तकलीफ और कुछ ठंड से होने वाली त्वचा की तकलीफ या कुछ सांस की तकलीफ भी बढ़ सकती है।  सर्दियों में कुछ जगह यह देखा गया है कि एक नोटोरियस ग्रास जिसे पार्थेनियम या कांग्रेस घास कहते हैं या कई लोगों को गाजर घास से  एलर्जी होती है। सर्दियों में इस घास का पौधा सूख जाता है तो उस सूखे हुए पौधे से भी एलर्जी हो सकती है।

इससे सांस की एलर्जी त्वचा की एलर्जी लोगों को बहुत तंग करती है, जिन लोगों को एलर्जी होती है वे इस घास से बचें। वे अपने कपड़े खेतों से आकर के रोज चेंज करें और स्नान करें। शरीर पर नारियल का तेल अच्छी तरह से लगाएं। इस घास को जलाना भी नहीं चाहिए क्योंकि इससे भी   एलर्जी भी होती है । इस को नष्ट करने का सबसे अच्छा तरीका इसको जमीन में दबा देना है । कुछ लोगों में जो खेत बगीचों में काम करते हैं, उन्हें फूलों से एलर्जी हो सकती है। इन फूलों में गेंदा, प्रिमूला व क्रिसेंथमम फूल शामिल हैं।

रिपोर्टः सिटी रिपोर्टर, शिमला

जो किसान  मौसमी सब्जियां उगाते हैं वे खेतों में पेस्टिसाइड और इंसेक्टिसाइड की स्प्रे करते हैं, इनसे भी एलर्जी हो सकती है। इसके लिए किसानों से  आग्रह है कि इन इंसेक्टिसाइड और पेस्टिसाइड से एलर्जी से अपना बचाव करें। स्प्रे के समय वे गॉगल्स, दस्तानें और पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनें। जिन्हें पहले से एलर्जी होती है, वे खेतों और बगीचों में स्प्रे करते समय न जाएं। अगले सप्ताह हम चर्चा करेंगे ठंड से होने वाले कुछ अन्य रोगों की।

डा. जीके वर्मा,एसोसिएट प्रोफेसर,

स्किन, आईजीएमसी

 सर्दियों में होने वाली बीमारियां और बचाव

अब हम बात करते हैं सर्दियों में ठंड की वजह से होने वाली बीमारियों की बात सबसे पहले ठंड की वजह से हाथ पैर और चेहरे पर नीला पन, खुजली का होना, जलन होना या फिर लाल दाने या फिर अल्सर का होना यह एक ठंड से होने वाली त्वचा की बीमारी है। इसे हम प्रनियो सीस (perniosis)  या  चिलब्लेंस chillblain कहते हैं के कारण होता है। इसके बचाव के लिए हमें अच्छी तरह से गर्म कपड़े पहनने चाहिए द्दद्यश1द्गह्य और गर्म जुराब पहननी चाहिए। पूरे शरीर को गर्म रखना चाहिए और ठंड से बचना चाहिए।

इसी प्रकार जो किसान बागबान किसी कनेक्टिव टिशु डिजीज (conective tissue disease) के पेशेंट है जैसे कि प्रोग्रेसिव सिस्टमिक स्क्लेरोसिस (PSS) उनको भी सर्दियों में अपना ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि सर्दियों में उनके हाथ-पांव नीली हो जाते हैं सूजन आ जाती है उसमें और अल्सर तक हो जाते हैं, साथ ही साथ उन्हें सांस लेने में भी कठिनाई हो सकती है तो उनको सर्दियों में ठंड से बचना कोई भी काम ठंडे पानी से नहीं करना उसे पानी का उपयोग करना और बाहर ठंड ठंडी हवा या बर्फ में न घूमे।

बागबानों को बर्फ का बेसब्री से इंतजार

हिमाचल के बागबान सेब बागीचों में कांट-छांट प्रूनिंग, तौलिए बनाने और नई प्लाटेंशन के लिए गड्ढे बनाने में जुट गए हैं।  अगले तीन महीने बागबानों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। इन तीन महीनों की मेहनत बागबानों के लिए बहुत मायने रखती ह,ै क्योंकि इसी मेहनत पर उनकी फसल निर्भर करती है।  इस दौरान बागीचों में खाद डालने, कलमें करने, नई पौध लगाने, सेब के पौधों की जड़ें खोदकर कीड़े सूली निकालने जैसे काम किए जाते हैं।

बागबान अब बर्फबारी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि बर्फबारी से बागीचों में मौजूद तमाम तरह के कीड़े-मकौड़े मर जाते हैं। इससे जरूरी चिलिंग भी पूरी होती है। सेब की पुरानी किस्मों के लिए 1000 से 1500 घंटे और नई किस्मों के लिए 400 से 700 घंटे चिलिंग की जरूरत रहती है। चिलिंग उस अवधि को गिना जाता है जब तापमान सात डिग्री या इससे कम हो। इसी तरह इन दिनों सेब के पौधों में बागबान चूना भी लगाते हैं। इससे फंगस की समस्या खत्म होती है।

रिपोर्टः विशेष संवाददाता, शिमला

मुट्ठी में गेहूं-चावल लाए शाहपुर के किसान, नए कानूनों का विरोध

शाहपुर। मोदी सरकार ने तीन नए कानून बनाए हैं। इसका देशभर में विरोध हो रहा है। इसी कडी में हिमाचल के किसान बहुल हलके शाहपुर में किसानों ने अनूठा विरोध किया। शाहपुर में कांग्रेस महासचिव केवल पठानिया की अगवाई में विरोध हुआ। आलम यह था कि किसान मुटठी में चावल और गेहूं लाए थे। उन्होंने इसे जमीन पर रखकर तीनों नए कानूनों को किसान विरोधी बताया। खुद पेशे से किसान केवल पठानिया ने कहा कि मोदी सरकार ने ये तीनों कानून पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाए हैं। किसान देश भर में विरोध कर रहे हैं,लेकिन किसान विरोधी वरिष्ठ भाजपा नेताओं को यह विरोध नजर नहीं आ रहा है। वे इसे दो राज्यों का कानून बताकर किसानों की खिल्ली उड़ा रहे हैं, ऐसे लोगों को शर्म आनी चाहिए। पठानिया ने कहा कि अगर भाजपा नेताओं में दम है,तो वे एक बार किसानों की आंखों में आंख डालकर बात करें। अन्नदाता की आवाज को दबाया नहीं जा सकता

बागबान कुछ ऐसा करें

भुंतर बागबानी के अगले सीजन की तैयारियों में प्रदेश के बागबान जुट गए हैं। बगीचों में तौलिए बनाने और खाद डालने की प्रक्रिया के साथ बागबान कांट-छांट की मुहिम का श्रीगणेश कर चुके हैं। लिहाजा, प्रूनिंग से पहले जिला के वैज्ञानिकों ने बागबानों को कांट-छांट में विशेष अहतियात बरतने को कहा है। बागबानी वैज्ञानिकों ने बागबानों को सलाह दी है कि सेब की स्पर किस्म के सेब के पौधों की काट-छांट रॉयल और अन्य पुरानी किस्मों से भिन्न होती है और बागबानों को इसकी प्रूनिंग के दौरान विशेष सावधानियां अपनानी चाहिए।

बजौरा में मिलने वाले फलदार पौधे

भुंतर-बागबानों को उन्नत और आधुनिक प्रजातियों के पौधे कुल्लू जिला का बागबानी अनुसंधान केंद्र बजौरा बांटेगा। अनुसंधान केंद्र में पौधों को बांटने के लिए प्रक्रिया 15 दिसंबर से आरंभ होगी और आने वाले करीब एक माह से अधिक समय तक चलेगी। बागबानों को सेब के अलावा अनार सहित प्लम,खुमानी व अन्य किस्मों के पौधे बांटे जाएंगे और इसके लिए बागबानों ने भी तैयारियां कर ली है।  जानकारी के अनुसार करीब 70 से 80 हजार पौधे यहां पर इस बार वितरित किए जाएंगे।

डेढ़ लाख का खीरा बेचने वाले जीत राम के क्या कहने

घुमारवीं के किसान ने एक तरकीब से चार गुना तक बढ़ा ली कमाई

बिलासपुर जिला में घुमारवीं इलाके के किसान खेती में नए नए प्रयोग के लिए जाने जाते हैं। कुछ ऐसा ही कुछ नया कर दिखाया है घुमारवीं तहसील के तहत आने वाली पनोह पंचायत के किसानों ने। पनोह के सनौर गांव के 26 परिवार फसल विविधिकरण प्रोत्साहन परियोजना को शानदार तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं। इन्हीं किसानों में से एक हैं जीतराम ठाकुर। जीतराम ने बताया कि कुछ साल पहले तक उनके इलाके में सिंचाई की दिक्कत थी। ऐसे में वे चाहते हुए भी खेती का दायरा बढ़ा नहीं पा रहे थे। इसी बीच वे अपने अन्य किसान साथियों के साथ मिलकर फसल विविधिकरण योजना से जुड़े। इस योजना को जायका प्रोजेक्ट फंडिंग करता है। अब उनके गांव में इस उपयोजना के आने से सिंचाई के लिए पानी   मिल रहा है। आलम यह है कि जीतराम ने पिछले सीजन में ही डेढ़ लाख रुपए से ज्यादा के तो खीरे ही बेच लिए हैं। इससे हर कोई उनकी तारीफ कर रहा है। वह 12 बीघा जमीन पर सब्जी उगा रहे हैं।  इसमें गोभी, बैंगन, फ्रांसबीन, खीरा, आलू व करेला आदि खूब हो रहा है।

जीतराम के मुताबिक उनकी आय पहले के मुकाबले चार गुना बढ़ गई है।  यह योजना के तहत किसानों को पावर बीडर, सोलर स्प्रेयर व टपक सिंचाई सुविधा भी मिल रही है। किसानों को ट्रेनिंग के अलावा उन्हें बेहती क् वालिटी के बीज आदि भी दिए जा रहे हैं। यही कारण हैं कि किसानों की आय लगातार बढ़ रही है।

रिपोर्टः सिटी रिपोर्टर, बिलासपुर

कौडि़यों में बिक रहा गिरिपार का अदरक, मंडी में दस रुपए सिमटे दाम

गिरिपार के जादुई अदरक को इस बार कद्रदान नहीं मिल रहे हैं। पहले कोरोना और अब किसान आंदोलन से यह फसल प्रभावित हो रही है। एक रिपोर्ट सिरमौर जिला में 1600 हेक्टेयर पर अदकर की खेती की जाती है। हर साल टनों के हिसाब से इस अदरक को देश-विदेश के  कद्रदान हाथोंहाथ खरीदते हैं, लेकिन इस बार हालात ठीक इसके उलट हैं।

 एक माह पहले सब्जी मंडी में 60 रुपए तक बिकने वाला अदरक अब महज दस रुपए किलो बिक रहा है। परचून में इसे 50 रुपए किलो तक दाम मिल रहे हैं। इससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। जानकारों की मानें, तो अभी महज 25 फीसदी फसल ही निकाली गई है, ऐसे में सिरमौर के किसानों को भारी  नुकसान उठाना पड़ सकता है। अपनी माटी टीम ने अदरक के कम दामों के कारण खंगालने का प्रयास किया तो पता चला कि कोरोना और ज्यादा प्रोडक्शन इसके मुख्य कारण हैं। इसके अलावा ज्यादातर आढ़ती किसान आंदोलन में हैं। इस कारण अदरक की बेकद्री हो रही है।  गौर रहे कि सिरमौर जिला के गिरिपार का अदरक दुनिया भर में अपने स्वाद और औषधीय गुणों से भरपूर है। ऐसे में इस फसल की बेकद्री अन्य फसलों के लिए भी खतरे की घंटी है।

 निजी संवाददाता, नौहराधार 

सोशल मीडिया से किसान आंदोलन

अपनी माटी के पाठकों के लिए हम एक बार फिर लाए हैं सोशल मीडिया पर किसानों को लेकर डाली गई कुछ पोस्ट

किसान एक ऐसा खिलौना है जिससे कभी प्रकृति खेलती है और कभी राजनीति

भारतीय कृषि नाम के एक ग्रुप ने  तंज कसते हुए किसान आंदोलन को सपोर्ट किया है। उन्होंने लिखा  कि एक दिन जी कर तो देखो खटमलों, जिंदगी किसान की।  कैसे वो मिट्टी से सजा देता है थालियों  हिंदुस्तान की सचिन यादव ने बहुत ही अच्छी पोस्ट डाली है जो दर्शाती है कि किस तरह हमारा किसान मौसम और नेताओं की मार झेल रहा है

विशेष कवरेज के लिए संपर्क करें

आपके सुझाव बहुमूल्य हैं। आप अपने सुझाव या विशेष कवरेज के लिए हमसे संपर्क कर सकते हैं। आप हमें व्हाट्सऐप, फोन या ई-मेल कर सकते हैं। आपके सुझावों से अपनी माटी पूरे प्रदेश के किसान-बागबानों की हर बात को सरकार तक पहुंचा रहा है।  इससे सरकार को आपकी सफलताओं और समस्याओं को जानने का मौका मिलेगा।  हम आपकी बात स्पेशल कवरेज के जरिए सरकार तक  ले जाएंगे।

edit.dshala@divyahimachal.com

(01892) 264713, 307700 94183-30142, 94183-63995

पृष्ठ संयोजन जीवन ऋषि – 98163-24264


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App