मंडी के देहरी मंदिर में खुदाई के दौरान निकली 12वीं शताब्दी की प्रतिमा, पहले भी मिल चुकी हैं देवी-देवताओं की मूर्तियां

By: Jan 14th, 2021 12:06 am

पांगणा में सूर्यदेव की मूर्ति मिलने से लोगों में चर्चाओं का बाजार गर्म, पहले भी मिल चुकी हैं देवी-देवताओं की मूर्तियां

दिव्य हिमाचल ब्यूरो – मंडी

मंडी जिला की ऐतिहासिक स्थली पांगणा के साथ महिषासुर मर्दिनी माता देहरी मंदिर की खुदाई के दौरान सूर्य देव की अद्वितीय प्रस्तर प्रतिमा मिली है। कला पक्ष की दृष्टि से इस मूर्ति को 12वीं शताब्दी का माना जा रहा है। इससे पहले भी यहां भगवान विष्णू, शिव, देवी और अन्य अति प्राचीन मूर्तियां निकल चुकी हैं, लेकिन सूर्य भगवान की मूर्ति 12वीं शताब्दी की बताई जा रही है। सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच के अध्यक्ष डा. हिमेंद्र बाली हिम ने बताया कि सतलुज घाटी के इस क्षेत्र में सूर्य की ऐसी वैभवपूर्ण मूर्ति का मिलना पांगणा के गौरवशाली इतिहास को सुस्पष्ट करता है। डा. हिमेंद्र बाली हिम का कहना है कि आठवीं शताब्दी  के मध्य में कश्मीर पर कर्कोटक वंश के शासक ललितादित्य मुक्तापीठ का राज्य था, जिसने श्रीनगर में प्रसिद्ध सूर्य मंदिर मार्तंड का निर्माण किया था। ललितादित्य ने रावी और सतलुज के बीच जालंधर त्रिगर्त क्षेत्र अंतर्गत इस क्षेत्र में अधिपत्य स्थापित किया था। ऐसी संभावना है कि सूर्य पूजा के प्रभाव के चलते पांगणा में शक्ति मंदिर में सूर्य की मूर्ति को प्रतिष्ठित किया गया है। इस मूर्ति की स्थापना का काल आठवीं-नौवीं शताब्दी बैठता है। कला की दृष्टि से यह मूर्ति काओ ममेल के मंदिरों में स्थापित प्रतिहार शैली की मूर्तियों से कम नहीं है। उन्होंने कहा कि 12वीं से 23वीं शताब्दी में मुसलमानों के आक्रमण के कारण सूर्य पूजा में हृस हो गया।

 पुरातत्व चेतना संघ मंडी द्वारा स्वर्गीय चंद्रमणि कश्यप राज्य पुरातत्व चेतना पुरस्कार से सम्मानित डा. जगदीश शर्मा का कहना है कि सूर्य देव की इस मूर्ति की शोभा देखते ही बनती है। खुदाई मे मूर्ति के प्रकट होने के बाद डा. जगदीश शर्मा ने भाषा एवं  संस्कृति  निदेशालय के सेवानिवृत्त डिप्टी डायरेक्टर चुनीलाल कश्यप और हिमाचल  प्रदेश के राज्य संग्रहालय के प्रभारी संग्राध्यक्ष डाक्टर हरि चौहान से संपर्क कर इस मूर्ति के दिव्य विग्रह के स्वरूप व इसके  निर्माण काल की जानकारी प्राप्त कर मंदिर की देखरेख करने वाले पुजारी शनि शर्मा के पास इस मूर्ति को सुरक्षित स्थान पर रखवा दिया है। डा. जगदीश शर्मा का कहना है कि देहरी के इस मंदिर में एक विकसित सभ्यता का बेशकीमती पुरातात्विक खजाना दबा पड़ा है, जिसकी कद्र अभी तक कोई नहीं जान पाया है। डा. जगदीश शर्मा, व्यापार मंडल पांगणा के अध्यक्ष सुमित गुप्ता, महामाया मंदिर पांगणा के अध्यक्ष कुशल महाजन, सचिव अनुपम गुप्ता, वैज्ञानिक विपुल शर्मा, सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की जिला सलाहकार लीना शर्मा का कहना है कि इस स्थान पर पुरातात्विक धरोहरों को खोजने व संरक्षित करने के लिए पुरातत्त्व विभाग को देहरी माता मंदिर रूपी इस ज्योति स्तंभ के जीर्णोद्धार के साथ यहां आस पास निकली मूर्तियों के रख-रखाव के लिए संग्रहालय कक्ष के निर्माण का प्रयास करना चाहिए।

कुछ ऐसी है प्रतिमा

पांगणा की सूर्य प्रतिमा के पैरों के पास सारथी अरुण करबद्ध बैठे हैं। सूर्य के अधोभाग में उनकी पत्नियां उषा और प्रत्यूषा आयुद्ध धारण कर जैसे अंधेरे का भेदन कर रही हैं। ऊपरी भाग में विद्यालय पंख फैलाए आकाश में विचरण को तैयार हैं। उत्तर भारत में मकर संक्रांति का त्योहार सूर्य को समर्पित है। संभव है कि सूर्य पूजा यहां कर्कोटक वंशीय ललितादित्य ने प्रतिष्ठित की हों या कालांतर में 9वीं 10वीं शताब्दी में यह मूर्तियां स्थापित की हों।


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