परोपकार ही धर्म

By: Jan 23rd, 2021 12:20 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

अरोग्य और धन में रखा ही क्या है? धनी से धनी मनुष्य भी अपने धन के थोड़े से अंश का ही उपभोग कर सकता है। हम संसार की सभी चीजें प्राप्त नहीं कर सकते। जब हम उसे प्राप्त नहीं कर सकते तो क्यों हमें उसकी चिंता में डूबे रहना चाहिए? जब यह शरीर ही नष्ट हो जाएगा, तब इन वस्तुओं की चिंता कैसी? परोपकार ही धर्म है, परपीड़न पाप। शक्ति और पौरुष पुण्य है, दुर्बलता और कायरता पाप। स्वतंत्रता पुण्य है, पराधीनता पाप। दूसरे से प्रेम करना पुण्य है। घृणा करना पाप। परमात्मा में और अपने आपमें विश्वास करना पुण्य है, संदेह ही पाप है, एकता का ध्येय पुण्य है, अनेकता देखना ही पाप है। तुम जो कुछ सोचोगे, तुम वह पाओगे। यदि तुम अपने को दुर्बल समझोगे, तो तुम दुर्बल हो जाओगे, बलवान सोचोगे, तो बलवान हो जाओगे। जो अपने में विश्वास नहीं करता, वह नास्तिक है। प्राचीन धर्मों ने कहा है वह नास्तिक है, जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता।  फरवरी में स्वामी विवेकानंद ने पाश्चात्य देशों को जीतकर अभी-अभी भारत में पदार्पण किया है। जिस क्षण से स्वामी जी ने शिकागो धर्म महासभा में हिंदू धर्म की पताका फहराई है, तब से उनके संबंध में जो भी बात संवाद पत्रों में प्रकाशित होती है, बड़े शौक से पढ़ता हूं।

कालेज छोड़े अभी दो-तीन वर्ष हुए हैं, किसी प्रकार का अर्थोपार्जन आदि नहीं कर रहा हूं, इसलिए कभी मित्रों के घर जाकर अथवा कभी घर के समीपवर्ती धर्मतुला मुहल्ले में इंडियन मिरर आफिस के बाहरी भाग में बोर्ड पर चिपकी हुई इंडियन मिरर पत्रिका में स्वामी जी का कोई संवाद उनका व्याख्यान प्रकाशित होता है, उसे बड़ी उत्सुकता से पढ़ा करता हूं। इस प्रकार स्वामी जी के भारत में पदार्पण करने के समय से सिंहल या मद्रास में जो कुछ उन्होंने कहा है, प्रायः सभी पढ़ चुका हूं इसके सिवाय आलम बाजार मठ में जाकर उनके गुरुभाइयों के पास एवं मठ में आने-जाने वाले मित्रों के विषय में बहुत सी बातें सुन चुका हूं और सुनता हूं तथा विभिन्न संप्रदायों के मुख्य पत्र जैसे बंगलावासी, अमृतबाजार, होप, थिओसाफिट, प्रभुति, अपनी-अपनी समझ के अनुसार कोई व्यंग से, कोई उपदेश देने से, कोई बड़प्पन के ढंग से उनके बारे में जो लिखते हैं, वह भी लगभग सब कुछ पढ़ चुका हूं। आज वे स्वामी विवेकानंद सियालदह स्टेशन पर अपनी जन्मभूमि कलकत्ता नगरी में पदार्पण करेंगे। अब आज उनकी श्रीमूर्ति के दर्शन से आंख कान का विवाद समाप्त हो जाएगा। इस हेतु बड़े तड़के ही उठकर सियालदह स्टेशन पर आ उपस्थित हुआ। इतने सवेरे से ही स्वामी जी की अभ्यर्थता के लिए बहुत से लोग एकत्रित हो गए हैं। अनेक परिचित व्यक्तियों से भेंट हुई। स्वामी जी के संबंध में बातचीत होने लगी। देखा अंग्रेजी में मुद्रित दो परचे वितरित किए जा रहे हैं। पढ़कर मालूम हुआ कि इंग्लैंड और अमरीका वासी उनके छात्र वृंद ने उनके प्रस्थान काल में उनके गुणों का वर्णन करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता सूचक दो अभिनंदन पत्र अर्पित किए थे, वे ही ये हैं। धीरे-धीरे स्वामी जी के दर्शनार्थी लोग झुंड के झुंड आने लगे। प्लेटफार्म लोगों से भर गया। आपस में एक-दूसरे से उत्कंठा के साथ पूछते हैं, स्वामी जी के आने में और कितना विलंब है।


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