चतुर दर्जी की कहानी

By: Jan 16th, 2021 12:16 am

उसका घोड़ा तो दैत्य द्वारा पहले ही खाया जा चुका था। वह दौड़कर काफी दूर निकल गया और हांफने लगा। अब और दौड़ना उसके बस का काम नहीं था। वह वहीं बैठ गया तथा किसी की प्रतीक्षा करने लगा, जो उसे कुछ समय के लिए अपना घोड़ा उधार दे सके। उसे अधिक देर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। दूर से एक किसान घोड़े पर सवार उसी ओर आता दिखा। जब वह निकट आया तो दर्जी ने उसे रोका और सारा माजरा उसे बता दिया। उसने किसान को अपना घोड़ा देने के लिए कहा ताकि वह दरबार जा सके और अपनी सफलता का समाचार राजा को दे सके…

-गतांक से आगे…

दर्जी ने जेब से कैंची निकालकर दैत्य के लंबे बालों में कुछ लटें सफाई से काट दीं। दैत्य सोता रहा। उसने जेब से सुई निकालकर लटों के बालों को धागे की तरह पिरोकर दैत्य के होंठों को सीना शुरू किया। जैसे बोरी बंद करने के लिए उसका मुंह सुतली से सीते हैं। दोनों होंठों को अच्छी तरह सी कर जोड़ने के बाद दर्जी तेजी से गुफा से बाहर निकला और उसने दौड़ना शुरू किया।

उसका घोड़ा तो दैत्य द्वारा पहले ही खाया जा चुका था। वह दौड़कर काफी दूर निकल गया और हांफने लगा। अब और दौड़ना उसके बस का काम नहीं था। वह वहीं बैठ गया तथा किसी की प्रतीक्षा करने लगा, जो उसे कुछ समय के लिए अपना घोड़ा उधार दे सके। उसे अधिक देर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। दूर से एक किसान घोड़े पर सवार उसी ओर आता दिखा। जब वह निकट आया तो दर्जी ने उसे रोका और सारा माजरा उसे बता दिया। उसने किसान को अपना घोड़ा देने के लिए कहा ताकि वह दरबार जा सके और अपनी सफलता का समाचार राजा को दे सके। दैत्य को ठिकाने लगाने का काम भी तो बाकी था। किसान ने घोड़ा देने में आनाकानी नहीं की। रास्ते में कई किसानों ने उसे रोक कर दैत्य के बारे में पूछना चाहा, पर दर्जी के पास रुकने के लिए समय नहीं था।

दर्जी को घोड़ा दनदनाता हुआ राजा के दरबार की ओर ले गया। द्वारपालों ने उसे दखते ही द्वार खोल दिया व राजा के सम्मुख ले गए। राजा उस समय अपने मंत्रियों के साथ दैत्य की समस्या पर ही विचार-विमर्श कर रहा था। दर्जी को देखते ही राजा ने विचार-विमर्श रोक दिया और उत्सुकता से पूछा- ‘हां तो वीर पुरुष, तुमने दैत्य को मार दिया?’ ‘नहीं महाराज अभी नहीं। मैं तो केवल उसके होंठ आपस में सी कर आ रहा हूं ताकि वह कुछ खा न सके।’ दर्जी ने सहज भाव से कहा जैसे कुरता सीने की बात कर रहा हो। ‘पर…पर तुम दैत्य के होंठ सीने में किस तरह सफल हो पाए? क्या वह तुमसे लड़ा नहीं?’ एक मंत्री ने आश्चर्य से पूछा।

(परियों की कथाओं में हम अगले अंक में कई कथाएं लेकर आ रहे हैं, जो रोचकता से भरपूर हैं। आशा है ये कथाएं आपकों खूब पसंद आएंगी। न केवल बच्चे, बल्कि युवा और अन्य लोग भी इन कथाओं को पढ़कर आनंद उठा सकते हैं। आप हमारी मैगजीन ‘आस्था’ के साथ  जुड़े रहें तथा एक से अनेक कथाओं का आनंद उठाते रहें।)


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