हिमाचली सेब के लिए खतरे की घंटी

By: Jan 31st, 2021 12:07 am

हिमाचल में सेब की आर्थिकी चार हजार करोड़ तक आंकी गई है। इस बड़े सेक्टर में बर्फ का बड़ा रोल रहता है, लेकिन इस बार हिमपात कम हुआ है। पेश है यह खबर …

इस बार पहाड़ से रूठी बर्फ, चिलिंग आवर्ज पर संकट

हिमाचल में सेब प्रमुख फसलों में माना जाता है। इस फसल में मौसम का बड़ा रोल होता है, लेकिन इस बार उम्मीद से बेहद कम बर्फ गिरी है, वहीं बारिश भी उतनी नहीं हुई है। ऐसे में बागबानों सेब के प्रति चिंता सताने लगी है। बागबानों की चिंताओं को जानने के लिए अपनी माटी टीम ने सिरमौर जिला के ऊंचाई वाले क्षेत्र नोहराधार, गताधार के अलावा जिला शिमला के कुपवी, कोटखाई व ठियोग आदि का दौरा किया। वहां पर बागबानों ने बताया कि इस बार बर्फ उम्मीद के अनुसार नहीं गिरी है। विगत 27 दिसंबर को इन क्षेत्रों में हल्की बर्फबारी हुई थी जो कि फलदार पौधों के।लिए नाकाफी साबित हुई थी।  उसके बाद काफी समय बीत चुका है मगर न तो बारिश हुई और न ही बर्फबारी। इससे फलदार  पौधों को काफी नुकसान की आशंका है। खासकर चिलिंग आवर्ज का संकट खड़ा होता दिख रहा है।  कई बागबानों ने अभी अपने पौधों में प्रूनिंग व खाद, गोबर डालने का भी कार्य पूरा नहीं किया है।  तोलिये बनाने के लिए जमीन में पर्याप्त नमी का होना जरूरी है, जो कि नहीं मिल रही।  बहरहाल मौसम विभाग की मानें तो आने वाले दिनों में हिमपात हो सकता है।

रिपोर्टः निजी संवाददाता, नौहराधार

अपर शिमला में सूरज की तपिश से बागबान परेशान

अपर शिमला में इस बार फलदार पौधों पर संकट आ गया है। जनवरी माह में ही हल्की सी गर्मी का एहसास हो रहा है, जिससे बागबानों के होश उड़ गए हैं। पेश है एक खबर…

अपर शिमला में इस बार बारिश मानों बागबानों से रूठ गई है। इस बार जनवरी में उम्मीद के मुताबिक बारिश नहीं हुई है। इससे बागीचों में काम रुक गए हैं। नमी न होने से न तो बागबान गोबर डाल पा रहे हैं और न ही तौलिए हो पा रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि जनवरी में ही सूरज की तपिश बढ़ने लगी है। यही हाल रहा, तो बागीचों में काम करना कठिन हो जाएगा। अपनी माटी टीम ने कुछ बागबानों से बात की। उन्होंने बताया कि  जनवरी माह में  ऊंचाई वाले क्षेत्रों में घरों से निकलना मुश्किल होता था वहीं इस वर्ष दिन के समय धूप की तपिश को सहना बड़ी चुनौती बन गया है। यह महीना हल्की बौछारों से सिमट गया है। यह एक बेहत गंभीर चिंता का विषय है। बागबानों ने बताया कि अगर बारिश न हुई,तो आने वाले दिनों में सेब व अन्य फलों की क् वालिटी पर बुरा असर पड़ सकता है।

रिपोर्टः निजी संवाददाता, मतियाना

हिमाचल में अब तक दालों पर कोई खास काम नहीं हुआ है। ऐसे में कृषि विश्वविद्यालय ने इस दिशा में बड़ा कदम उठाया है। पेश है पालमपुर से यह स्पेशल खबर

दालों पर होगी रिसर्च, सुंदरनगर और लाहुल में शुरू होंगे प्रोजेक्ट

हिमाचल ने खेती की दिशा में कई आयाम छुए हैं, लेकिन अब तक दालों पर कोई बड़ा काम नहीं हो पाया है। इस मसले की गंभीरता को समझते हुए कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने बड़ा प्रोजेक्ट बनाया है। कृषि विश्वविद्यालय ने इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ पल्सिज रिसर्च कानपुर से करार किया है। इसके तहत जल्द सुंदरनगर और लाहुल में दालों पर बड़ी रिसर्च शुरू होने वाली है। अपनी माटी के लिए हमारे वरिष्ठ सहयोगी जयदीप रिहान ने कृषि विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डा एचके चौधरी से बात की । चौधरी ने बताया कि दालों के अलावा औषधीय और सुंगंधित पौधों पर भी काम शुरू होने वाला है। वहीं सीवक्थोर्न पर भी मेगा प्राजेक्ट चलाया जा रहा है।

इन दालों के लिए मशहूर हैं पहाड़

पहाड़ पर मुख्य रूप से चने,उड़द,अरहर, मसूर,रोंगी, रोड़ी, राजमाह, कुलथ,अलसी, कलां, अरहर,मोठ,मसूर आदि दालें खूब महकती थी। ये सभी दालें अपने औषधीय गुणों के लिए मशहूर हैं। समय के साथ साथ इनमें काफी दालें खत्म हो गई हैं। उम्मीद है अब नए प्रोजेक्ट के तहत इन दालों में से रिसर्च के बाद अच्छे रिजल्ट देखने को मिलेंगे।

   रिपोर्टः कार्यालय संवाददाता, पालमपुर

देशभर में किसानों की हौसला अफजाई के लिए कई अभियान चले हुए हैं। इन्हीं अभियानों में से एक है कृषि विश्वविद्यालय का फार्मर्ज फर्स्ट, जिसे खूब सराहना मिल रही है। देखिए यह खबर

कृषि विश्वविद्यालय में फार्मर्ज फर्स्ट की अनूठी पहल लाई रंग, प्रदेश भर में मिल रही सराहना

कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए अनूठा अभियान चलाया हुआ है। इसके तहत यूनिवर्सिटी के कैंपस में उन 32 किसानों के फोटो लगाए गए हैं, जिन्होंने हिमाचल में खेती को प्रोमोट किया है।

मसलन नई तकनीकें अपनाई हैं या फिर नई तकनीक के जरिए खेती को और आसान बना दिया है। यूनिवर्सिटी के वीसी डा एचके चौधरी ने बताया कि ये किसान पूरे प्रदेश के लिए रोल मॉडल बने हुए हैं। कृषि विश्वविद्यालय ने फार्मर्स फर्स्ट मूवमेंट के जरिए यह मुहिम चलाई है। इसे पूरे प्रदेश के किसानों का सपोर्ट मिल रहा है। आने वाले समय में ऐसे प्रोग्रामों की संख्या में इजाफा किया जाएगा। दूसरी ओर प्रदेश के कई किसानों ने कृषि विवि की इस मुहिम की जमकर सराहना की है।

केसर की सुगंध से महका कश्मीर

श्याम सुंदर भाटिया, लेखक सीनियर जर्नलिस्ट और रिसर्च स्कॉलर हैं  (भाग-3)

केसर के सबसे बड़े उत्पादक इस केंद्र शासित प्रदेश ने केसर की फार्मिंग और ट्रेडिंग की खातिर जीआई टैगिंग –Gl Tegging की सहूलियत प्रारंभ कर दी है। इस नई तकनीक के जरिए इसकी पैदावार से लेकर बेचने तक की सारी सुविधा मुहैया होगी। कहने का अभिप्राय यह है, कश्मीरी केसर को अब देश की सभी मंडियों में पहुंचने के लिए ई-मार्केटिंग का श्रीगणेश हो गया है। केसर के चाहने वाले www.saffroneauctionindia.com पर ई-ट्रेडिंग के लिए रजिस्टर्ड कर सकेंगे। इस वेबसाइट पर केसर की फसल का पूरा रिकॉर्ड रहेगा। इससे केसर के काश्तकार सीधे मंडियों के संपर्क में रहेंगे और बिचौलियों की दाल नहीं गलेगी। इस वेबसाइट के जरिए देश का कोई भी आदमी कश्मीरी केसर खरीद सकता है। पहले जम्मू-कश्मीर में केसर उगाने वाले किसानों को माल बेचने के लिए बिचौलियों को कमीशन देना पड़ता था, जो धारा-370 की समाप्ति के बाद बीते कल की बात हो गई है। जम्मू-कश्मीर के 200 से अधिक गांव के हजारों किसान इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। साल 2014 में बाढ़ आने के बाद से ही और पत्थरबाजी की घटना के बाद राज्य के किसानों ने केसर की खेती छोड़ दी थी, लेकिन सरकार के ठोस आश्वासन और घाटी में बदली-बदली फिजा के बाद धरतीपुत्र फिर से केसर की खेती में रम गए हैं। दुनिया में केसर की सबसे ज्यादा पैदावार ईरान में होती है। इसके बाद जम्मू-कश्मीर का नंबर आता है। लोगों के लिए यह अमृत के समान है, इसीलिए इसे लाल सोना भी कहते हैं ।                                                                                                                                                            क्रमशः

घर पर यूं तैयार करें जीवामृत

सुभाष पालेकर प्राकृतिक कृषि विधि से बगीचों में पौधों को विभिन्न तरीकों से लगाया जाता है। इस बारे में डा. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के वैज्ञानिक सुभाष वर्मा ने बताया कि जीवामृत बनाने के विभिन्न वस्तुओं की जरूरत होती है। जिसमें गोबर, गोमूत्र  व पानी शामिल हैं।  इन तीनों पदार्थों का मिश्रण बनाकर इसे 48 घंटे तक रखना है।

इसके अतिरिक्त इसमें गुड़ व दो किलोग्राम बेसन भी इसमें डाल कर मिलाएंगे। इस मिश्रण में 200 लीटर पानी का इस्तेमाल होगा। 48 घंटे में दिन में तीन बार इसे मिलाना है। जिसके बाद पौधों में हम 10 प्रतिशत इस मिश्रण का छिड़काव कर सकते हैं। जिसके बाद 15-15 दिन में इसका छिड़काव करते हैं।  इसमें भी गोबर, गोमूत्र व पानी का इस्तेमाल होगा इसके अलावा हम इसमें चुने का उपयोग करेंगे। इस मिश्रण को भी हमें 48 घंटे तक रखना है। जिसका प्रयोग पौधा लगाने से पूर्व पौधे को इस मिश्रण में आधा घंटा डुबो कर रखें, जिसके बाद पौधों को खेत में लगा  सकते हैं।

रिपोर्टः निजी संवाददाता, सोलन

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