50 साल में कितना बढ़ा 18वां राज्य हिमाचल

By: Jan 25th, 2021 12:08 am

हिमाचल आज किसी पहचान का मोहताज नहीं। छोटे से राज्य की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कायम है, जिसका रुतबा निरंतर बढ़ता जा रहा है। आज हिमाचल अपनी स्वर्ण जयंती मना रहा है और यहां तक पहुंचे हिमाचल ने कई उतार-चढ़ाव देखे। आज हिमाचल हर क्षेत्र में सिरमौर है और इसकी उन्नति के लिए हर हिमाचल वासी बराबर का सहयोगी रहा है, लेकिन क्या 50 साल में जितना कुछ हिमाचल में हो सकता था, वह हुआ… क्या अपना लक्ष्य पूरा कर पाया पहाड़…हिमाचल के 50 साल के सफर में कितने फूल और कितने कांटे हैं… पूर्ण राज्यत्व दिवस के मौके पर बता रहे हैं       

 … शकील कुरैशी, नीलकांत भारद्वाज

हिमाचल की गाथा शुरू होती है…जनवरी 1948 से। जब शिमला हिल्स स्टेट्स यूनियन सम्मेलन सोलन में हुआ। हिमाचल प्रदेश के निर्माण की घोषणा इस सम्मेलन में की गई। दूसरी तरफ प्रजा मंडल के नेताओं का शिमला में सम्मेलन हुआ, जिसमें यशवंत सिंह परमार ने इस बात पर जोर दिया कि हिमाचल प्रदेश का निर्माण तभी संभव है, जब शक्ति प्रदेश की जनता तथा राज्य के हाथ सौंप दी जाए। शिवानंद रमौल की अध्यक्षता में हिमालयन प्लांट गवर्नमेंट की स्थापना की गई, जिसका मुख्यालय शिमला में था। दो मार्च, 1948 को शिमला हिल स्टेट के राजाओं का सम्मेलन दिल्ली में हुआ। राजाओं की अगवाई मंडी के राजा जोगेंद्र सेन कर रहे थे। इन राजाओं ने हिमाचल प्रदेश में शामिल होने के लिए आठ मार्च, 1948 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। 15 अप्रैल, 1948 को हिमाचल प्रदेश राज्य का निर्माण किया था। उस समय प्रदेश भर को चार जिलों में बांटा गया और पंजाब हिल स्टेट्स को पटियाला और पूर्व पंजाब राज्य का नाम दिया गया। 1948 में सोलन की नालागढ़ रियासत को शामिल किया गया। अप्रैल, 1948 में इस क्षेत्र की 27,018 वर्ग किलोमीटर में फैली लगभग 30 रियासतों को मिलाकर इस राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया।

15 अप्रैल, 1948 को हुआ हिमाचल का गठन, तब थे सिर्फ चार जिले

हिमाचल 25 जनवरी, 1971 को देश का 18वां राज्य बना। हिमाचल का गठन 15 अप्रैल, 1948 को किया गया था, लेकिन उस समय का हिमाचल बेहद छोटा था और पहली नवंबर, 1956 को हिमाचल केंद्रशासित प्रदेश बना। इस समय हिमाचल में केवल चार जिले थे। ज्यादातर पहाड़ी इलाके पंजाब में थे। संपूर्ण और वर्तमान का विशाल हिमाचल बनने के लिए 18 साल का लंबा वक्त लगा।

30 रियासतें मिलाकर बना राज्य

15 अप्रैल, 1948 को 30 रियासतों को मिलाकर हिमाचल का गठन हुआ। तब इसे मंडी, महासू, चंबा और सिरमौर चार जिलों में बांट कर प्रशासनिक कार्यभार एक मुख्य आयुक्त को सौंपा गया। बाद में इसे पार्ट-सी कैटेगिरी का राज्य बनाया गया। 25 जनवरी 1971 को हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। 25 जनवरी का दिन हिमाचल के लोगों के लिए एक यादगार दिवस है। वर्ष 1971 में इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शिमला के ऐतिहासिक रिज से हजारों प्रदेशवासियों को संबोधित करते हुए हिमाचल को पूर्ण राज्यत्व का दर्जा प्रदान किया था। इसके साथ हिमाचल भारतीय गणतंत्र का 18वां राज्य बना था।

1950 में हुआ सीमाओं का पुनर्गठन

1950 में प्रदेश की सीमाओं का पुनर्गठन किया गया। कोटखाई को उपतहसील का दर्जा देकर खनेटी, दरकोटी, कुमारसैन उपतहसील के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र कोटखाई में शामिल किए गए। कोटगढ़ को कुमारसैन उपतहसील में मिलाया गया। उत्तर प्रदेश के दो गांव संसोग और भटाड़ जो देवघर खत में थे, उन्हें जुब्बल तहसील में शामिल कर दिया गया। पंजाब के नालागढ़ से सात गांव लेकर सोलन तहसील में शामिल गए गए। इसके बदले में शिमला के नजदीक कुसुम्पटी, भराड़ी, संजौली, वाकना, भारी, काटो, रामपुर। इसके साथ ही पेप्सी पंजाब के छबरोट क्षेत्र कुसुम्पटी तहसील में शामिल कर दिया गया।

1952 में हिमाचल में पहली बार हुए चुनाव

वर्ष 1952 में प्रदेश में भारत के प्रथम आम चुनावों के साथ हिमाचल में भी चुनाव हुए और इसमें कांग्रेस पार्टी की जीत हुई थी। 24 मार्च, 1952 को प्रदेश की बागडोर बतौर मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार ने संभाली। वर्ष 1966 में पंजाब का पुनर्गठन किया गया और पंजाब व हरियाणा दो राज्य बना दिए गए। भाषा तथा तिहाड़ी क्षेत्र पंजाब से लेकर हिमाचल प्रदेश में शामिल कर दिए गए। संजौली, भराड़ी, कुसुमपटी आदि क्षेत्र, जो पहले पंजाब में थे और नालागढ़ आदि जो पंजाब में थे, उन्हें पुनः हिमाचल में शामिल कर दिया गया। सन् 1966 में इसमें पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को मिलाकर इसका पुनर्गठन किया गया, तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 55,673 वर्ग किलोमीटर हो गया।

1966 में पंजाब के कई हिस्से आए हिमाचल में

पहली नवंबर, 1966 को जब टेरिटोरियल काउंसिल ने पंजाब का पुनर्गठन किया, तो पंजाब के पहाड़ी इलाके हिमाचल का अंग बन गए। कांगड़ा, कुल्लू, शिमला, लाहुल-स्पीति, नालागढ़, ऊना, डलहौजी और बकलोह क्षेत्र को पंजाब से हटाकर जब हिमाचल में शामिल किया गया, तो इस सुंदर प्रदेश का आकार बढ़कर 55 हजार 673 वर्ग किलोमीटर हो गया। अपने निर्माण के इतने कम समय में ही इस छोटे से पहाड़ी राज्य ने शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और अन्य कई क्षेत्रों में अन्य बड़े और संपन्न राज्यों से शीर्ष का स्थान हासिल कर देश में अपनी अलग सी पहचान स्थापित की है।

शिमला ने ले लिया महासू जिला का स्थान

पुनर्गठन के बाद जब पहाड़ी इलाके हिमाचल में शामिल किए, तो यह एक बड़ा हिमालयी प्रदेश बना। नतीजा यह हुआ कि 13 हजार 835 वर्ग किलोमीटर वाला लाहुल-स्पीति क्षेत्र प्रदेश का सबसे बड़ा जिला बना। जनसंख्या के लिहाज से कांगड़ा सबसे बड़ा जिला बनकर उभरा। इसके अलावा महासू जिले का स्थान शिमला ने ले लिया और कई खूबसूरत और संसाधनों से भरपूर इलाके हिमाचल का अभिन्न अंग बने।

…तब मात्र 4.8 फीसदी थी साक्षरता दर

जब हिमाचल बना, तो साक्षरता दर 4.8 फीसद रही। इसे 50 फीसद यानी आधे हिमाचल को पढ़ा-लिखा बनाना भी चुनौती था। समय के चक्र के साथ साक्षरता दर बढ़ती रही। बड़े राज्यों को शिक्षा के क्षेत्र में पछाड़ने के बाद आज 50 वर्ष पूरे होने पर साक्षरता दर में देश में दूसरे नंबर पर है। साक्षरता दर 80 फीसद से ज्यादा है, पहाड़ी राज्य होने के नाते पानी नदियों में था, लेकिन गांव नदियों से दूर थे। 300 बस्तियां ही ऐसी थीं, जहां पानी पहुंचता था। आज हिमाचल में 7500 से ज्यादा पेयजल और इससे भी कहीं ज्यादा सिंचाई की योजनाएं हैं।

इंदिरा गांधी ने रिज से की 18वें राज्य की घोषणा

हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा 25 जनवरी, 1971 को मिला। 25 जनवरी, 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शिमला आकर ऐतिहासिक रिज पर भारी बर्फबारी के बीच हिमाचल वासियों के समक्ष हिमाचल प्रदेश की 18वें राज्य के रूप में शुरुआत करवाई। पहली नवंबर, 1972 को तीन जिले कांगड़ा, ऊना तथा हमीरपुर बनाए गए। महासू जिला के क्षेत्रों में से सोलन जिला बनाया गया।

1976 तक सीएम रहे डा. परमार…फिर आए शांता कुमार

डा. यशवंत सिंह परमार वर्ष 1976 तक हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद ठाकुर राम लाल मुख्यमंत्री बने और प्रदेश बागडोर संभाली। वर्ष 1977 में प्रदेश में जनता पार्टी चुनाव जीती और शांता कुमार मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1980 में ठाकुर राम लाल फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो गए। आठ अप्रैल, 1983 को उनकी जगह मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को बनाया गया। 1985 के चुनाव में वीरभद्र सिंह नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत मिला और वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। 1990 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सरकार बनी और शांता कुमार को दोबारा मुख्यमंत्री बनाया गया। 15 दिसंबर, 1992 को राष्ट्रपति के अध्यादेश द्वारा भाजपा सरकार और विधानसभा को भंग कर दिया गया। हिमाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया।

प्रदेश में दोबारा चुनाव करवाए गए और वीरभद्र सिंह एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए। वर्ष 1998 के चुनाव में सत्ता भाजपा के हाथ चली गई और प्रेम कुमार धूमल को पहली बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वर्ष 2003 के चुनाव में भाजपा को सत्ता से हाथ धोना पड़ा और कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हुई और इस दौरान मुख्यमंत्री फिर से वीरभद्र सिंह को बनाया गया। वर्ष 2007 में भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हुई और इस दौरान मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल बने। नवंबर, 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की। 68 सीटों में से 36 सीटें जीतकर कांग्रेस ने सरकार बनाई और वीरभद्र सिंह फिर मुख्यमंत्री बन गए। नवंबर, 2017 में भाजपा ने विधानसभा चुनाव प्रो. प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में लड़ा। 18 दिसंबर, 2017 को घोषित नतीजों में धूमल की हार के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने हिमाचल की बागडोर सराज विधानसभा क्षेत्र से पांच बार रहे विधायक जयराम ठाकुर को सौंपी। हिमाचल के इतिहास में यह पहली बार है जब मंडी जिला से कोई मुख्यमंत्री बना है।

छोटे राज्य ने भी पार किया चुनौतियों का पहाड़

सोचा नहीं था कि 50 साल का होने पर औरों के लिए आदर्श बन जाएगी देवभूमि

छोटा राज्य होने के बावजूद हिमाचल ने चुनौतियों का पहाड़ पार किया, लेकिन यहां के सियासतदानों को भी यकीन नहीं था कि 50 साल का होने पर हिमाचल शिक्षा ही नहीं, स्वास्थ्य के क्षेत्र में पहाड़ी ही नहीं, बल्कि बड़े राज्यों के लिए आदर्श बनेगा। पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद हिमाचल की आबादी 12 लाख थी। यहां 228 किलोमीटर सड़कें और 331 शिक्षण संस्थान थे। 25 जनवरी, 1971 को शिमला के रिज पर भीड़ उमड़ी। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की घोषणा की थी।

समय के साथ पहाड़ी प्रदेश ने पहाड़ सी चुनौतियों को पार करने के लिए जब एक बार ठाना, तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। 331 के मुकाबले हिमाचल में आज 15 हजार से ज्यादा शिक्षण संस्थान हैं। इसमें दस लाख से ज्यादा छात्रों का भविष्य सुधारने के लिए 70 हजार से ज्यादा शिक्षक तैनात हैं। उस समय पहले बागबानी क्षेत्रफल 792 हेक्टेयर (1951-52) ही था। आज बढ़कर 2,20,706 हेक्टेयर हुआ। बागबानी से होने वाली कमाई भी 4000 करोड़ रुपए तक पहुंच गई। इसमें अभी और बाधाएं पार कर मंजिलों को हासिल करने की चुनौती बची है। यह हर पहाड़ी के जज्बे का कमाल है कि आज हिमाचल में 33 हजार किलोमीटर सड़कों का जाल है। इन्हीं सड़कों के दम पर ही विकास की बुनियाद रखी गई।

प्रशासनिक विस्तार से हुआ विकास

राज्य में प्रशासनिक विस्तार के कई तरह से मायने देखे जा सकते हैं। प्रदेश में प्रशासनिक विस्तार सीधे रूप से इसके विकास का द्योतक है। एक के बाद एक जिले बने और प्रशासनिक सीमाएं बढ़ती गईं। आज हिमाचल प्रदेश में हरेक जिला का अपना प्रशासनिक ढांचा है और उन्नति के लिए हरेक जिला की अपनी योजनाएं हैं। सभी जिलों का प्रशासनिक ढांचा अपने स्तर पर काम कर रहा है, जिनके पास टारगेट हैं। प्रदेश चलाने के लिए सरकार को जरूरी था कि प्रशासनिक ढांचे को बढ़ाया जाता, जिसके चलते हिमाचल में 12 जिला बनाए गए। इन जिलों में जिलाधीश हैं, जिनके अधीन पूरा प्रशासनिक ढांचा है, जो अपना-अपना काम कर रहा है। सभी जिलों के जिलाधीश जहां वार्षिक बजट की योजनाओं को सिरे चढ़ाने में जुटे हैं, वहीं जिलों की अपनी योजनाएं भी हैं। वहीं, केंद्र सरकार की योजनाएं भी अब सीधे रूप से जिलों को पहुंचने लगी हैं। चंबा जिला की बात करें, तो इसे एस्पीरेशनल जिला बनाया गया है, जहां सीधे केंद्र सरकार की योजनाएं लागू की जा रही हैं। ऐसे ही अब केंद्र सरकार ने इस योजना का विस्तार किया है और प्रशासनिक ढांचे में यही सबसे बड़ी सफलता है कि जिला स्तर पर प्रदेश का विकास किया जा रहा है।

अधिकारियों का कुनबा भी बढ़ा

प्रशासनिक विस्तार को दूसरी तरफ से देखें, तो यहां अधिकारियों का कुनबा भी बढ़ा है। चाहे आईएएस अधिकारी हों या फिर आईएफएस या आईपीएस। इन कॉडर के विस्तार के अलावा यहां स्टेट कॉडर का भी विस्तार हुआ है, जो प्रदेश के प्रशासनिक तौर पर विकास   में महत्त्वपूर्ण है। यहां सभी विभागों में प्रशासनिक रूप से उन्नति हुई है, जहां रोजगार बड़े पैमाने पर जुटा है, वहीं जो चेन बनी, उससे निचले स्तर पर प्रशासनिक ढांचा मजबूत बना है।

49 साल से हिस्से के लिए लड़ रहा राज्य

हिमाचल का पंजाब के साथ 1956 और 1966 का बिजली प्रोजेक्ट्स का विवाद 49 साल बाद भी नहीं सुलझा है। इसी दौरान चंडीगढ़ को पंजाब, हरियाणा और हिमाचल की हिस्सेदारी तय की थी। हिमाचल आज तक इस हिस्से को लेकर लड़ रहा है, लेकिन हिमाचल प्रदेश का हक अभी तक भी क्लियर नहीं हो सका है।

हिमाचल की बिजली से रोशन है उत्तर भारत

पहाड़ों को चीरते हुए नदियों का पानी दूसरे राज्य ही नहीं, बल्कि देशों तक पहुंच जाता था। इस पर काफी मंथन के बाद बिजली प्रोजेक्ट लगाना शुरू किया गया। देश का सबसे बड़ा बिजली प्रोजेक्ट नाथपा-झाकड़ी एक समय हिमाचल में ही लगा। 1500 मेगावाट क्षमता का प्रोजेक्ट आज भी देश के कई राज्यों को रोशन करता है। बिजली से रोशनी भले ही दूसरे राज्यों को मिली, लेकिन हर साल बिजली बेचकर 1000 करोड़ रुपए की आमदनी हिमाचल की होती है। आज हिमाचल का हर गांव बिजली से जुड़ा है।

सरकार के लिए कर्ज सबसे बड़ी चुनौती

छोटे पहाड़ी राज्य ने पंख फैलाए और उड़ान भरी, मगर इस उड़ान में उसे कर्ज का सहारा लेना पड़ा। 57 हजार करोड़ रुपए का कर्ज इस समय प्रदेश पर है और हर महीने दूसरे महीने कर्जा लेकर ही यहां काम चल रहा है। कर्ज लेकर घी पीने के आरोप यहां की सरकारों पर लगे हैं, जिसका नुकसान राजनीतिक रूप से भी दलों को हुआ। आज जहां तक हिमाचल पहुंचा है, वह कर्ज की बैसाखियों के सहारे ही पहुंचा है। इस कर्ज को चुकता करने की सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश की है, क्योंकि पुराना कर्ज चुकाया तो जा रहा है, लेकिन उससे कहीं ज्यादा नया कर्जा लिया जा रहा है। एक साल के लिए 5100 करोड़ रुपए के कर्ज की लिमिट हिमाचल की इस समय है, जो हर साल बढ़ती है। केंद्र सरकार भी आर्थिक रूप से कई रास्तों से प्रदेश की मदद करती है, तब जाकर हिमाचल का काम चल रहा है। इस साल भी प्रदेश सरकार तीन हजार करोड़ रुपए तक का कर्जा ले चुकी है।

किसी ने खत्म नहीं किए फालतू खर्चे

कर्ज लेकर घी पीने की बात करें, तो कांग्रेस यहां लंबे समय तक सत्ता में रही और कांग्रेस पर ही यह आरोप है कि उसने हिमाचल को चलाने के लिए कर्जा लेने की शुरुआत की, जिसे भाजपा भी आगे बढ़ा रही है। सरकार खुद मानती है कि बिना कर्ज के काम नहीं चल सकता। मितव्ययता बरतने की बातें की जाती हैं, मगर उस पर काम नहीं हो पाता। कोई भी सरकार ऐसी नहीं है, जिसने फालतू खर्चे खत्म किए हों, बल्कि ये खर्चे बढ़ते ही जा रहे हैं। इतना ही नहीं, कोरोना काल में भी इसमें किसी तरह की कमी नहीं हो सकी है। केंद्र सरकार टैक्स को लेकर जीएसटी लाई, जिससे अब सभी तरह के कर केंद्र सरकार लेती है और जीएसटी में हिस्सा राज्य को देती है, परंतु वर्ष 2022 के बाद इसमें भी कमी हो जाएगी और तब राज्य को और ज्यादा कर्ज लेना होगा।

अभी बहुत कुछ बाकी है

50 साल के हो रहे हिमाचल प्रदेश में विकास पर पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल की राय

राष्ट्र का जीवन हो, प्रदेश का हो या फिर प्रदेश का। होना क्या चाहिए, होता क्या है, इन दोनों में हमेशा अंतर रहता है। इंग्लिश में एक शब्द आता है ‘आइडियल’। आदर्श हम मानते हैं, लेकिन आइडियल पूरी तरह से अचीव नहीं हो पाता। कुछ न कुछ कमी हमेशा रह जाती है। यह कहना है, दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल का। पूर्ण राज्यत्व दिवस को लेकर पूछे गए सवालों के जवाब में पूर्व मुख्यमंत्री ने जहां प्रदेश के 50 साल की उपलब्धियों को जिक्र किया। ‘दिव्य हिमाचल’ से हुई इस विशेष बातचीत में प्रो. धूमल ने कहा कि हिमाचल को पूर्ण राज्यत्व का दर्जा मिलने के बाद विकास को गति मिली। जो थोड़ा-थोड़ा बजट मिलता था, वह बढ़ा, जिससे प्रदेश उन्नति की ओर अग्रसर हुआ। इन 50 वर्षों में प्रदेश में अलग-अलग सरकारें रहीं। सभी ने अपने-अपने हिसाब से प्रदेश को आगे ले जाने में भूमिका निभाई। हिमाचल निर्माता वाईएस परमार से शुरुआत करते हुए प्रो. धूमल ने कहा कि उन्होंने प्रदेश को फल राज्य बनाने में अहम भूमिका निभाई।

 इन 50 वर्षों में प्रदेश को राष्ट्र स्तर पर कई सम्मान मिले। क्षेत्रफल के हिसाब से हमारी गिनती बड़े राज्यों में होती थी, लेकिन फिर भी हम हर बार किसी न किसी फील्ड में अवार्ड लेते रहे। हिमाचल अन्य राज्यों के लिए भी मॉडल बनकर उभरा। देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना शुरू की, तो सब राज्यों से उसकी डीपीआर मांगी गई। उस वक्त प्रदेश में बीजेपी सरकार थी, तो हमने सबसे पहले डीपीआर बनाकर भेजी। कुछ राज्यों को हमारी डीपीआर का अनुकरण करने के लिए भी कहा गया। गांवों तक सड़कें पहुंचीं। पर्यटन का जिक्र करते हुए प्रो. धूमल बताते हैं कि प्रदेश में होम स्टे जैसी योजनाएं शुरू की गईं, जो कि आज चाइना बॉर्डर पर स्पिति क्षेत्र में भी देखने को मिलती है।

बहुत सी कमियां हैं

प्रो. धूमल कहते हैं कि उन्होंने अपने कार्यकाल में एक स्लोगन दिया था कि सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वरोजगार, स्वावलंबन और स्वाभिमान। क्योंकि प्रदेश का हर नागरिक तभी स्वाभिमान पूर्ण हो सकता है, जब हर गांव तक सड़क हो, गुणात्मक शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा हो, अपना रोजगार हो, जॉब सीकर से ज्यादा जॉब प्रोवाइडर हों। वह कहते हैं कि 1999 में प्रधानमंत्री ग्रामी सड़क सुविधा शुरू हुई, तो आज तक हर गांव चकाचक पक्की सड़कों से जुड़ जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। शिक्षा के क्षेत्र में विस्तार तो हुआ, लेकिन गुणात्मकता की आज भी कमी है। आर्थिक तौर पर प्रदेश को जो तंगी रहती है, उसके लिए लगातार प्रयास हो, तो टैक्स फ्री बजट देने के बजाय थोड़े-थोड़े संसाधन जुटाते रहें, तो प्रदेश स्वावलंबी हो सकता है। अब तक वह हुआ नहीं, जो होना चाहिए था। शिक्षा हो या स्वास्थ्य सुधार, गुणात्मक होने चाहिए, न कि संख्यात्मक। अधिक स्कूल और अस्पताल खोलने से बेहतर हैं, जो हैं उनमें वे सब सुविधाएं हों, जिनकी आवश्यकता हमेशा रहती है।

ऐसा हो, तब बनेगी बात

श्री धूमल कहते हैं कि यहां इंटरनेशनल एयरपोर्ट की बड़ी दरकार है। इसलिए अधिक पेइंग कैपेसिटी वाला टूरिस्ट यहां नहीं आता। लेह तक रेल विस्तार की जरूरत है। रेलवे लाइनों का विस्तार होना चाहिए। हमारे प्रदेश में जंगल और पहाड़ अधिक हैं। पेड़ न कटें और प्रदूषण न फैले, इसके लिए सुरंगों का निर्माण होना चाहिए। इससे टूरिस्ट भी बढ़ेंगे। रोहतांग टनल इसका ताजा उदाहरण है।

जब जॉर्ज फर्नांडीस को खिलाई हिमाचल की कीवी

प्रो. प्रेम कुमार धूमल कहते हैं कि बागबानी क्षेत्र में हिमाचल को ‘फलों की टोकरी’ कहा जाता है, क्योंकि यहां हर तरह का फल होता है। 1999 का किस्सा सुनाते हुए वह कहते हैं कि उस वक्त वह प्रदेश के सीएम थे और जॉर्ज फर्नांडीस देश के डिफेंस मिनिस्टर थे। वह हिमाचल आए थे और प्रो. धूमल ने उन्हें ब्रेकफास्ट के लिए अपने घर पर आमंत्रित किया। जब उन्हें कीवी खाने को दी गई, तो जॉर्ज फर्र्नांडीस को लगा कि यह तो विदेशी फल है, जो कि काफी महंगा भी था उस वक्त। जॉर्ज फर्नांडीस ने पूछा कि क्या यह विदेश से मंगवाया है, तो धूमल साहब बोले, नहीं, यह हिमाचल में ही होता है। यह सुनकर श्री फर्नांडीस हैरान रह गए थे।


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