फ्रूट प्लांट्स चाहिएं, तो आएं नौणी

By: Jan 10th, 2021 12:08 am

यूनिवर्सिटी द्वारा 20 जनवरी तक बंटेंगे पौधे

नौणी यूनिवर्सिटी में समय समय पर बागबानों को पौधे बांटे जाते हैं। इस बार भी पौधे बांटने का दौर शुरू हो गया है। बागबानों को टेंशन से बचाने के लिए विशेष योजना के तहत पौधे बांटे जा रहे हैं। देखिए यह रिपोर्ट …

नौणी यूनिवर्सिटी में बागबानों को फलदार पौधे बांटे जा रहे हैं। बागबानों को ये पौधे आगामी 20 जनवरी तक बांटे जा रहे हैं। खास बात यह कि इस बार पौधों के लिए ऑनलाइन बुकिंग ली जा रही है। इससे बागबानों को कोरोना काल में बार-बार के चक्करों से छुटकारा मिल गया है। बहरहाल नौणी यूनिवर्सिटी द्वारा कृषि विज्ञान केंद्रों में फलदार पौधों को बांटा जा रहा है। इस बार 30 हजार से अधिक फलदार पौधे किसानों को दिए जा रहे हैं।  पहले कई बागबानों की शिकायत रहती थी कि उन्हें पौधे नहीं मिले हैं। ऐसे में उनकी यह समस्या अब दूर हो गई है। नौणी यूनिवर्सिटी से जुड़ी अहम जानकारियां बागबान भाई विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर भी मौजूद हैं।

रिपोर्टः निजी संवाददाता, सोलन  

आइए यहां सीखें गेंदे की खेती करना

अगर गेंदे के फू ल को हिमाचली संस्कृति का एक हिस्सा कहें, तो गलत न होगा। तकरीबन हर घर गेंदा होता है, लेकिन कई लोग अब भी गेंदे को सही ढंग से उगाना नहीं जानते। ऐसे लोगों के लिए है हमारी यह खास रिपोर्ट…

नौणी —मंदिर सजाना हो या फिर माला तैयार करनी हो, गेंदे का फूल हर किसी की पहली पसंद होता है। हम सबने घरों में कहीं न कहीं गेंदा जरूर उगाया होता है, पर यह नहीं जानते कि इसे उगाना कैसे है और इस फूल की देखभाल कैसे करनी है। प्रदेश के हजारों किसानों व आमजन की खातिर हमारी सहयोगी मोहिनी सूद ने क्षेत्रीय बागबानी अनुसंधान केंद्र धौलाकुआं का दौरा किया। वहां उन्होंने प्रधान पुष्प वैज्ञानिक डा. प्रियंका ठाकुर से बात की।

डा. प्रियंका ने बताया कि गेंदा दो तरह का होता हैं। पहली किस्म अफ्रीकन गेंदा और दूसरी फ्रेंच गेंदा होती है। इसमें अफ्रीकन गेंदा बड़े साइज का होता है। गेंदे की खेती दो तरीके से की जाती है एक बीज द्वारा व दूसरे कलम द्वारा। बीज रोपना हो,तो एक हेक्टेयर भूमि के लिए किलो सीड की आवश्यकता होती है। खास बात यह कि  बीज गहरे काले रंग के होने चाहिएं। गैंदे को निचले पर्वतीय क्षेत्रों में 12 महीने लिया जा सकता है। आपको यह स्टोरी कैसी लगी। हमें फीडबैक जरूर दें।

रिपोर्टः निजी संवाददाता, सोलन

बैंगन ऊपर और आलू नीचे, एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पालमपुर ने ऐसे किया कमाल

कुछ समय पहले पोमेटो का आविष्कार हुआ था, जिसमें एक ही पौधे पर टमाटर और आलू मिलते हैं। इसी कड़ी में अब कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने नई खोज कर डाली है। पालमपुर से यह खबर

आप लोगों को याद होगा कि कुछ समय पहले कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पोमेटो की खोज की थी। पोमेटो वह पौधा है,जिसमें जमीन के ऊपर टमाटर और जमीन के नीचे आलू पैदा होते हैं। इसी कड़ी में अब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट ने ब्रीमैटो की पौध तैयार करने का सफल प्रयास किया है। ब्रीमेटो में भी आलू कॉमन होगा, बस फर्क होगा तो सिर्फ टमाटर की जगह बैंगन का।

यानी जमीन के अंदर आलू और जमीन के बाहर बैंगन लगेंगे।  बताते हैं कि अमरीका में इस तकनीक पर काम हो रहा है और इसे वहां एग एंड चिप्स प्लांट के नाम से पहचान दी गई है। खैर हमारे कृषि विश्वविद्यालय ने ब्रीमैटो तकनीक पर  कुछ समय पूर्व काम शुरू किया था। इससे अब  प्लांट साइंस विभाग के प्रमुख डा. प्रदीप कुमार व उनकी टीम के प्रयास सफल होते दिख रहे हैं। अगर ब्रीमेटो का प्रयास सफल रहता है,तो दिनों दिन कम होती जा रही खेती योग्य भूमि की चिंता काफी हद तक दूर हो जाएगी। इससे एक जैसे स्पेस में दो सब्जियां तैयार हो जाएंगी। डा प्रदीप ने बताया कि ब्रीमेटो का पौधा ग्राफ्टिंग तकनीक से तैयार किया गया हैं।

दिवाली पर बीजी सब्जी लोहड़ी पर तैयार

कांगड़ा जिला के पंजाब बार्डर पर बसे किसान दिवाली के दिनों में सब्जियां बीजते हैं। ये सब्जियां किसानों से लेकर ग्राहकों तक खुशियां बिखेरती हैं। आखिर क्यों खास हैं ये सब्जियां, पढि़ए यह खबर

दिवाली पर बीजे करेले और खीरे  नए साल पर तैयार, बैंगन- कद्दू ने भी दिखाया रंग

कांगड़ा जिला के तहत इंदौरा के किसान कई तरह की खेती करते हैं। इस इलाके में मंड स्नोर क्षेत्र के किसान स्मार्ट खेती में यकीन करते हैं। मंड के किसान दिवाली के दिनों में सब्जियां बीजना नहीं भूलते। ये वे सब्जियां होती है,जो जनवरी माह में तैयार होकर कांगड़ा से लेकर पंजाब तक मंडियों की शोभा बढ़ाती हैं। इनमे ंकरेला, चप्पन कददू, खीरा,बैंगन मुख्य हैं। इसके अलावा तरबूज भी खैर अभी ये सब्जियां पूरी तरह तैयार हो गई हैं। किसानों ने बताया कि यहां ज्यादातर घरों में अपनी निजी मोटरें हैं,जिससे सिंचाई के लिए कोई दिक्कत नहीं आती है।

 सब्जियों को ठंड से बचाने के लिए प्लास्टिक शीट से ढका जाता है।  किसानों ने बताया कि वे इन सब्जियों को जसूर, कांगड़ा या पठानकोट तक ले जाते हैं। एमएसपी न होने के कारण जहां दाम सही मिलें, उसी मंडी में वे फसलों को ले जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इन फसलों के आने से जनवरी में मार्केट में दामों में भी बैलेंस बना रहता है और किसानों की आर्थिकी भी मजबूत होती है।

ऐसे समझें मौसम का मिजाज

अगले पांच दिनों में मौसम परिवर्तनशील रहेगा बुधवार को हल्की बारिश/हिमपात की संभावना है। बादल छाए रहने के कारण न्यूनतम तामपान में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं होगा, लेकिन अधिकतम तापमान में दो से तीन डिग्री सेल्सियस की गिरावट आएगी। पांच से सात जनवरी तक आसमान में आंशिक बादल छाए रहेंगे और उसके बाद मौसम साफ रहेगा। एसडब्ल्यू दिशा से सापेक्ष आर्द्रता 34 से 84 प्रतिशत और हवा की गति आठ से नौ किमी/घंटा के बीच रहेगी। यह जानकारी नौणी विवि के भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक ने दी। उन्होंने बताया कि किसानों को सभी फसलों में सिंचाई न करने की सलाह दी जाती है। मौसम की मौजूदा परिस्थितियों में फसलों में स्प्रे न करें। वर्षा के पानी का भंडारण करें।

उन्होंने बताया कि यह नए बागों में वृक्षारोपण के लिए बहुत उपयुक्त समय है। उन्होंने बताया कि शीतोष्ण फल सुप्त अवस्था में होते हैं इसलिए सभी समशीतोष्ण फलों और पौधों में प्रशिक्षण और प्रूनिंग का कार्य करें। बटन मशरूम के अंकुरण के बाद बैग के ऊपर पानी का हल्का छिड़काव करें। कमरे में नमी बनाए रखने के लिए फर्श और दीवारों पर पानी का छिड़काव करें। जब कमरे का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से कम हो जाए तो कमरे के तापमान को बनाए रखने के लिए इलेक्ट्रिक हीटर का उपयोग करें। दिन में दो से तीन बार कमरे में ताजी हवा आने दें। पशुओं की गर्भावस्था के अंतिम तिमाही में उन्हें विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है और उन्हें 30 ग्राम खनिजों के मिश्रण के साथ 2.5 से तीन किलोग्राम चारा दें।

सीधे खेत से

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