ब्रह्मज्ञान का महत्त्व

By: Jan 16th, 2021 12:20 am

बाबा हरदेव

गतांक से आगे…

हमारा संसार में आने का मनोरथ पूरा हो जाएगा। जन्मों-जन्मों से भटकी हुई, आवागमन के बंधन में पड़ी हुई आत्मा के बंधन टूट जाएंगे। ये बंधन टूटना ही इसके लिए सुख का, चैन का, सहज अवस्था का कारण है। इनसान को चाहे जो मर्जी प्राप्त हो जाए, दुनिया भर के समान प्राप्त हो जाएं, लेकिन अगर यह आत्मा बंधन में जकड़ी रही, तो इसको कभी भी सुख, कभी भी चैन मिलने वाला नहीं।

करउ बिनती सुनहू मेरे मीता संत टहल की बेला।

ईहा खाटि चलहु हरि लाहा आगे बसुन सुहेला।।

इनसान को जगाने की कोशिश संत करते हैं कि हे इनसान तू इस संसार में आया है, तो यह काम कर ले। इस काम को कर लेगा, तो तेरा पार उतारा हो जाएगा। क्योंकि ब्रह्मज्ञान के बिना मृत्यु का भय बना रहता है। इसीलिए संतों ने मानव को चेतावनी दी है कि

कबीर संगति करएि साध की संति करे निरवाहु।

साकर संग न कीजिए जा ते होई बिनाहु।।

अगर साधु की संगति हमें प्राप्त होती है, तो ब्रह्मज्ञान हो जाता है। जैसे और कुछ भी हमें दुनियावी ज्ञान प्राप्त करना है, तो जानकार होता है, उसी से वह ज्ञान मिलता है। हमें अंग्रेजी पढ़नी है तो जो अंग्रेजी जानता है, वो हमें अंग्रेजी पढ़ा सकता है। इसमें हम कोई शर्त नहीं लगाते कि वह जो अंग्रेजी पढ़ाता है, वह तो धोती पहनता है,वह तो टोपी पहनता है, वह तो पगड़ी पहनता है,वह तो किसी और जाति से ताल्लुक रखता है। हम बच्चों को स्कूलों में दाखिल कराते हैं, तो क्या हम पहले लिस्ट देखते हैं कि इस स्कूल में जो टीचर पढ़ाने वाले हैं, वे हिंदू हैं, मुसलमान हैं, सिख हैं, ईसाई हैं? कौन सी जाति से ताल्लुक रखते हैं, कौन सा पहरावा है। डाक्टर की भी जाति नहीं देखते। इसी तरह संतों, महात्माओं की भी जाति नहीं देखी जाती, बल्कि उनके ज्ञान से ही हमें लाभ उठाना चाहिए। कहा भी है कि

जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।

मोल करो तलवार का, पड़ी रहने दो म्यान।।

जो प्रभु के विषय में अज्ञानी हैं, उन्हें ही ज्ञान की सबसे ज्यादा जरूरत है। वे अगर खुद ही जानकारी प्राप्त करेंगे, तो उनको मुक्ति मिलेगी। किसी और के ज्ञान लेने से उन्हें कोई लाभ नहीं होने वाला। जिसके शरीर पर गंदगी लगी हुई है, उसी को ही स्नान करना पड़ता है। अगर वह स्नान नहीं करता, वह यही कहता रहे कि मैंने और क्या करना है, मेरे बड़े भाई ने तो स्नान किया ही हुआ है। बस काफी है। मैं उज्ज्वल हो जाऊंगा। ऐसा कभी भी होने वाला नहीं। जिस शरीर को रोग लगा हुआ होता है, उसको ही दवा दी जाती है। इसी तरह से इसमें कोई शक नहीं कि जिन्होंने नाम, हरि के साथ अपना नाता जोड़कर मुख उज्ज्वल किया और एक ऐसा जीवन व्यतीत करके गए कि युग बीत जाने पर भी आज उसकी श्लांघा हो रही है। लेकिन वो श्लांघा या उपमा उनके जीवन की गाथा गाने, केवल दोहरा लेने से हमारी अवस्था ऊंची होने वाली नहीं। जैसे कर्म उनके थे, वैसा कर्म करेंगे तभी हमारा पार उतारा हो सकता है।


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