जिंदगी की भारतीय खुराक

By: Jan 18th, 2021 12:08 am

भारत में एक नया सूर्योदय हुआ है, लिहाजा महामारी का खौफनाक अंधेरा भी छंटने लगेगा। कोरोना वायरस की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया के सबसे बड़े और व्यापक टीकाकरण का शुभारंभ किया। देशवासियों को स्वस्थ होने की शुभकामनाएं दीं और टीके की बधाइयां भी साझा कीं। देश के 3352 केंद्रों में 1.91 लाख से अधिक लाभार्थियों को टीके की खुराक दी गई। हालांकि लक्ष्य 3 लाख को टीका लगाने का तय किया गया था, लेकिन यह भी विश्व कीर्तिमान है। दुनिया के तमाम बड़े देश भी एकदिनी उपलब्धि के संदर्भ में भारत से पीछे हैं। इस खुराक की तुलना ‘संजीवनी’ से की जा सकती है। यकीनन यह राष्ट्रीय उत्सव का दिन है।

एक शानदार उपलब्धि भी भारत के साथ जुड़ गई है, क्योंकि दो-दो ‘मेड इन इंडिया’ टीके हमारे सामने हैं, लिहाजा कोरोना टीके के संदर्भ में भी हम आत्मनिर्भर साबित हुए हैं। एक मायने में टीकाकरण अभियान हमारे वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के प्रति राष्ट्रीय आभार और आदर की अभिव्यक्ति है। चेहरों पर उल्लास और गर्व के भाव दिखाई देते रहे, क्योंकि वैश्विक महामारी के खिलाफ  जंग की निर्णायक शुरुआत हुई है। लेकिन निराशा और क्षोभ भी होता है, जब ऐसे पुनीत अवसर पर कुछ ‘काली भेड़ों’  ने कोरोना टीके पर सवाल किए हैं, टीका न लेने का दुष्प्रचार किया है, भ्रांतियां फैलाने का सिलसिला जारी है और एक वाहियात, कुतर्की सवाल पूछा जा रहा है कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों को टीके क्यों नहीं लगाए गए हैं? इस सवाल का जवाब देश जानता है। हमें कुतर्क का हिस्सा बनने की ज़हमत नहीं उठानी पड़ेगी। बेशक सवाल करना भी लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन फिलहाल मौका चुनाव का नहीं है। आम दिनचर्या अथवा विमर्श का मौका भी नहीं है। सवाल, सरोकार और चिंता इनसानी जिंदगी की है। बीता करीब एक साल कैसा गुज़रा है, हरेक देशवासी को उसका एहसास है। कोरोना वायरस से एक करोड़ से अधिक लोग संक्रमित हुए हैं और अब भी सिलसिला जारी है। मौतें भी 1.52 लाख से ज्यादा हो चुकी हैं। ये कोई सामान्य आंकड़े नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी अब भी हमारे सामने है। हम एक और यातनापूर्ण साल देखने और झेलने को तैयार नहीं हैं। इतनी क्षमता भी शेष नहीं है। देश की जो पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक इकाइयां टूटती रही हैं, अब वे बिखर कर खो भी सकती हैं। बेशक एक करोड़ से अधिक लोग स्वस्थ होकर अपने घरों को भी लौट चुके हैं, लेकिन उन्हें याद करें, जिन्हें महामारी ने बिल्कुल अकेला कर दिया था, जो अस्पतालों से लौट कर घर को नहीं आ सके, जिनके शव अस्पताल के गलियारों में पड़े सड़ते रहे और जिनका विधिवत अंतिम संस्कार भी नहीं हो सका। कोरोना टीके की खुराक उन त्रासद परिस्थितियों के खिलाफ  ‘जिंदगी की खुराक’ की शुरुआत है। उस पर सवाल करने या बहिष्कार करने से हासिल क्या होगा? वोट भी नहीं मिलेंगे! टीके लगने के बाद अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी सरीखे विकसित देशों में भी अनहोनियां हुई हैं।

मौतें भी हो रही हैं, लेकिन जिंदगी की राहत-भरी छांव भी बेहद लंबी है। भारत में कोरोना टीकाकरण का एक दौर समाप्त हुआ, लेकिन कोई त्रासद घटना नहीं हुई है। कुछ सामान्य और विपरीत हालात जरूर सामने आए हैं, लेकिन उन्हें गंभीर नहीं माना जा सकता। दुनिया के विख्यात वैज्ञानिकों और चिकित्सकों का मानना है कि टीका लगने के बाद हल्का बुखार, सिरदर्द, थकान, चक्कर आना, उलटी होना, टीके के स्थान पर ललाई और सूजन आदि साइड इफेक्ट के मायने हैं कि टीके ने शरीर में इम्यून सिस्टम के तार छेड़ दिए हैं। वायरस से लड़ने की शुरुआत हो चुकी है। ये लक्षण कोरोना टीके के फीचर हैं, गुण हैं, टीके की नाकामी नहीं मान सकते। हैरत तब हुई, जब राजधानी दिल्ली के सरकारी राममनोहर लोहिया अस्पताल के डाक्टरों ने ही भारत बायोटेक का ‘को-वैक्सीन’ टीका लगवाने का विरोध किया, क्योंकि उसके तीसरे चरण के इनसानी परीक्षण अभी जारी हैं। यह बेबुनियादी भ्रांति है। दुनिया के 123 देशों में टीके सप्लाई करने वाली कंपनी का ‘को-वैक्सीन’ पूरी तरह भारतीय टीका है, जिसके करीब 30,000 लोगों पर परीक्षण किए जा चुके हैं। यह टीका 12 राज्यों में लगाया गया है। आज तक एक भी त्रासद घटना दर्ज नहीं की गई है। भारत दुनिया के 60 फीसदी से अधिक टीकों का निर्माण करता है। करीब 100 देश भारत के मुखापेक्षी हैं कि उन्हें भी कोरोना टीका मुहैया कराया जाए। अभी तो टीकाकरण का दौर बेहद लंबा चलना है। अभी से देश के भीतर टीकों पर ही सवाल किए जाते रहेंगे, तो भारत की दुनियावी छवि का क्या होगा?


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